Ganesh Chaturthi 2022: देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर यूपी (UP) के मुरादाबाद (Moradabad) में गाय के शुद्ध गोबर से बनी भगवान गणेश (Lord Ganeha) की मूर्ति की चर्चा हर तरफ हो रही है. यह मूर्ति लोगों को खूब पसंद आ रही है. इस मूर्ति को गाय के गोबर के अंदर तुलसा के पत्ते के साथ-साथ ऐसे बीज मिलाए गए हैं, जिनसे नदियों के जलीय जीवों को भोजन भी मिलेगा और पानी भी शुद्ध होगा.
इसके अलावा नदियों में पेड़ भी जमेंगे, ऑर्गेनिक खाद के रूप में भी इनका विसर्जन पर प्रयोग किया जा सकता है, जो कि पर्यावरण में ऑक्सीजन को बढ़ाने में सहायक भी होंगे. दुनिया में एकमात्र गोबर की बड़ी प्रतिमाएं बनाने वाले मुरादाबाद के गौ सेवक दीपक वार्ष्णेय ने बताया, "हम लगभग 5 साल से ये प्रतिमाएं बना रहे हैं, गौशाला के चालू होने के एक साल बाद से हमने शोध करना शुरू कर दिया था, जिसके बाद 4 इंच से हमने प्रतिमाएं बनानी शुरू की थी. आज हम 6 फीट तक की प्रतिमाएं बना रहे हैं."
सनातन धर्म के हिसाब से गोबर गणेश का है बड़ा महत्व
उन्होंने बताया कि हमारे सनातन धर्म के हिसाब से गोबर गणेश का बड़ा महत्व है. घरों में जब भी कोई पूजा होती है तो गोबर गणेश की स्थापना होती है, लेकिन आज कल गोबर न मिलने के कारण मिट्टी के गणेश बना कर पूजन कर लिया जाता है. गोबर गणेश पर्यावरण के अनुकूल है, क्योंकि आज-कल हम प्रतिमाएं बड़ी से बड़ी रखना चाहते हैं और जब हम उनको विसर्जित करते हैं, तो बिल्कुल ध्यान नहीं देते की इनसे जलीय जीव, वातावरण, नदियों और जलाशयों को कितना नुकसान हो रहा है और खेतों को कितना नुकसान हो रहा है.
घर के किसी बर्तन में भी विसर्जित कर सकते हैं ये मूर्ति
दीपक वार्ष्णेय ने कहा कि हम लोग देशी गौ माता के गोबर से प्रतिमाएं बनाते हैं. ये हमारे धर्म के साथ-साथ पूरे वातावरण को शुद्ध करते हैं. वायु और जल के प्रदूषण को दूर करती है, खेतों को ऑर्गेनिक खाद मिलती है और जलीय जीव को भोजन भी मिलता है. पूजन के बाद मूर्ति पूर्ण रूप से विसर्जित होनी चाहिए और इसकी ये भी विशेषता है कि छोटी मूर्तियां आप अपने घर के किसी बर्तन में विसर्जित कर सकते हैं.
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पेड़ उगने से पर्यावरण होगा शुद्ध
उन्होंने आगे बताया कि उस जल को और विसर्जित मूर्ति को आप घरों में उपस्थित गमलों और फूल पेड़ों की क्यारियों में भी डाल सकते हैं, जिससे उनको अच्छा खाद भी मिलेगा और भगवान गणेश घर में ही आपके साथ है. उन्होंने कहा कि हम इन भगवान गणेश को सीट्स गणेश भी कहते हैं, क्योंकि इनमें कई सारे पौधों के बीज हमने इस में मिलाए हैं, ताकि जब कोई इनको विसर्जित करें तो ये जब नदियों में बहते हुए जाए, तो जहां भी ये रोपित होंगे वहां पेड़ उगेगा इससे पर्यावरण शुद्ध होगा.
वजन में होते हैं हल्के
दीपक वार्ष्णेय ने कहा कि कोरोना काल में सबने ऑक्सीजन की कमी को महसूस किया था, लेकिन हम इन पेड़ों के माध्यम से ऑक्सीजन की बढ़ोतरी कर रहे हैं. नदियों में जब आप पीओपी की मूर्ति डालते हैं तो वो वहीं के वहीं बैठ जाएगा . जल के प्रवाह को रोक देगा और जब गोबर के गणेश को विसर्जित किया तो वो बहेंगे, क्योंकि ये वजन में हल्के होते है और जल को शुद्ध करने के साथ ही जलीय जीवों को भोजन भी देंगे.
विदेशों मं भी है खूब मांग
गौ सेवक दीपक वार्ष्णेय ने बताया कि गोबर से बने गणेश की सिर्फ देश ही नहीं विदेशों तक बहुत मांग की जा रही है. आज के समय में हर व्यक्ति पर्यावरण अनुकूल भगवान गणेश की स्थापना करना चाहता है, लेकिन क्योंकि हम एकमात्र विश्व भर में इतनी बड़ी प्रतिमाएं बनाने वाले हैं, तो हम भी सबके ऑर्डर को पूरा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि प्रोडक्शन की कमी है.
महिलाएं बनाती हैं भगवान गणेश की प्रतिमाएं
उन्होंने कहा कि ये प्रतिमाएं हम मुरादाबाद की सेवा प्रसूति की महिलाओं से बनवाते हैं, जिससे उन महिलाओं को भी रोजगार मिलता है. फिर भी हमारी कोशिश रही है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक , गुजरात , एनसीआर और दिल्ली तक इन प्रतिमाओं को भेजा है. विदेशों की बात करें तो कनाडा, यूएस, यूके , दुबई तक इन प्रतिमाओं को भेजा गया है.
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