UP News: मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ (Yogi Adityanth) के शहर गोरखपुर (Gorakhpur) में कई मुस्लिम परिवार (Muslim Families) हैं जो सावन के दो-तीन महीने पहले से ही कांवड़ियों (Kanwariyas) के लिए कपड़े और झोला तैयार करना शुरू कर देते हैं. ये परिवार बरसों से यह काम कर रहे हैं. ये परिवार तीन से चार माह तक कपड़ा और झोला तैयार कर उसे बाजार में बेचते हैं. बरसों से यही उनकी रोजी-रोटी का माध्‍यम भी है. इससे उन्हें तीन से चार लाख की कमाई हो जाती है. वह सरकार से औऱ अधिक बाजार और सब्सिडी मुहैया कराने की उम्मीद कर रहे हैं ताक कि वे इसे बड़े टेक्‍सटाइल बाजार के रूप में पहचान दे सकें.


इन इलाकों के परिवार बनाते हैं सावन के कपड़े


गोरखपुर के पिपरापुर, रसूलपुर, जफर कॉलोनी और इलाहीबाग में कई दर्जन ऐसे मुस्लिम परिवार हैं जो सावन शुरू होने के तीन से चार महीने पहले ही कांवड़ियों के कपड़े और झोला सिलना शुरू कर देते हैं. गोरखपुर और बस्ती मंडल के सात जिलों में शिव भक्तों को गेरुए रंग में रंगने वाले हाथ इन दिनों बेहद व्यस्त हैं. कई सालों से इनके घरों में ईद और बकरीद की खुशियां भी इन्हीं गेरुआ कपड़ों को सिलने से आती है.


बिहार भी भेजे जाते हैं ये कपड़े


यहां से सिले कपड़े और झोले सिर्फ गोरखपुर ही नहीं, बल्कि आसपास के दूसरे जिलों और बिहार भी भेजे जाते हैं. घर पर ही सभी सदस्य इस काम को करते हैं. ऐसे में इनकी अच्छी आमदनी हो जाती है. हालांकि पिछले दो से तीन साल इनके लिए काफी भारी गुजरे क्योंकि कोविड की वजह से बाबा धाम जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बेहद कम हो गई थी. इस वजह से इनका काम पूरी तरह से बंद हो गया था लेकिन इस बार स्थिति सामान्य होने पर एक बार फिर गेरुआ कपड़े और झोले की डिमांड बढ़ने लगी है.


यहां कारीगरों को इस बात की खुशी होती है कि इनके सिले कपड़े और झोले लेकर लोग अपनी मुराद पूरा करने के लिए बाबधाम जाते हैं. यहां पर बाबा धाम जाने वाले भक्तों के लिए विशेष छूट दी जाती है और नाममात्र का मुनाफा लेकर ही यह सभी कपड़े और झोले बनाते हैं. उनका मानना है कि वे शिव भक्तों के लिए कुछ कर पाते हैं, तो इनके लिए ये बेहद पवित्र काम है और इससे दोनों धर्मों के लोगों को एक साथ जुड़ने का मौका मिलता है.


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क्या बताते हैं झोला बनाने वाले कारीगर?


गोरखपुर के पिपरापुर के रहने वाले निजामुद्दीन बताते हैं कि वे 20 बरस से कांवड़ियों के लिए कपड़े और झोले सिल रहे हैं. उनके घर के लोग तीन-चार महीने पहले से ही इस काम में लग जाते हैं. वह बताते हैं कि सीजन में तीन से चार लाख का काम होता है. आमदनी की जहां तक बात है, वो खाने का खर्च भर कर निकल जाता है.  पिपरापुर की रहने वाली नुजहत जिया ने बताया कि वह 10 साल से कांवड़ियों का कपड़ा और झोला बना रही हैं. इससे उनके परिवार को आमदनी होती है और परिवार का खर्च भी चलता है. वह कहती हैं कि गोरखपुर में भाईचारा और अमन हमेशा कायम रहता है. यहां दोनों धर्म के लोग एक-दूसरे के त्योहार में शरीक होते हैं.


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