Prayagraj News: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे हो रहे अवैध निर्माणों को लेकर नाराजगी जताते हुए यूपी सरकार से जवाब तलब कर लिया है. कोर्ट ने यूपी सरकार से यह बताने को कहा है कि गंगा नदी के किनारे पर रोक के बावजूद किस तरह से अवैध निर्माण हो रहे हैं. कोर्ट ने सरकार से फ्लड प्लेन जोन को भी विस्तार से परिभाषित करने को कहा है और यह पूछा है कि आखिर उसके फ्लड प्लेन जोन का दायरा क्या है.
यूपी सरकार की तरफ से एनजीटी कोर्ट में बताया गया कि सरकार गंगा में प्रदूषण को पूरी तरह खत्म करने और नदी के किनारे हो रहे अवैध निर्माण को रोकने के लिए फ्लड प्लेन जोन बनाया है. उत्तर प्रदेश में यह काम दो हिस्सों में किया जा रहा है. पहला हिस्सा बिजनौर से उन्नाव तक है और दूसरा उन्नाव जिले से पूर्वांचल के बलिया तक. पहले हिस्से में निगरानी और रोकथाम का काम सेंटर वॉटर कमीशन को सौंपा गया है, जबकि दूसरे हिस्से का काम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी रुड़की को दिया गया है.
हाईकोर्ट के रोक के बाद भी हुए निर्माण
यूपी में गंगा प्रदूषण से जुड़ी डेढ़ दर्जन जनहित याचिकाओं पर पिछले कई सालों से इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी. कई याचिकाएं तो तकरीबन अठारह साल पुरानी हो चुकी थी. पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन डेढ़ दर्जन मुकदमों को एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून ट्रिब्यूनल को ट्रांसफर कर दिए थे.
एनजीटी कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान सबसे पुरानी जनहित याचिका के पैरोकार वकील विजय श्रीवास्तव और सुनीता शर्मा की तरफ से कहा गया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की रोक के बावजूद बिजनौर से लेकर बलिया तक गंगा किनारे अधिकतम बाढ़ बिंदु यानी हाइएस्ट फ्लड लेवल एरिया में निर्माण हो रहे हैं. प्रयागराज शहर में हर साल बाढ़ आने की सबसे बड़ी वजह भी यही है.
कोर्ट में 27 मई को सुनवाई
एनजीटी कोर्ट ने फ्लड एरिया में हो रहे निर्माण पर नाराजगी जताते हुए यूपी सरकार से 6 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. जनहित याचिकाओं से जुड़े हुए वकील विजय श्रीवास्तव और सुनीता शर्मा ने बिजनौर से बलिया तक मॉनिटरिंग और रोकथाम का काम सेंट्रल वाटर कमीशन से ही कराए जाने की भी गुजारिश कोर्ट से की. एनजीटी कोर्ट इस मामले में अब 27 मई को सुनवाई करेगी.
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