लखनऊ: 14 फरवरी 1981 का मंजर देखने वाले कानपुर देहात के बेहमई के राजाराम सिंह भी न्याय की आस लिए दुनिया छोड़ गए. फूलन गैंग ने उनके छह भाइयों और भतीजों के साथ गांव के 20 लोगों को गोलियों से भून दिया था. जब सारा गांव कांप रहा था राजाराम मुकदमा लिखाने के लिए आगे आए थे, उन्होंने फूलन देवी और मुस्तकीम समेत 14 को नामजद कराते हुए 36 डकैतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.


पूरे देश को दहला देने वाला बेहमई कांड लचर पैरवी और कानूनी दांव पेंच में ऐसा उलझा कि 39 सालों में भी पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया. देश के इस बहुचर्चित मुकदमे में नामजद अधिकांश डैकतों के साथ ही 28 गवाहों की मौत हो चुकी है. आरोपित मानसिंह, विश्वनाथ व रामकेश मुकदमे में 39 साल से फरार चल रहे हैं. कुर्की के साथ ही इनके स्थाई वारंट जारी किए गए और फिर मुकदमे से इनकी पत्रावली अलग कर बाकी बचे आरोपितों के खिलाफ सुनवाई पूरी की गई.


इनमें डकैत पोसा, भीखा, विश्वनाथ श्याम बाबू ही बचे हैं जिनके खिलाफ फैसले का इंतजार है. करीब साल भर पहले जब लगा कि अब फैसला होने वाला है केस डायरी गायब होने से फिर यह रुक गया. साल भर पहले तक मुकदमे की सक्रिय पैरवी करने वाले राजाराम हर सुनवाई में कचहरी पहुंचते थे और यह कहते थे कि जिंदा रहते फैसला आ जाए तो सुकून मिल जाएगा, पर ऐसा न हो सका. 39 साल तक इंतजार करते-करते आखिर रविवार को उनकी भी मौत हो गई.


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