UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी कहा है कि पार्टी जिस सीट से कहेगी वो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है और सीट का फैसला पार्टी पर छोड़ दिया है. अब हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस सीट से ये नेता चुनाव लड़ सकते हैं.
योगी आदित्यनाथ इस बार मथुरा से चुनाव लड़ेंगे?
बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखकर योगी को मथुरा से चुनाव लड़ाने की मांग की है. वही मथुरा जिसका जिक्र अक्सर अयोध्या और काशी के साथ बीजेपी करती रही है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण चल रहा है. काशी में विश्वनाथ धाम के दर्शन श्रद्धालु कर रहे हैं, तो क्या अब बारी मथुरा में मंदिर के निर्माण की है और क्या योगी के मथुरा से चुनाव लड़ने का यही मकसद है? या फिर मथुरा से योगी को चुनाव लड़ाकर बीजेपी पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन से उपजी नाराज़गी को दूर करना चाहती है?
वहीं बीजेपी के कुछ लोगों की इच्छा है कि योगी इस बार अयोध्या से चुनावी मैदान में उतरें. लेकिन गोरखपुर से योगी का सबसे पुराना कनेक्शन रहा है. गोरखपुर पीठ के वे महंत भी हैं और गोरखपुर से वे लगातार 5 बार सांसद भी रहे हैं. गोरखपुर के पार्टी नेता, कार्यकर्ता और विधायक भी यही चाहते हैं कि योगी वहीं से चुनाव लड़ें.
पार्टी जहां से कह दे कि मैं वहां से चुनाव लड़ लूंगा- अखिलेश यादव
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर कहा कि जहां से हमारी पार्टी कहेगी हम वहां से चुनाव लड़ेंगे. याद कीजिये, नेताजी (मुलायम सिंह यादव) ना जाने कितने क्षेत्रों से चुनाव लड़े. समाजवादी पार्टी जहां से कह दे कि मैं वहां से चुनाव लड़ लूंगा.
इस सीट से ताल ठोंकते हुए नजर आ सकते हैं डिप्टी सीएम
यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य प्रयागराज की शहर उत्तरी सीट से ताल ठोंकते हुए नजर आ सकते हैं. शहर उत्तरी को यूपी में सबसे ज़्यादा शिक्षित और बुद्धिजीवी वोटर वाली सीट कहा जाता है. ऐसे में केशव मौर्य यहां से जीत हासिल कर कई संदेश देने की जुगत में हैं. वह ब्राह्मणों के साथ ही दूसरी अगड़ी जातियों के दबदबे वाली इस सीट से विधायक बनकर खुद पर लगे बैकवर्ड लीडर के ठप्पे को हटाना चाहते हैं. केशव मौर्य इसी सीट के ज्वाला देवी इंटर कालेज पोलिंग सेंटर पर वोटर भी हैं. यहीं से वह पार्टी के पन्ना प्रमुख भी बनाए गए हैं.
सिराथू से केशव प्रसाद मौर्य साल 2012 में विधायक चुने गए थे
वैसे प्रयागराज की फाफामऊ और कौशाम्बी जिले की सिराथू सीट को भी उन्होंने विकल्प के तौर पर छोड़ रखा है. सिराथू से वह साल 2012 में विधायक चुने गए थे, जबकि फाफामऊ सीट जातीय समीकरण के हिसाब से केशव मौर्य के लिए खासी मुफीद मानी जा रही है.
सीएम योगी के चुनाव लड़ने के मायने
- 2007 से यूपी में जो भी सीएम बना विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा
- 2007 और 2012 में मायावती, 2012 और 2017 में अखिलेश चुनाव नहीं लड़े
- 2017 में योगी आदित्यनाथ भी चुनाव नहीं लड़े थे
- आखिरी बार सीएम रहते हुए 2007 में मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़े थे
- मुलायम गुन्नौर और भरथना से चुनाव लड़े और जीते थे
- बीजेपी हमेशा से अपने दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ाती है
- 2012 में भी बीजेपी उमा भारती और कलराज मिश्रा जैसे दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ाया था
- बड़े नेता के चुनाव लड़ने से आस पास के जिलों की विधानसभा सीटों पर असर होता है
- पीएम मोदी के 2014 और 2019 में वाराणसी से चुनाव लड़ने पर बीजेपी को पूर्वांचल और बिहार में फायदा मिला था
मथुरा विधानसभा सीट
- 2017 में बीजेपी के श्रीकांत शर्मा 1 लाख से भी ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे
- बीजेपी पूरे यूपी में सिर्फ 4 सीटों पर 1 लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीती थी
- उनमें से मथुरा भी एक सीट थी, बीजेपी इस सीट पर 1,01,161 वोटों से जीती थी
- 2002 से 2017 तक लगातार 15 साल इस सीट पर कांग्रेस के प्रदीप माथुर विधायक रहे
- 2017 से पहले आखिरी बार इस सीट पर बीजेपी 1996 में जीती थी
जातीय समीकरण- मथुरा विधानसभा सीट
- वैश्य और ब्राह्मण बहुल आबादी है
- करीब 70 हजार ब्राह्मण
- 65 हजार वैश्य
- 35 हजार मुसलमान
- ठाकुर 28 हजार
- करीब 25-30 हजार जाट है
मथुरा- 2021 जिला पंचायत चुनाव के नतीजे
- जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी
- 33 में से सिर्फ 8 सीटें बीजेपी जीती थी
- बीजेपी सिर्फ 24 फीसदी सीटें ही बीजेपी जीत पाई थी
- कुल सदस्य- 33
- बीएसपी- 13
- बीजेपी- 8
- आरएलडी- 8
- एसपी- 1
- निर्दलीय- 3
मथुरा जिला
- मथुरा जिले में विधानसभा की 5 सीटें है
- पिछले 20 साल का रिकॉर्ड देखे तो मथुरा कभी बीजेपी के लिए मुफीद नहीं रही है
- 2002 में बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीत पाई थी
- जबकि 2007 और 2012 में बीजेपी का खाता नहीं खुल पाया था
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