अनोखी है इस शिव मंदिर की कहानी, महमूद गजनवी ने शिवलिंग पर खुदवा दिया था 'कलमा', लोग आज भी करते हैं पूजा
गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर खजनी कस्बे के सरया तिवारी गांव में सदियों पुराना नीलकंठ महादेव का मंदिर है. महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया तो उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया. लेकिन, शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ.
गोरखपुरः महमूद गजनवी ने जब भारत पर आक्रमण किया तो उसने क्रूरता की हदें पार कर दीं. उसने हिन्दुस्तान को लूटा और मंदिरों को ध्वस्त किया. गोरखपुर में भी एक ऐसा शिव मंदिर है, जो सदियों से उसकी क्रूरता की दास्तान बयां कर रहा है. महमूद गजनवी तो चला गया. लेकिन, जब वो इस शिव मंदिर में बने शिवलिंग को तोड़ नहीं पाया, तो उसने इस पर कलमा खुदवा दिया. जिससे हिन्दू धर्म के लोग यहां पर पूजा ना कर सकें. उसने जिस मंशा से शिवलिंग पर कलमा खुदवाया था, वो पूरी नहीं हुई. शिव भक्त आज भी यहां पर पूजा-पाठ के साथ जल और दुग्धाभिषेक के लिए आते हैं. आज भी यहां हर शिवरात्रि, सावन और नागपंचमी के दिन भक्तों का तांता लगा रहता है.
हजारों साल पुराना है शिवलिंग गोरखपुर से 30 किलोमीटर दूर खजनी कस्बे के सरया तिवारी गांव में सदियों पुराना नीलकंठ महादेव का मंदिर है. मंदिर के पुजारी आचार्य अतुल त्रिपाठी बताते हैं कि शिव मंदिर में शिवलिंग हजारों साल पुराना है. मान्यता है कि ये शिवलिंग भू-गर्भ से स्वयं प्रकट हुआ था. जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया, तो ये शिव मंदिर भी उसके क्रूर हाथों से अछूता नहीं रहा. उसने मंदिर को ध्वस्त कर दिया. लेकिन, शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ. जब गजनवी थक-हार गया, तो उसने शिवलिंग पर कलमा खुदवा दिया, जिससे हिन्दू इसकी पूजा न कर सकें. महमूद गजनवी ने जब भारत पर आक्रमण किया तो इसे तोड़ने की कोशिश की. लेकिन, वो कामयाब नहीं हो सका. इसके बाद उसने इस पर 'लाइलाहइलाल्लाह मोहम्मद उररसूलउल्लाह' लिखवा दिया.
नहीं लग पाती है छत स्थानीय निवासी और पेशे से अधिवक्ता धरणीधर राम त्रिपाठी बताते हैं कि महमूद गजनवी और उसके सेनापति बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट किया था. उन्होंने सोचा था कि वो इस पर कलमा खुदवा देंगे तो हिन्दू इसकी पूजा नहीं करेंगे. लेकिन, महमूद गजनवी के आक्रमण के सैकड़ों साल बाद भी हिन्दू श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के साथ दूध और चंदन आदि का लेप भी लगाते हैं. इस मंदिर पर छत नहीं लग पाती है. कई बार छत लगाने की कोशिश की गई. लेकिन, वो गिर गई. सावन के महीने में इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है.
कम नहीं हुई लोगों की आस्था यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन करने आत हैं और अपनी मनोकामना पूर्ति की मन्नतें भी मांगते हैं. शिवलिंग पर कलमा खुदा होने के बावजूद लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आई है. लोग यहां पर आते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं. उन्होंने बताया कि इसके पास में ही एक तालाब भी है. खुदाई में यहां पर लगभग 10-10 फीट के नर कंकाल मिल चुके हैं, जो उस काल और आक्रांताओं की क्रूरता को दर्शाते हैं.
ध्वस्त करने का किया प्रयास यहां दर्शन करने आई इसी गांव की इन्द्रावती त्रिपाठी बताती हैं कि देश और विदेशों में रहने वाले हिन्दुओं के लिए भगवान शिव में विशेष आस्था होती है. जबसे शादी होकर वो इस गांव में आई हैं यहां रोज पूजा करती हैं. शिवरात्रि, सावन माह और नागपंचमी में इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. पूर्व में यहां पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने आक्रमण कर इसे ध्वस्त करने का प्रयास भी किया था. असफल होने पर उन्होंने शिवलिंग पर कलमा खुदवा दिया. यहां पर खुदाई में हड्डियां और दांत भी मिल चुके हैं.
नहीं टूटा शिवलिंग श्रद्धालु शिवम शुक्ला बताते हैं उन्होंने यहां के बारे में काफी सुन रखा था. इसलिए, रुद्रपुर से यहां पर दर्शन करने के लिए आए हैं. वहीं बीनू गौर बताती हैं कि वो इसी गांव की रहने वाली हैं. वो हमेशा इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आती हैं. वो कहती हैं कि इस मंदिर की इतनी महत्ता है कि देश और विदेश से भी लोग यहां पर आते हैं. वो बताती हैं कि कालान्तर में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था. जब शिवलिंग नहीं टूटा, तो इस पर आक्रमणकारियों ने कलमा खुदवा दिया.
पूरी होती है मनोकामना भगवान शिव को महादेव के नाम से भी पुकारा जाता है. यही वजह है कि सरया तिवारी गांव के इस शिवलिंग को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है. यहां के लोगों का मानना है कि इतना विशाल शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है. शिव के इस दरबार में जो भी भक्त आकर श्रद्धा से बाबा से कामना करता है, उसे भगवान जरूर पूरी करते हैं. इस शिवलिंग पर अरबी जुबान में 'लाइलाहइलाल्लाह मोहम्मद उररसूलउल्लाह' लिखा है.
बढ़ता गया शिवलिंग जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और पूरे देश के मंदिरों को लूटता और तबाह करता इस गांव में आया तो उसने और उसकी सेना ने इस प्राकृतिक शिवलिंग के बारे में सुनकर इसकी तरफ कूच किया. उसने महादेव के मंदिर को ध्वस्त कर दिया. इसके बाद शिवलिंग को उखाड़ने की कोशिश की, जिससे इसके नीचे छिपे खजाने को निकाल सके. उन्होंने जितना खोदा, शिवलिंग उतना ही बढ़ता गया. कहते हैं कि इस दौरान शिवलिंग को नष्ट करने के लिए कई वार भी किए गए. हर वार पर रक्त की धारा निकल पड़ती थी. इसके बाद गजनवी के साथ आए मुस्लिम धर्मगुरुओं ने ही महमूद गजनवी को सलाह दी कि वो इस शिवलिंग का कुछ नहीं कर पाएगा इसमें ईश्वर की शक्तियां विराजमान हैं. महमूद गजनवी को भी यहां की शक्ति के आगे झुकना पड़ा और उसने यहां से कूच करने में ही अपनी भलाई समझी.
खुदाई में मिले नर कंकाल इस मंदिर के आसपास के टीलों की खुदाई में जो नर कंकाल मिले, उनकी लम्बाई तकरीबन 10 से 12 फीट थी. उनके साथ कई भाले और दूसरे हथियार भी मिले थे, जिनकी लम्बाई 18 फीट तक थी. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पर कई कोशिशों के बाद भी कभी छत नहीं लग पाई है और यहां के शिव खुले आसमान के नीचे रहते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर के बगल में स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा का कुष्ठ ठीक हो गया था और तभी से लोग चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए यहां आकर पांच मंगलवार और रविवार स्नान करते हैं.
क्रूर इतिहास को समेटे हुए है मंदिर नीलकंठ महादेव का ये मंदिर सदियों से हिन्दूओं के धार्मिक महत्व का केन्द्र है. यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की इस मंदिर में विशेष आस्था है. नीलकंठ महादेव का ये मंदिर सदियों से अपने भीतर मुस्लिम आक्रमणकारियों के क्रूर इतिहास को समेटे आज भी शान से हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है.
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