Gorakhpur news: पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. यानी हमारी स्वतंत्रता का 75वां वर्ष पूरा हो चुका है. इन 75 वर्षों में हमने मीलों लंबा सफर भी तय किया है. लेकिन 75 वर्ष पहले मिली इस आजादी के मध्य के पन्नों पर ऐसी इबारतें लिखी हैं, जिन्हें हम भूल नहीं सकते हैं. गोरखपुर का चौरीचौरा जन आंदोलन. अंग्रेजों ने चौरीचौरा कांड नाम दिया. भारत के क्रांतिवीरों की इस धरती पर हुए संग्राम को चौरीचौरा प्रतिकार और चौरीचौरा जनआंदोलन कहना गलत नहीं होगा. चौरीचौरा जनआंदोलन का शताब्दी वर्ष पूरा हो चुका है. जानिए, चौरीचौरा की धरती पर हुए इस जन आंदोलन की वजह से दुःखी होकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को क्यों रोक दिया था.
महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को क्यों रोका?
पूरे देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन चल रहा था. विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के साथ हर चौराहों पर जुटे देशवासी इन कपड़ों की होलिका जलाते देखे जा सकते थे. हर कोई आजादी के इस जनआंदोलन में अपनी आहुति देने के जोश से भरा था. गोरखपुर शहर से 26.3 किलोमीटर पूरब में स्थित ऐतिहासिक स्थल चौरीचौरा 4 फरवरी 1922 को हुए जनआंदोलन के लिए याद किया जाता है. विदेशी कपड़ों का बहिष्कार के साथ उन्हें जलाया जा रहा था. इसी बीच पहुंचे अंग्रेज अफसर के आदेश पर चली गोली से 11 क्रांतिकारियों की मौत हो गई. 50 से अधिक क्रांतिकारी घायल हो गए. भीड़ आक्रोशित हो गई. उसने पुलिसवालों पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. पुलिसवाले जान बचाकर थाने की ओर भागे.
थाने को चारों ओर से घेरकर भीड़ ने आग के हवाले कर दिया. भीड़ के गुस्से का शिकार हुए 21 पुलिसवालों को थाने में जिंदा जला दिया गया. इनमें चौरीचौरा थाने में थानेदार गुप्तेश्वर सिंह, उपनिरीक्षक सशस्त्र पुलिस बल पृथ्वी पाल सिंह, हेड कांस्टेबल वशीर खां, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विषेशर राम यादव, मुहम्मद अली, हसन खां, गदाबख्श खां, जमा खां, मगरू चौबे, रामबली पाण्डेय, कपिल देव, इन्द्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मर्दाना खां, जगदेव सिंह, जगई सिंह की मौत हो गई. उस दिन वेतन लेने थाने पर आए चौकीदार बजीर, घिंसई, जथई और कतवारू राम की थाने में जलकर मौत हुई थी. महात्मा गांधी ने हिंसात्मक रूप लेने से आहत होकर 12 फरवरी 1922 को अहसयोग आंदोलन को बीच में ही रोक दिया और पांच दिन के उपवास पर चले गए.
हालांकि बाद में इस जन आंदोलन में 19 लोगों को घटना के लिए दोषी मानते हुए फांसी दी गई थी. इनमें अब्दुल्ला, भगवान, विक्रम, दुदही, काली चरण, लाल मुहम्मद, लौटी, मादेव, मेघू अली, नजर अली, रघुवीर, रामलगन, रामरूप, रूदाली, सहदेव, सम्पत पुत्र मोहन, संपत, श्याम सुंदर और सीताराम शामिल रहे. चौरीचौरा जन आंदोलन में अंग्रेज अफसरों ने सैकड़ों क्रांतिकारियों को आरोपी बनाया. गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को 418 पेज के निर्णय में 172 आरोपियों को मौत की सजा सुनाई.
दो को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया. इस फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की. जिसका क्रमांक 51 सन 1923 था. इस अपील की पैरवी पं. मदन मोहन मालवीय ने की. मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउड पीयर्स और न्यायमूर्ति पीगट ने सुनवाई शुरू की. 30 अप्रैल 1923 को फैसला आया. इसमें 19 आरोपियों को फांसी, 16 को काला पानी, इसके अलावा बचे लोगों को 8, 5 और 2 साल की सजा दी गई. तीन को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा और 38 को छोड़ दिया गया.
इस साल शताब्दी वर्ष हुआ है पूरा
4 फरवरी 1922 को हुए चौरीचौरा जनांदोलन में जहां 19 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा मिली. तो वहीं 21 पुलिसवालों को भी उग्र भीड़ ने थाने में जिंदा जला दिया गया. यही वजह है कि चौरीचौरा शहीद स्थली पर शहीद हुए क्रांतिकारियों की याद में शहीद स्मारक बना है. तो वहीं चौरीचौरा थाने में जिंदा जला दिए गए पुलिसवालों की याद में भी एक शहीद स्मारक बना हुआ है. हालांकि चौरीचौरा की घटना के बाद मुकदमें की वजह से सारे दस्तावेज हाईकोर्ट में सुरक्षित रखे रहे. यही वजह है कि इतिहासकार भी बड़ी भूल करते चले आ रहे थे. साल 2005 में दस्तावेजों के सार्वजनिक होने के बाद लोगों को इस बात की जानकारी हुई कि दरअसल चौरीचौरा जनआंदोलन रविवार के दिन 5 फरवरी 1922 को नहीं, बल्कि शनिवार 4 फरवरी 1922 को हुआ था.
शहीद स्मारक स्थल परिसर में ही एक शहीद संग्रहालय भी है. जहां इस आंदोलन के शहीदों की प्रतिमाएं लगी हुई हैं. इस संग्रहालय में चौरीचौरा जनआंदोलन से जुड़े इतिहास संजोए गए हैं. यहां दस्तावेज और मुकदमें की कॉपी, चौरीचौरा कांड केस की पूरी चार्जशीट और कोर्ट का फैसला आज भी यहां सुरक्षित है. इसे हाईकोर्ट से साल 2005 में उन लोगों के लिए यहां पर रखा गया, जो ये नहीं जानते रहे हैं कि उनके परिवार के लोगों ने भी चौरीचौरा जनआंदोलन में अपने प्राण गवाएं हैं. यहीं पर पर्यटन विभाग ने एक शहीदों के नाम आडोटोरियम भी बनवा है. शहीदों से जुड़े सभी कार्यक्रम यहीं आयोजित किए जाते हैं.
पिछले साल 4 फरवरी 2021 को वर्षभर चलने वाले चौरीचौरा शताब्दी वर्ष समारोह का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुभारम्भ किया. एक साथ 30 हजार लोगों ने ‘वंदे मातरम्’ का गान कर रिकार्ड बनाया. शहीद स्मारक की दीवारों पर चौरीचौरा जन आंदोलनकारियों के तस्वीरों को उकेरा गया. संग्रहालय में लगी मूर्तियों को दोबारा सुदृढ़ और डेंटिंग-पेंटिंग की गई. रेलवे स्टेशन और शहीद स्मारक के बीच बहुत बड़े मंच को तैयार किया गए. पर्यटन विभाग चौरीचौरा में लगभग 3 करोड रुपए लगाकर शहीद स्मारक को सुदृढ़ करने में खर्च हुए.
चौरीचौरा जनआंदोलन में शहादत देने वाले क्रांतिकारियों के परिजनों का अपना दर्द भी है. यहीं के रहने वाले बृजराज यादव कहते हैं कि उनके बाबा और उनके पिता ने 1922 के चौरीचौरा कांड में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए. परिणाम स्वरूप तत्कालीन सरकार ने उसकी सजा दी और वह देश के लिए अंतिम सांस तक अपना सब कुछ न्योछावर कर दिए. क्रांतिकारी परिवार के रामेश्वर बताते हैं कि उनकी माताजी के पिताजी भी उस घटना में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए थे. विक्रम अहीर कहते हैं कि क्रांतिकारियों को परिवार को मिलने वाली सुविधाएं बरसों तक नहीं मिल सकीं. चौरीचौरा जनआंदोलन स्वतंत्रता की लड़ाई के उन मध्य पन्नों में दर्ज है, जिसके आखिरी पन्नों पर हमें आजादी मिली.
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