Gorakhpur News: माह-ए-रमज़ान सब्र, भलाई, रहमत और बरकत का महीना है. रमज़ान में मुसलमान गरीब, असहाय और जरूरतमंदों का ख्याल रख कर उनकी मदद कर रहे हैं. माह-ए-रमज़ान की सुबह-शाम खैर व बरकत में गुजर रही है. अल्लाह के करम से शनिवार को 12वां रोजा मुकम्मल हो गया. तरावीह की नमाज़ का सिलसिला जारी है. कई मस्जिदों में तरावीह नमाज़ के दौरान एक कुरआन-ए-पाक मुकम्मल हो चुका है. मस्जिदों में रमजान की रौनक देखने को मिल रही है. बाजार में रौनक है. इत्र और टोपी खरीदने के लिए लोग नखास की साढ़े छह गली पहुंच रहे हैं.
पूरी दुनिया में अमनो-अमान की दुआ मांगी जा रही है. रमजान का मुबारक महीना और फिजा में घुली रूहानियत से दुनिया सराबोर हो रही है, ऐसा लगता है कि चारों तरफ नूर की बारिश हो रही हो. साढ़े छह गली नखास में इत्र व टोपी की खूब बिक्री हो रही है. अख्तर आलम ने बताया कि रमज़ान में उनके यहां तमाम तरह के इत्र व अलग-अलग किस्म की टोपियां बिक रही हैं.
'नेक राह पर चलने का मौका देता है रमज़ान'
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि आज हम एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं, जहां इंसानियत दम तोड़ती नज़र आ रही है. लोगों पर खुदगर्ज़ी हावी होती जा रही है. ऐसे में रमज़ान खुद की खामियों को दूर कर नेक राह पर चलने का मौका देता है. रमजान में चाहे दिन हो या फिर दुनिया दोनों संवरती है. रोज़ेदार अपनी आदतों की विपरीत अल्लाह के हुक्म का पूरी तरह पाबंद हो जाता है. समय पर सहरी और इफ्तार करता है.
अल्लाह को राज़ी करने के लिए रोज़े की हालत में भूख और प्यास बर्दाश्त करना मुसलमानों को सब्र सिखाता है. इंसान जब भूखा प्यासा होता है तो उसका नफ़्स सुस्त और कमज़ोर होकर गुनाहों से बचा रहता है. उसे इबादत में लुत्फ आने लगता है. जब अल्लाह की बारगाह में इबादत कुबूल होती है तो बंदों की दुआ भी कबूल होने लगती है. रोज़े की हालत में अपने शरीर के हर हिस्से जैसे आँख, जुबान, कान और दिल की हिफाज़त करता है. रमजान बंदों को अच्छाई का अभ्यास कराता है, ताकि ग्यारह माह भी इसी तरह गुजर जाए.
अल्लाह को राज़ी करने का महीना है रमज़ान
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि इस्लामी बारह महीनों में रमज़ान को सबसे ज़्यादा अहमियत हासिल है, क्योंकि अल्लाह ने अपने बंदों के लिए रमज़ान में बेपनाह बरकत और रहमत अता की है. रमज़ान हर ऐतबार से खास है कि बंदा परहेज़गार बन जाए. तक़वा अख़्तियार कर ले, क्योंकि जब इंसान के अंदर डर पैदा हो जाता है तो वह हलाल व हराम की तमीज़ करने लगता है. रमज़ान में कोई शख्स किसी नेकी के साथ अल्लाह का करीबी बनना चाहे तो उसको इस क़दर सवाब मिलता है गोया उसने फ़र्ज़ अदा किया. रमजान अल्लाह को राजी करने का महीना है.
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