Gonda News: 84 कोसी परिक्रमा को लेकर गोंडा में तैयारी तेज, जानें- श्रद्धालु कहां करेंगे परिक्रमा और क्या है मान्यता?
हिंदुओं में 84 लाख योनियों में भटकने से बचने के लिए अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की काफी मान्यता है. राजा दशरथ के समय अयोध्या 84 कोस में फैली थी. इसे रामनगरी की सांस्कृतिक सीमा कहा जाता है.
Gonda News: धर्म नगरी अयोध्या से 84 कोसी परिक्रमा की शुरुआत होने वाली है. 84 कोसी परिक्रमा उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के 5 जिलों से होते हुए अयोध्या (Ayodhya) में समाप्त होगी. राज्य के बस्ती (Basti) के मखौड़ा धाम (Makhauda Dham) से राम भक्त और श्रद्धालु परिक्रमा की शुरुआत करेंगे. इसके बाद अयोध्या होते बाराबंकी से गोंडा पहुंचेंगे, जहां से वे दूसरे जिलों के लिए चले जाएंगे. गोंडा के हरिहर दास आश्रम, बराह भगवान मंदिर, राम जानकी मंदिर, उमरी मंदिर का एक-एक दिन परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु रात्रि विश्राम के बाद पूजा-अर्चना करके यहां से निकल जाते हैं.
इस बार 84 कोसी परिक्रमा को भव्य बनाने के लिए विशेष तैयारियां की जा रही है, क्योंकि भगवान राम का विशाल मंदिर बन रहा है और गोंडा के कुछ सीमाओं को आने वाले दिनों में अयोध्या में भी जोड़ा जाएगा. फिलहाल 84 कोसी परिक्रमा के लिए श्रद्धालु उत्साहित हैं. लोगों का मानना है कि यहां 50 से लेकर 100 की संख्या में श्रद्धालुओं का जत्था एक साथ आकर सरयू नदी में स्नान करते हैं और फिर यहां के मंदिरों में पूजा-पाठ करते हैं.
84 कोसी परिक्रमा को लेकर ये है मान्यता
हिंदुओं में 84 लाख योनियों में भटकने से बचने के लिए अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की काफी मान्यता है. राजा दशरथ के समय की अयोध्या 84 कोस में फैली थी. इसे राम नगरी की सांस्कृतिक सीमा कहा जाता है. भगवान राम से जुड़े पौराणिक स्थल 84 कोसी परिक्रमा पथ के साथ इर्द-गिर्द भी स्थित हैं. बताया जाता है कि अयोध्या से 20 किमी उत्तर स्थित बस्ती जिले के मखौड़ा धाम से 84 कोसी परिक्रमा शुरू होती है. रास्ते में कुल 21 पड़ाव आते हैं. मान्यता है कि इसी स्थल पर युगों पूर्व राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की कामना से यज्ञ किया था.
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों की मानें तो राजा दशरथ ने देवताओं से पुत्र प्राप्त करने के लिए अयोध्या से लगभग 20 किमी दूर मनोरमा नदी के तट पर पुत्रयष्ठी यज्ञ किया था. इसके बाद उन्हें अपनी तीन पत्नियों से चार पुत्रों का वरदान मिला. 84 कोस परिक्रमा उसी स्थान से शुरू होती है, जहां यज्ञ किया गया था, जिसे अब बस्ती में मखौड़ा के रूप में पहचाना जाता है.
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