Gorakhnath Temple Khichadi Mela: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में प्रसिद्ध 'खिचड़ी मेला' कड़ी सुरक्षा के बीच रविवार से शुरू हो रहा है. मेले में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं को तीन लेयर की सुरक्षा से गुजरना होगा. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) अखिल कुमार ने कहा कि श्रद्धालुओं को सुरक्षा के तीन स्तरों से गुजरना होगा. पहली चेकिंग शहर के प्रवेश द्वारों पर, दूसरी गोरखनाथ मंदिर परिसर के प्रवेश द्वारों पर और तीसरी मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वारों पर की जाएगी.
बम से उड़ाने की मिल रहीं धमकियां
गोरखनाथ मंदिर को बम से उड़ाने की कई धमकियां मिल रही हैं, जिनमें से कुछ फर्जी हैं, जिससे सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है. चंपा देवी पार्क में 11 से 17 जनवरी के बीच सप्ताह भर चलने वाले गोरखपुर महोत्सव को लेकर जिला प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली है. महोत्सव के नोडल अधिकारी और जीडीए के उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह तंवर ने मीडिया को बताया कि महोत्सव में करीब 200 कलाकार हिस्सा लेंगे जिनमें 180 स्थानीय कलाकार भी शामिल हैं.
CM योगी आदित्यनाथ व्यवस्थाओं की कर रहे हैं निगरानी
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मेला परिसर को चार सुपर जोन में बांटा गया है. साथ ही मंदिर परिसर में थाना भी स्थापित किया गया है. वार्षिक खिचड़ी मेला भारत के साथ-साथ नेपाल के लाखों भक्तों को आकर्षित करता है और गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व्यक्तिगत रूप से व्यवस्थाओं की निगरानी कर रहे हैं.
त्रेतायुग युग में हुई शुरू हुई यह परंपरा
मान्यता के अनुसार त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मशहूर ज्वाला देवी मंदिर गए. यहां पर सिद्ध योगी को देख देवी साक्षात प्रकट हो गर्इं और गुरु को भोजन का आमंत्रण दिया. जब गोरक्षनाथ ने वहां पहुंचकर तापसी भोजन को देखा तो उन्होंने कहा कि मैं भिक्षा में मिले चावल, दाल को ही खाता हूं. इस पर ज्वाला देवी ने कहा कि मैं चावल दाल पकाने के लिए पानी गरम करती हूं, आप भिक्षाटन पर चावल और दाल लेकर आइए. इसके बाद गोरक्षनाथ भिक्षाटन करते हुए गोरखपुर पहुंचे और राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए.
ज्वाला देवी के मंदिर में आज भी खौल रहा है पानी
वहीं उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने गोरक्षनाथ को साधना में लीन देखते हुए उनके अक्षय पात्र में चावल और दाल डालना शुरू कर दिया. हालांकि काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी वह पात्र नहीं भरा तो लोग इस चमत्कार मानने लगे और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे. तभी से गुरु की इस तपोस्थली पर खिचड़ी पर चावल-दाल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई हैं. वहीं ज्वाला देवी के मंदिर में आज भी पानी खौल रहा है.