संगीतकार नौशाद अली को कौन नहीं जानता उन्होंने केवल 67 फिल्मों में अपना संगीत दिया था, लेकिन अपने संगीत की वजह से वो आज भी याद किए जाते हैं। ये सब उनके संगीत और कौशल का कमाल है। नौशाद के सिनेमा संगीत में कई योगदान है उन्होंने हिंदी सिनेमा के संगीत को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया। 5 मई 2006 को 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।


संगीतकार नौशाद को साल 1940 में प्रदर्शित फिल्म 'प्रेमनगर' में 100 रुपए मासिक वेतन पर काम करने का मौका मिला। उनकी पहली सफल फिल्म रतन (1944) थी। इसके बाद उन्होंने 35 सिल्वर जुबली हिट, 12 गोल्डन जुबली और 3 डायमंड जुबली मेगा सफल दिए। इसके बाद नौशाद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिल्मों में एक से बढ़कर एक संगीत देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।


नौशाद अली को बचपन से ही संगीत में रुचि थी। बचपन में नौशाद क्लब में जाकर साइलेंट फिल्म देखा करते थे और नोट्स तैयार किया करते थे। इतना ही नहीं नौशाद अली बचपन में एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स की दुकान पर सिर्फ इसलिए काम करते थे ताकि उन्हें हारमोनियम बजाने का मौका मिले।


आपको जानकर हैरानी होगी कि नौशाद अली की शादी होने तक भी उनके घर वालों को नहीं पता था कि वो संगीतकार हैं। जब नौशाद की शादी हुई थी, उस वक्त शादी में उनके ही कंपोज किए गए एक गाने की धुन बजाई जा रही थी लेकिन नौशाद तब भी नहीं बता पाए कि ये गाना उन्होंने ही कंपोज किया है। इतना ही नहीं नौशाद के ससुराल वालों को भी ये बताया गया कि वह पेशे से बंबई में दर्जी हैं क्योंकि उस दौर में संगीत से जुड़े काम खराब माना जाता था।


टुनटुन, सुरैया, मोहम्मद रफी और शमशाद बेगम जैसी आवाजों को पहला ब्रेक देने वाले नौशाद एक मात्र संगीतकार हैं, जिन्होंने कुंदन लाल सहगल से लेकर कुमार सानू तक को प्लेबैक का मौका दिया। उन्होंने आखिरी बार साल 2005 में फिल्म 'ताज महल’ एन एटरनल लव स्टोरी' के लिए गाना कंपोज किया था।