अयोध्या: राम मंदिर के लिए 1200 पिलर्स की जो ड्राइंग तैयार की गई थी वह फिलहाल कामयाब होती नहीं दिख रही है. निर्माण से पहले टेस्टिंग के लिए जब कुछ पिलर सवा सौ फीट गहराई तक डाले गए और उन्हें 28 से 30 दिन तक मजबूती के लिए पकाया गया और फिर उन पर 700 टन का वजन डाला गया तो टेस्टिंग में यह पिलर पूरी तरह फ्लॉप साबित हुए. लिहाजा मंदिर की बुनियाद की पूरी डिजाइन को नए सिरे से बनाया और परखा जा रहा है और इसके लिए देशभर के बड़े विशेषज्ञों को एक साथ बैठकर रिसर्च हो रहा है. यही नहीं, इस बात पर भी रिसर्च हो रहा है कि अगर सरयू ने कभी अपना मार्ग बदल लिया तो उस दशा में मंदिर को नुकसान ना हो, इसके लिए क्या उपाय किए जाएं, अभी तक यह तय हुआ है कि मंदिर के चारों तरफ कंक्रीट की दीवार यानी रिटेनिंग वॉल बनाई जाएगी.


बड़े विशेषज्ञ कर रहे हैं रिसर्च


श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने हालांकि जनवरी 2021 में राम मंदिर का काम शुरू होने की उम्मीद जताई है, लेकिन राम मंदिर की राह में कितने रोड़े हैं, इसको भी उन्होंने बता दिया है. जहां पर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, उसकी पश्चिम में सरयू नदी बहती है और इसलिए भूमि के भीतर की मिट्टी रिसर्च के दौरान भुरभुरी और बलुई है, इसलिए भुरभुरी बालू में टिकाऊ मंदिर कैसे बने? इसका निर्णय और कंक्रीट की आयु कई शताब्दियों तक कैसे बढ़ाई जाए, देश के बड़े विशेषज्ञ रिसर्च कर रहे हैं.


सरयू नदी के जल प्रवाह पर भी नजर


श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने जानकारी देते हुये कहा कि, जनवरी में काम शुरू हो जाएगा. उन्होंने बताया कि जहां मंदिर का गर्भ गृह बनना है, उसके पश्चिम में जल का प्रवाह है सरयू बहती है और जिस लेवल पर मंदिर बनना है, उसके नीचे 50 फीट तक गहराई है. जब जमीन के नीचे गए तब पता चला कि 17 मीटर तक भराव है. ओरिजिनल मिट्टी नहीं है. उसके नीचे जाने पर पता लगा कि भुरभुरी बालू है, कुछ भी सॉलिड नहीं है तो भराव और भुरभुरी बालू में पकड़ नहीं आती इसलिए आईआईटी चेन्नई ,आईआईटी मुंबई ,आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की उसके वर्तमान और रिटायर्ड दोनों प्रकार के वैज्ञानिक और प्रोफेसर ,टाटा और लार्सन एंड टूब्रो के अनुभवी लोग और हमारे द्वारा नियुक्त किए गए प्रोजेक्ट मैनेजर महाराष्ट्र औरंगाबाद के जगदीश जी सभी मिलकर चर्चा कर रहे हैं. जल का प्रवाह मंदिर को नुकसान ना पहुंचाए इसके लिए क्या करना है, भुरभुरी बालू में टिकाऊ कैसे बने, इसका निर्णय और कंक्रीट की आयु कई शताब्दियों तक कैसे बढ़ाई जाए?


एक तरफ राम मंदिर की बुनियाद में ओरिजनल मिट्टी नहीं मिल रही है और अब तक जितनी खुदाई हुई उसमें भुरभुरी और बलुई मिट्टी मिली. वहीं दूसरी तरफ निर्माण से जुड़ी एजेंसियों को इस बात की भी चिंता है कि निर्माण स्थल से कुछ दूरी पर पश्चिम दिशा में सरयू नदी बहती है. ऐसे में अगर भविष्य में सरयू ने अपना मार्ग बदला जैसा कि सरयू ने पहले भी किया है तो ऐसी दशा में मंदिर को कैसे सुरक्षित रखा जाए? अभी तक इस बात पर निर्णय हो गया है कि मंदिर के चारों तरफ जमीन के भीतर कंक्रीट की वॉल बनाई जाएगी जिससे भविष्य में ऐसी स्थिति आए तो मंदिर को सुरक्षित रखा जा सके.


कई आईआईटी की टीम संयुक्त रूप से कर रही है रिसर्च


अब सवाल यह उठता है कि राम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट और निर्माण एजेंसियों से लेकर विशेषज्ञों के अगले कदम क्या होंगे और अब तक राम मंदिर निर्माण को लेकर हुआ क्या है और इसमें कितनी सफलता हाथ लगी है? सबसे पहले राम मंदिर की बुनियाद स्ट्रक्चर करने के लिए जो डिजाइन बनाई गई उसमें 1200 पिलर जमीन के भीतर 125 फीट गहराई में बोर किए जाएंगे, लिहाजा टेस्टिंग के लिए कुछ पिलर को जमीन के भीतर 125 फीट तक डाला गया उसको पूरी तरह मजबूत होने के लिए 28 से 30 दिन तक छोड़ा गया इसके बाद जब उस पर 700 टन का वजन डाला गया और भूकंप का परीक्षण करने के लिए भूकंप के झटके दिए गए तो इन परीक्षणों के दौरान यह पिलर अपने स्थान से खिसक और मुड़ गए इसी के बाद जिस ड्राइंग पर राम मंदिर का निर्माण किया जाना था उसे रोक दिया गया और नए सिरे से प्लानिंग के लिए आईआईटी दिल्ली आईआईटी गुवाहाटी आईआईटी मुंबई आईआईटी सूरत के वर्तमान और रिटायर्ड प्रोफेसर और वैज्ञानिकों के साथ टाटा और लार्सन और टूब्रो के विशेषज्ञों की एक ज्वाइंट टीम बनाई गई है. इस ज्वाइंट टीम के बीच 15 दिनों तक लगातार आपस में कान्फ्रेंस चलती रही, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.


ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय कहते हैं इसको अच्छे से लेना चाहिए कि योग्य लोग ऐसे ही होते हैं जिनके पास नया विचार आता रहे तो ठहर कर उस पर भी चिंतन करते हैं.


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