Qazi Mufti Waliullah: गोरखपुर शहर के काजी मुफ्ती वलीउल्लाह सुपुर्द-ए-खाक, दुआ के लिए उठे हजारों हाथ
UP News: शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह सुपुर्द-ए-खाक हो गए. उन्हें नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. अंतिम विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे.
Gorakhpur News: शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह सुपुर्द-ए-खाक हो गए. जुमे की नमाज के बाद शहर की जामा मस्जिद उर्दू बाजार में उनकी नमाज-ए-जनाजा अदा की गई. इसके बाद उन्हें नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचे और उनके मगफिरत की दुआएं मांगी. शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनका गुरुवार की शाम 7 बजे 96 वर्ष की उम्र में इंतकाल हो गया. वे उर्दू, अरबी, फारसी के विद्वान रहे और मदरसा अंजुमन इस्लामिया में बतौर शिक्षक रिटायर होने के बाद भी सेवा देते रहे. शहर के अमन-ओ-चैन और सादगी के लिए भी शहर काजी जाने जाते रहे हैं.
गोरखपुर के तुर्कमानपुर के रहने वाले शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह का गुरुवार की शाम 7 बजे 96 वर्ष की उम्र में इंतकाल हो गया. शुक्रवार को जामा मस्जिद उर्दू बाजार में नमाज-ए-जनाजा के बाद जब उनकी अंतिम यात्रा निकली, तो हजारों लोग उनके जनाजे के साथ हो लिए. शुक्रवार को नमाज-ए-जनाजा के बाद उन्हें नार्मल स्थित हजरत मुबारक खां शहीद कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया. उनकी मगफिरत की दुआ के लिए हजारों हाथ उठे. जहां से भी उनका जनाजा गुजरा वहां आवागमन को रोकना पड़ा. हजारों की संख्या में लोग उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए साथ हो चले.
कौन थे काजी मुफ्ती वसीमउल्लाह?
मुफ्ती वलीउल्लाह अपने पीछे चार पुत्र और चार पुत्रियों को छोड़ गए हैं. उनकी पत्नी का हाल ही में इंतकाल हुआ है. शहर काजी 1968 में गोरखपुर आए और परिवार के साथ गोरखपुर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में स्थित अंजुमन भवन में किराए पर रहने लगे. मुफ्ती वलीउल्लाह ने गोरखपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 1984 में उर्दू में एमए किया और पंजाब यूनिवर्सिटी से अरबी में आनर्स व फारसी-अरबी में एमए किया. मुस्लिम पर्सनल लॉ में उन्होंने दारूल उलूम देवबंद सहारनपुर से पीएचडी की. इसके अलावा उन्होंने मौलवी, आलिम, फाजिल के साथ कई डिग्रियां हासिल की. मदरसा अंजुमन इस्लामिया खूनीपुर में वे हदीस, तफसीर, अरबी अदब व तिब पढ़ाने लगे.
साल 2000 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी वे शिक्षकों की कमी की वजह से तालीम देते रहे. उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में काफी समय तक छात्रों को फारसी की तालीम दी. शहर काजी वलीउल्लाह सादगी के लिए भी पहचान रखते रहे हैं. वे अक्सर लोगों को साइकिल से आते-जाते दिखाई देते रहे हैं. शहर काजी का जन्म टांडा अंबेडकरनगर में हुआ था. उन्होंने शुरुआती तालीम टांडा में हासिल की. इसके बाद वे सन् 1950 में दारुल उलूम देवबंद सहारनपुर आगे की तालीम हासिल करने के लिए पहुंचे.