Gonda News: इस गांव में 66 साल से नहीं मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान
UP News: ग्रामीणों का मानना है, 1955 में गांव में रक्षाबंधन मनाकर बहन ने भाई की कलाई पर राखी बांधी थी उसी दिन गांव में एक की हत्या हो गई. इसके बाद रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है.
Uttar Pradesh News: भाई बहन के प्रमुख त्योहर रक्षाबधन (Raksha Bandhan 2022) में बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं तो भाई भी अपनी बहन की रक्षा का प्रण करता है. रक्षाबंधन का त्योहार तो पूरे देश में मनाया जाता है. 21वीं सदी में लोग हाईटेक होने की बात करते हैं. हर एक परिवार में एंड्राइड फोन होगा लेकिन आज के दौर में भी लोग कुछ भ्रांतियों को मानने से पीछे नहीं हट रहे हैं. जहां पूरे देश में 12 अगस्त को भाई बहन का पर्व त्यौहार रक्षाबंधन मनाया जाएगा तो वहीं यूपी के गोंडा में जिला स्थित भीकमपुर जगत पुरवा गांव में आजादी के 66 साल हो जाने के बाद भी यहां पर बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधती हैं.
गांव वाले क्यों नहीं मनाते हैं रक्षाबंधन
ग्रामीणों का मानना है कि जब सन 1955 में इस गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाकर बहन ने भाई की कलाई पर राखी बांधी थी उसी दिन गांव में एक की हत्या हो गई थी. उसी के बाद से अभी तक गांव में रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं मनाया जाता है. लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन किसी परिवार में बच्चे का जन्म हो जाए तो फिर से रक्षाबधन मनाने के परंपरा की शुरुआत हो जाएगी.
इसपर क्या कहते हैं गांव के लोग
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिला स्थित भीकमपुर जगत पुरवा गांव में रक्षा बंधन के त्योहार को लेकर कोई उत्सुकता नहीं रहती है. गांव के लोगों का कहना है कि अगर उन्होंने रक्षा बंधन का त्योहार मनाया तो उनके साथ कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है. गांव के लोग कई अजीबोगरीब घटनाओं को देखते हुए इस त्योहार को मनाने से बचते हैं. रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्तों का त्यौहार होता है और रक्षा बंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा का वचन देते हैं. कहते हैं कि राजसूय यज्ञ के समय द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को रक्षा सूत्र बांधा था और तभी से ये परंपरा चली आ रही है. उत्तर प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है जहां बरसों से राखी का त्योहार नहीं मनाया जा रहा है.
घबरा जाते हैं रक्षाबंधन का नाम सुनकर
लोग कहते हैं कि वजीरगंज पंचायत के इस गांव में पांच दशक से ज्यादा समय बीत चुका है जब बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधी थी. इतना ही नहीं, इसके आस-पास के गांव में भी लोग रक्षा बंधन का नाम सुनकर घबरा जाते हैं. रक्षा बंधन पर गांव में कोई बहन अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधती है. गांव के लोग नहीं चाहते कि उनके पूर्वजों द्वारा बनाई गई इस परंपरा को तोड़ा जाए. लोग कहते हैं कि यहां के किसी भी घर में जब कोई बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं तो अजीब सी घटनाएं देखने को मिलती हैं.
किसी ने राखी मनाने की हिम्मत नहीं दिखाई
ग्रामीम बताते हैं कि देश की आजादी के आठ साल बाद 1955 में रक्षा बंधन के दिन यहां के एक परिवार में शख्स की हत्या कर दी गई थी. तभी से इस गांव में बहनें रक्षा बंधन पर अपने भाइयों की कलाई पर राखी नहीं बांध रही हैं. करीब एक दशक पहले भी बहनों के अनुरोध पर रक्षा बंधन का त्योहार शुरू करने का फैसला किया गया था लेकिन यहां फिर एक अजीबोगरीब घटना हो गई. तब से दोबारा किसी ने राखी मनाने की हिम्मत नहीं दिखाई. यह डर आज भी बहनों को भाई की कलाई पर राखी बांधने से रोकता है.
रक्षाबंधन पर कर रहे इस बात का इंतजार
गांव के निवासियों का कहना है कि अगर रक्षा बंधन के त्योहार पर उसी परिवार में किसी बच्चे का जन्म होता है तो इस त्योहार की परंपरा को फिर से शुरू किया जा सकता है. इस लम्हे का इंतजार देखते-देखते करीब तीन पीढ़ियां गुजर गईं हैं. सालों से यहां हर भाई की कलाई सूनी ही नजर आती है. गांव का हर एक शख्स अब रक्षा बंधन पर किसी बच्चे के पैदा होने का इंतजार कर रहा है. उनका कहना है कि ऐसा होने के बाद ही गांव में रक्षा बंधन मनाया जा सकेगा. जगत पुरवा गांव की छोटी सी आबादी के बीच करीब 200 बच्चे रहते हैं जिन्हें राखी पर अशुभ घटनाओं का डर रहता है. गांव के बुजुर्गों से भी अक्सर इसके बारे में किस्से सुनने को मिलते हैं.