Ghazipur News Today: गाजीपुर के दिलदारनगर के रहने वाले कुंवर नसीम रजा को प्राचीन और दुर्लभ चीजें संग्रह करने का जुनून है और इसी जुनून के चलते उनका नाम दूसरी बार इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हुआ है. नसीम रजा ने 100 वर्षों के दुर्लभ ईंटों का संग्रह किया है, जिसकी वजह से उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज किया गया है. इससे पहले 118 वर्ष पुरानी उर्दू मतदाता सूची संग्रह करने की वजह से उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज किया गया था.
नसीम रजा ने भारतीय टेराकोटा के 1896 से लेकर 1996 तक के 100 वर्षों की 72 ईंटों का संग्रह किया है. भारत में ईंटों पर चिन्ह या निशान,सन,दिनांक या नाम अंकित करने की प्रथा उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश शासन काल के दौरान शुरू हुई थी, जो कि 20 वीं सदी के 90 के दशक तक जारी रही. अब 21 वीं सदी में ईंटों पर नाम के ही अंकन की प्रथा रह गई है. तिथि या वर्ष के अंकन की प्रथा समाप्त हो चुकी है.
नसीम रजा ने कहां से संग्रहित की ईंटें
नसीम रजा बताते हैं कि उन्होंने वर्षवार ईंटों के संग्रह का बीड़ा उठाया था और इसके लिये उन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों का भ्रमण किया. विभिन्न राज्यों की प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों, खंडहरों, पुरानी गलियों, दरगाहों और कब्रिस्तानों से उन्होंने इन ईंटों को एकत्रित किया. इन ईंटों पर ईस्वी सन, हिजरी सन और फसली वर्ष में तिथियां अंकित है, जो की हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं में लिखी गई हैं. इन सभी को नसीम रजा ने वर्षवार संग्रहित किया और 27 मई 2024 को इंडिया बुक आफ रिकार्ड ने इसे अपने यहां दर्ज किया और इसका प्रमाणपत्र नसीम को भेजा.
क्या है ऐतिहासिक महत्व
प्राचीन वस्तुओं के संग्रह से रिसर्च करने वाले स्कॉलर्स को सहूलियत मिलती है और नसीम रजा का मानना है कि कोई भी भविष्य में होने वाले इस तरह के किसी भी रिसर्च में उनका ये संग्रह मील का पत्थर साबित होगा. नसीम के पास ईंटों के इस संग्रह के अलावा मुगलकालीन दस्तावेज,पांडुलिपियां, फरमान,देश विदेश के अति प्राचीन सिक्के और नोट का अनोखा संग्रह है. नसीम के पास 100 साल से ज्यादा की शादियों के कार्ड का भी अनूठा संग्रह है. फिलहाल नसीम का नाम दूसरी बार इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज होने से क्षेत्रवासियों में हर्ष का माहौल है.
(आशुतोष त्रिपाठी की रिपोर्ट)
ये भी पढ़ें: 'लोकतंत्र में विचारों की ही लड़ाई है...', RSS नेता के बयान का सपा ने किया समर्थन