गाजियाबाद: दीपावली का त्यौहार नजदीक है लेकिन दिल्ली से सटे गाजियाबाद में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि उन्हें दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं है, त्यौहार कैसे मनाएं. ये वो मेहनतकश लोग हैं जो किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते हैं. लेकिन, कोरोना की वजह से इनकी जिंदगी दुश्वार हो गई है.
कोरोना की मार से नहीं उबर पाए ऑटो चालक
ऑटो रिक्शा चालक कोरोना की मार से अभी भी नहीं उबर पाए हैं. रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े होने वाले ऑटो रिक्शा चालकों को आज भी सवारियों का इंतजार है. लोगों में कोरोना का डर है और पूरी तरह से ट्रेनों के संचालन भी शुरू नहीं हुआ है जिसकी वजह से ऑटो चालकों को सवारियां नहीं मिल रही हैं. आलम ये है कि ऑटो रिक्शा चालक इस बार दीपावली के पर्व भी नहीं मना पाएंगे.
नहीं नजर आ रही हैं सवारियां
कोरोना काल के समय में मार्च से ही ट्रेनों को बंद कर दिया गया था. हालांकि, अनलॉक के समय कुछ ट्रेनों को शुरू भी कर दिया गया था. मगर अभी भी रेलवे पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटा है जिसके चलते सिर्फ कुछ ही लोग ही रेलवे स्टेशन आ रहे हैं. रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े ऑटो रिक्शा चालक दो-दो दिनों तक सवारियों की राह ताकते हैं लेकिन सवारियां नजर नहीं आ रही हैं.
घर चलाने में हो रही है दिक्कत
ऑटो चालकों का कहना है कि कुछ ट्रेनों को चालू भी किया गया है. ऐसे में वो ही लोग रेलवे स्टेशन आते हैं जिनका रिजर्वेशन होता है. स्टेशन आने वाली सवारियां ओला या उबर या प्राइवेट टैक्सी से आना पसंद करते हैं. वजह है कोरोना का डर. इस डर की वजह से ही रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े ऑटो में कोई सवारी नहीं बैठती. जिससे ऑटो चालकों को अपना घर चलाने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
पिता से बेहतर भला कौन समझ सकता है
एक ऑटो चालक प्रमोद का कहना है कि कोरोना कॉल में जब देश में लॉकडाउन लगा तब बहुत सारे लोगों की रोजी-रोटी पटरी से उतर गई थी. धीरे-धीरे काम धंधे शुरू हुए हैं लेकिन, आर्थिक स्थिति अब भी ऐसी ही बनी हुई है कि त्यौहार पर बच्चे मिठाई और कपड़े का इंतजार करेंगे. लेकिन, जब पिता खाली हाथ जाएगा तो उनके दिल पर क्या गुजरेगी ये पिता से बेहतर भला कौन समझ सकता है.
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