भारत के कई प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक गढ़मुक्तेश्वर है यह उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में गंगा किनारे स्थित है. गंगा तीर्थ नगरी के रूप में गढ़मुक्तेश्वर का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव ने श्री परशुराम से यहां शिव मंदिर की स्थापना करवाई थी. उस समय इसे खाण्डवी वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता था. शिव पुराण के अनुसार यहां शिव मंदिर की स्थापना और बल्लभ सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र होने के कारण इस स्थान का नाम शिवबल्लभपुर पड़ा.
महर्षि दुर्वासा ने दिया था शिव गणों को दिया था श्राप
शिवपुराण के अनुसार एक बाद महर्षि दुर्वासा मंदराचल पर्वत पर तपस्या करने में लीन थे. तभी भगवान शिव के गण घूमते हुए वहां पहुंचे और उनका महर्षि दुर्वासा का उपहास उड़ाने लगे. तब क्रोधित होकर दुर्वासा ने गणों को पिशाच बनने का श्राप दे दिया.
श्राप की बात सुनकर शिव के गण महर्षि दुर्वासा के चरणों में गिरकर इससे मुक्त होने की प्रार्थना करने लगे. तब महर्षि ने बताया कि श्राप से मुक्त होने के लिए शिवबल्लभ जाकर भगवान शिव की तपस्या करनी होगी. इसके बाद शिव गण शिवबल्लभ आकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान शिव की तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगावन शिव ने पिशाच बने गणों को मुक्ति दे दी. तब से इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर और बाद में गढ़मुक्तेश्वर हो गया.
कार्तिक महीने में लगता है मेला
महाभारत काल के दौरान यहां पर पांडु पुत्र युधिष्ठिर ने यहां पर भगवान शिव की पूजा की थी दरअसल महाभारत के विनाशकारी युद्ध के बाद युधिष्ठिर को आत्मग्लानि हुई. तब वह भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर युद्ध में मारे गए सभी लोगों की आत्मा की शांति के लिए गढ़मुक्तेश्वर में भगवान शिव की पूजा की और गंगा में स्नान करके पिंड दान किया. इसके बाद यहां हर साल कार्ति शुक्ल के अष्टमी के दिन मेला लगने लगा.
गढ़ मुक्तेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देशभर से श्रद्धालु के यहां गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. यहां स्थित मंदिरों में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं. दूर दराज से आने वाले लोग यहां मन्नत, मुंडन संस्कार और पिण्ड दान जैसे धार्मिक कर्म कांड करते हैं. यहां लगने वाला मेला 10 दिनों तक चलता है.
महाभारत काल के मिले हैं अंश
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान यह शहर हस्तिनापर के अंतर्गत आता था. इसके अलावा खाण्डवी वन क्षेत्र में एक पुष्पावती उद्यान था जिसे द्रोपदी ने निर्मित करवाया था. गढ़ मुक्तेशवर से तकरीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर अनुपशहर के अहार गांव में प्राचीन काल के अवशेष मिले हैं. पुरातत्व विभाग के अनुसार यह अवशेष महाभारत काल के हैं.
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