(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
एक साल पहले लखनऊ में आया था पहला कोरोना केस, अब सबसे ज्यादा मामलों के बाद सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन
17 फरवरी आते-आते राजधानी में कोरोना की रफ्तार काफी धीमी पड़ गई और हर दिन मिलने वाले केस 10 से भी कम रह गए. जब 1 मार्च को वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई तो इसमें भी राजधानी आगे है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कोरोना का पहला मामला 5 मार्च को सामने आया था तो वहीं अगर लखनऊ की बात करें तो बीते साल 10-11 मार्च को राजधानी लखनऊ में कोरोना का पहला केस का रिपोर्ट किया गया था. इन एक सालों में लखनऊ ने कोरोना के चलते तमाम दिक्कतों को झेला. पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले लखनऊ में ही सामने आये हैं, सबसे ज्यादा मौतें भी राजधानी में ही हुई हैं. हालांकि राजधानी में कोरोना के टेस्ट में सबसे ज्यादा हुए और जब वायरस के बाद वैक्सीन की बारी आई तो वैक्सीनेशन में भी लखनऊ सबसे आगे है. आपको बताते हैं इस पूरे 1 साल में कब-कब क्या-क्या हुआ.
राजधानी लखनऊ में कोरोना का पहला मामला प्रदेश में पहला के सामने आने के तकरीबन 6 दिन बाद सामने आया था. सबसे पहले टोरंटो से अपने परिवार के साथ लखनऊ आयी एक लेडी डॉक्टर में कोरोना के लक्षण थे और जब जांच हुई तो 11 मार्च को उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. फिर एक हफ्ते बाद यानी 18 मार्च को केजीएमयू के डॉक्टर मोहम्मद तौसीफ खान जिन्होंने उस लेडी डॉक्टर का ट्रीटमेंट किया था वह भी कोरोना पॉजिटिव हो गये. राजधानी लखनऊ में कोरोना को लेकर हड़कंप तब मचा जब बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर कोरोना पॉजिटिव थीं और एक वीआईपी पार्टी में मौजूद थी. इसके बाद तो राजधानी में कोरोना को लेकर ड्राइव चलाई गई.
25 मार्च से लॉकडाउन हो गया
फिर 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगा और 25 मार्च से लॉकडाउन हो गया. 28 मार्च को राजधानी में पीजीआई हॉस्पिटल को पहला कोविड अस्पताल बनाया गया. उसके बाद 15 अप्रैल को राजधानी में कोरोना मरीजों की संख्या 100 तक पहुंच गई. 25 अप्रैल को केजीएमयू में पहला प्लाज्मा डोनेशन किया गया और फिर 8 मई को केजीएमयू पहला ऐसा संस्थान हो गया जिसने कोरोना के 20000 टेस्ट किए थे. 1 जून से जब अनलॉक की शुरुआत हुई तब एसजीपीजीआई ने RNA बेस्ड जांच शुरू की जिसमें 30 मिनट में ही इन्फेक्शन का पता चल जाता था. वहीं 24 जून से रैपिड एंटीजन टेस्टिंग की शुरुआत हुई. 27 जून आते-आते राजधानी में कोरोना के मामले ने 1000 के आंकड़े को पार कर लिया.
फिर 1 जुलाई से डोर टू डोर सर्वे की शुरुआत हुई. 3 जुलाई को केजीएमयू ने एंटीबॉडी टेस्टिंग की शुरुआत की. वहीं 2 अगस्त को राजधानी में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा 100 को पार कर गया. 5 अगस्त तक तो स्थिति राजधानी में बदतर हो गई. कोरोना के मामले बढ़कर 10000 से ज्यादा हो गए. वहीं 23 अगस्त को तो कोरोना का कहर केजीएमयू पर टूटा जहां kgmu में 900 स्टाफ कोरोना संक्रमित हो गया. सितंबर आते आते मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे थे. 12 सितंबर तक राजधानी में कोरोना से होने वाली मौतें 500 के पार पहुंच गयी. जबकि 18 सितंबर को राजधानी में रिकॉर्ड 1 दिन में 1244 मामले सामने आए. 25 सितंबर आते-आते राजधानी में कोरोना के मरीजों की संख्या 50 हजार को पार कर गई. 27 सितंबर तक केजीएमयू 5 लाख जांच करने वाला पहला संस्थान बन गया.
6 जनवरी से राजधानी में वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई
वहीं अगर अक्टूबर की बात करें तो मामले लगातार बढ़ते चले जा रहे थे. 7 अक्टूबर को केजीएमयू के डॉ सूर्यकांत ने ऑयवरमेक्टिन को लेकर जो वाइट पेपर जारी किया था उसे डब्ल्यूएचओ ने अपने वेबसाइट पर जगह दी. नवंबर आते मामले में थोड़ी कमी जरूर जरूर देखने को मिली. दिसंबर 1 को कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा 1000 के पार चला गया. जबकि 11 दिसंबर आते-आते कोविड 19 के मरीजों की संख्या 75 हजार की संख्या को पार कर गयी. हालांकि 2021 अपने साथ एक नई सुबह लेकर आई. वैक्सीन के बीच तमाम नई आशाओं को लेकर आया 16 जनवरी से राजधानी में वैक्सीनेशन की जब शुरुआत हुई तो 840 हेल्थकेयर वर्कर को वैक्सीन दी गई. जनवरी 17 आते-आते हर दिन सामने आने वाले केस 100 से घट गए.
जबकि 4 फरवरी आते आते केजीएमयू, लोहिया समेत कई अस्पतालों को नॉन कोविड अस्पताल में बदला गया. 17 फरवरी आते-आते राजधानी में कोरोना की रफ्तार काफी धीमी पड़ गई और हर दिन मिलने वाले केस 10 से भी कम रह गए. जब 1 मार्च को वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई तो इसमें भी राजधानी आगे है.
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