Gonda Woman story: गोंडा में महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ कर स्वयं को स्वावलंबी बनाने के साथ समूह की अन्य महिलाओं को रोजगार देकर धनोपार्जन कर रही हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ मिलकर एक नया प्रयोग शुरू किया गया है. स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं जल्द ही बिजली बिलिंग मशीन के साथ नजर आएंगी. ये महिलाएं घर-घर जाकर उपभोक्ताओं को बिजली का बिल भी देंगी और उनका बिल भी जमा करेंगीं. इसके साथ ही इन स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को ग्रमीण क्षेत्रों में ग्रामीणों को बैंकिंग सुविधाए या छोटी मोटी लेन देन के लिए भी कार्यरत किया गया है, तो वही जानकी आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं फिनायल बनाने का काम समूह की अन्य महिलाओं को रोजगार दे रही है. 


बिजली बिलिंग के ले रही है ट्रेनिंग


स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं बिजली बिलिंग की ट्रेनिंग स्थापित केंद्र से लेती हैं.  ग्रामीण क्षेत्रों से बिजली बिलों की वसूली हमेशा से विभाग के लिए बड़ा चैलेंजिग रहा है. इसी वजह से विभाग ने आजीविका मिशन से जुड़ी समूह की महिलाओं को ये काम सौंपा है. विभाग की मंशा है कि उनके ज्यादा से ज्यादा कलेक्शन सेंटर हों, ताकि समय से बिलिंग हो और उनका भुगतान हो जाए. शासन की इस पहल से उपभोक्ताओं को उनके दरवाजे पर ही सुविधा मिलेगी. प्रशिक्षण में इन महिलाओं को मीटर रीडिंग, बिल निकालने और जमा करने के तौर-तरीके सिखाए जा रहे हैं. 


आत्मनिर्भर बन रही है महिलाएं


किरन देवी अपनी ट्रेनिंग पूरा कर अपने गांव ख्वाजा जोत में बिल जमा करती हैं. इससे इनके जानकी आजीविका स्वयं सहायता समूह की भी आर्थिक मदद हो रही है. किरन देवी ने बताया कि, वह अपने स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं के साथ फिनायल बनाने का काम करती हैं. इस समूह से जुड़ी महिलाओं को फिनायल बिक जाने पर खासा लाभ होता है और उनका जीवन यापन आराम से चल जाता है. अब इस कड़ी में उनके रोजगार का एक और तरीका जुड़ गया है. अब यह महिलाएं ग्रामीणों को बिजली का बिल जमा करने के लिए प्रेरित भी करती हैं और उनका बिल भी जमा कराने में मदद करती है. बिल जमा करने से उनके समूह को महीने में हजारों रुपयों की मदद मिल जाती है.


बैंक लेन देन में भी कर रही हैं मदद


स्वयं सहायता समूह की महिलायें सिर्फ बिजली बिल जमा कर शासन प्रशासन के कार्यों में हाथ नहीं बटा रही हैं, बल्कि बैंक से संबंधित कार्य कर ग्रमीणों व बैंक की मदद भी कर रही हैं. ऐसी ही मां बाराही स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष रेनू दुबे हैं. जो अपने गांव नारायणपुर शाल में गांव वालों की मददगार बन कर उभरी है. रेनू ने बीसी सखी यानी बैंक कॉरेसपोंडेंस के प्रशिक्षण के लिए आवेदन किया और प्रशिक्षण प्राप्त कर बैंक से लेन देन का कार्य गांव में करती हैं. इससे इन्हें रोजगार भी मिला और ग्रमीणों को बैंक के चक्कर लगाने से छुटकारा. ग्रमीण भी खुश हैं कि, अब उन्हें अगर कम रकम निकालना है तो अब बैंक व एटीएम के चक्कर नहीं लगाना पड़ता.


डिजिटल मोड से हो रहा है लेनदेन 


ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं बैंकिंग सखी कॉरस्पॉडेंट महिलाओं द्वारा दी जा रही. ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं डिजिटल मोड से लोगों के पैसों का लेनदेन करती हैं. बीसी सखी योजना के माध्यम से राज्य की महिलाओं को रोजगार का अवसर मिल रहा है. इन बीसी सखियों को 4000 रुपये प्रति माह ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा दिया जाता है. साथ-साथ उन्हें कुछ जरूरी उपकरण भी उपलब्ध कराए जाते हैं, जिनमें फिंगर स्कैनर व माइक्रो एटीएम सिस्टम मुख्य है. इस योजना को अच्छे से चलाने के लिए 75000 रुपये का लोन भी दिया जाता है. जिसका उपयोग करके बीसी सखियां अपना काम आसानी से कर सकें. गोण्डा में 982 ग्राम पंचायतों से बीसी सखी के लिए आवेदन आये हैं, जिनमें से अभी 115 बीसी सखी के लिए ट्रेनिंग ले चुके हैं. 75 बीसी सखी को आर्थिक मदद दी जा चुकी है. अभी तक गोण्डा जिले में करीब 56 लाख रुपयों की आर्थिक सहायता स्वयं सहायता समूहों को दिया जा चुका है.


ये भी पढ़ें.


Kanpur News: अरविंद त्रिपाठी को BJYM में मंत्री बनाये जाने पर मचा बवाल, थाने के रिकॉर्ड में हैं हिस्ट्रीशीटर