गोरखपुर: मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का पांचवां दीक्षांत समारोह विद्त शोभायात्रा से प्रारम्भ हुआ. इस अवसर पर 16 मेधावियों को कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने स्वर्ण पदक पहनाकर प्रशस्ति पत्र दिया. इस दौरान उन्होंने अलग-अलग संवर्ग के छात्र-छात्राओं को दीक्षा भी दिलाई. इस दौरान उन्होंने कहा कि तकनीक के बल पर युवाओं को देश को आगे बढ़ाना होगा. उन्होंने कहा कि दहेज हत्या जैसी कुरीति को मिटाना होगा. वहीं, हर कॉलेज को कम से कम एक गांव को गोद लेकर उन्नत खेती, शिक्षा और तकनीक से आगे बढ़ाना होगा.
छात्र-छात्राओं को दी बधाई
कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के उपाधि और पदक पाने वाले छात्र-छात्राओं को बधाई दी. उन्होंने कहा कि ये भूमि भगवान बुद्ध, बाबा गोरखनाथ, संतकबीर और महामना मदन मोहन मालवीय की भूमि है. सभी को उपाधि और दीक्षा दी गई है. सभी को उज्ज्वल भविष्य की बधाई देती हूं. मेरे गेस्ट छोटे-छोटे बच्चे हैं. वे पहली पंक्ति में बैठे हैं. एक बच्चे से पूछा कि कहां आए हो. उसने बोला कि स्टेज पर आएंगे. उसने बताया कि यहां पर गोल्ड मेडल दिया गया है. ये विश्विद्यालय के गोद लिए गांव के बच्चे हैं. ये जब देखेंगे तो भविष्य के सपने सजोकर यहां पढ़ेंगे.
50 प्रतिशत बच्चे कॉलेज तक पहुंचें
नई शिक्षा नीति में इस बात को रखा गया है कि 50 प्रतिशत बच्चे कॉलेज तक पहुंचें. ये बच्चे पहली कक्षा में जाएंगे, उसके बाद वो दूसरी कक्षा में भी जाएं तो ये हमारा कर्तव्य है. जब 1998 में गुजरात की शिक्षामंत्री बनी तो स्कूल में 85% और 58% का छात्र-छात्राओं का साक्षरता का प्रतिशत था. 2001 में प्रवेश उत्सव योजना लाई गई. गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया गया. आज महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत 80 से अधिक हो गया है. पर्यावरणविद डाक्टर राजेन्द्र सिंह ने सही कहा है. हमें नदियों के साथ प्रकृति का दोहन किया. इसका परिणाम हम भुगत रहे हैं. आज साबरमती और नर्मदा में पानी है. जिसे लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. लोगों ने बोरवेल बंद कर दिए हैं.
सोलर पर काम कर रहे हैं
हमने साबरमती के किनारे बसे 5000 परिवार को दूसरी जगह शिफ्ट किया और उन्हें सभी सुविधाएं दीं. अटल बिहारी वाजपेई जी ने नदियों को जोड़ने की परिकल्पना को गुजरात में पूरी तरह से साकार किया. पर्यावरणविद डॉ राजेन्द्र सिंह ने पूरे देश में पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए काम किया है. किसानों के लिए भी काम किया है. इतना बड़ा सूर्य हमारे पास था. लेकिन हमने सोलर पर काम नहीं किया था. आज हम सोलर पर काम कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी भी सोलर का इस्तेमाल कर रही है. नई शिक्षा नीति की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है. इसमें 70 प्रतिशत पाठ्यक्रम केंद्र और शेष राज्य बना रहा है. पहले पाठ्यक्रम 10, 20 30 साल नहीं बदलते थे.
बाहर से तकनीक और उपकरण नहीं लाने पड़ेंगे
दुनिया तकनीक से साथ पढ़ाती थी. हम पुराने पाठ्यक्रम पर चलते थे. आज हम इसमें परिवर्तन कर सकते हैं. उन्नत भारत अभियान हमने शुरू किया है. कुलपति और पूरी टीम को बधाई देती हूं कि उन्होंने महिला क्लब बनाए हैं. कम से कम 5 गांव से कुरीतियां दूर होंगी. सेनेटाइजर, ऑटोमेटिक टनल और हर्बल सेनेटाइजर बनाने वाले केमिकल विभाग को बधाई देती हूं. आईआईटी, तकनीकी विश्विद्यालय और कृषि विश्विद्यालय मिलकर किसानों और महिलाओं को उन्नत तकनीक से जोड़ें. छोटे-छोटे कार्य हमारी यूनिवर्सिटी करें, तो हमें बाहर से तकनीक और उपकरण नहीं लाने पड़ेंगे.
शिक्षा हमें संस्कार देती है
देश को आजादी दिलाने वाले यही सोचते थे कि हम स्वतंत्र बने. हम अपनी जरूरतों को भी खुद ही पूरा करें. जेल में सजायाफ्ता महिलाओं से मिली. सभी से पूछा कि क्यों 20 से 25 साल की सजा क्यों हुई. उन्होंने दहेज नहीं लाने पर बहू को मारने की बात कही. फिर पूछा कि अब मिल गया, तो उन्होंने कहा कि अब कैसे मिलेगा. दहेज प्रथा और जमीन का झगड़ा परिवार को बर्बाद कर रहा है. जमीन तो वहां रह गई और परिवार बर्बाद हो गए. भाई ने भाई को मार दिया. शिक्षा हमें संस्कार देती है और आदर्श नागरिक बनाती है.
देश का भविष्य आपके हाथ में है
हमें संकल्प लेना होगा कि हम ऐसे कार्य न करें कि हमें जेल की सजा काटनी पड़े. ऐसे परिवार के बच्चे को कौन पालता होगा. उनका भविष्य और पीढ़ी कैसी होगी. महिलाओं और बेटियों के कुपोषण को खत्म करने के लिए गांव जाएं. एक कॉलेज एक गांव को गोद लें, बेटियों, फसल, शिक्षा पर कार्य करें, तो आदर्श गांव बन जाएगा. ये काम कठिन नहीं है. उन्होंने कहा कि समस्याओं की सूची बनाइए और गांव की समस्याओं को दूर करने के लिए कार्य करें. गांव की महिलाएं भी बेटियों को पढ़ाने के और प्रोफेसर, डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के बारे में सोचती हैं. देश का भविष्य आपके हाथ में है.
ग्लोबल शिक्षक बनने के लायक हैं
मुख्य अतिथि पर्यावरणविद जलपुरुष डॉ राजेन्द्र सिंह ने कहा कि ये दीक्षांत और इसके बाद का भविष्य आपको उज्ज्वल प्रकाश की ओर ले जाएगा. उपाधि प्राप्त करने के बाद आपके मन में भी कुछ नया करने का विचार जरूर होगा. तकनीक और इंजीनियरिंग कुछ बताती है. लेकिन इसे सनातन बनाना है. विज्ञान को सनातन के साथ जोड़कर कार्य करना है. पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर बने विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले हर विद्यार्थी को महामना से सनातन विकास की प्रक्रिया को अपनाकर ही आगे बढ़ें. तभी हम दुनिया को बता सकेंगे कि हम ग्लोबल शिक्षक बनने के लायक हैं.
भावी इंजीनियरों को बधाई
डॉ राजेन्द्र सिंह ने कहा कि जब तक हम सनातन विकास के साथ जुड़कर विकास को आगे ले जाते रहे तब तक हम दुनिया को सिखाते रहे. प्रकृति के पोषण के लिए पाठ्यक्रम शुरू हों, तो महामना की आत्मा जहां भी होगी खुश होगी. प्रकृति के संरक्षण, पोषण और संवर्धन के साथ हम आगे बढ़ेंगे, तो हम खुद को बचा सकेंगे. मैं आयुर्वेद का चिकित्सक रहा हूं. मुझे तो मंगू पटेल किसान ने धरती और प्रकृति की चिकित्सा करने के बारे में पढ़ाया, जिससे 12 नदियों को फिर से पुर्नजीवित कर पाया. दीक्षांत के दौरान उपाधि को प्राप्त करने के बाद युवा चुनौतियों को भी स्वीकार करते हैं, तो वे आगे बढ़ जाते हैं. मैं भविष्य के सपने संजोने वाले भावी इंजीनियरों को बधाई देता हूं.
विकास के लिए लगतार कार्य हो रहे हैं
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित यूपी सरकार के मंत्री संदीप कुमार सिंह ने कहा कि उन छात्र-छात्राओं को बधाई देता हूं जो उपाधि प्राप्त करने के बाद उज्ज्वल भविष्य की ओर कदम रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान करें. उनकी तपस्या के बूते ही आप यहां तक पहुंचे हैं. जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो गुरुओं और माता-पिता के आदर्शों को साथ लेकर चलें. तकनीक के क्षेत्र में सरकार लगातार कार्य कर रही है. युवाओं को स्वावलम्बी बनाने के साथ प्रदेश के विकास के लिए लगतार कार्य हो रहे हैं.
युवाओं को लक्ष्य बनाना चाहिए
प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली बीटेक सिविल इंजीनियरिंग की छात्रा प्रगति सक्सेना को 6 गोल्ड मेडल मिले हैं. वे कहती हैं कि उन्हें अच्छा लग रहा है. युवाओं को एक लक्ष्य बनाना चाहिए, जो देश और आसपास के लोगों की भलाई के लिए भी होना चाहिए. वे कहती हैं कि आईएएस ऑफीसर बनकर देश की सेवा करना है. बीटेक सिविल इंजीनिरिंग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले अनूप पाण्डेय कहते हैं कि माता-पिता और टीचर्स के सहयोग से वे यहां तक पहुंचे हैं. वे कहते हैं कि उन्हें पांच स्वर्ण पदक मिले हैं. युवाओं को चाहिए कि पढ़ाई के दौरान जो भी पढ़ें, वो ध्यान से पढ़ें.
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