Gorakhpur News: नाथ संप्रदाय में गुरु के प्रति श्रद्धा का भाव प्रदर्शित करने के पर्व गुरु पूर्णिमा का खास महत्व है. गोरखनाथ मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी गुरु पूर्णिमा के एक सप्ताह पूर्व ही श्रीराम कथा का शुभारंभ हो गया है. दूर-दराज के लोगों के लिए गोरखनाथ मंदिर आने और जाने के लिए निःशुल्क बस की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है.
गुरु पूर्णिमा के दिन श्रीराम कथा सम्पन्न होगी. इसके बाद गुरु को तिलक लगाने की बरसों से चली आ रही परम्परा का निर्वहन मंदिर के संत-महंत और गणमान्य लोग करेंगे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पीठाधीश्वर के रूप में यहां उपस्थित रहेंगे और दंडाधिकारी के रूप में संत-महंत की शिकायतों को सुनने के बाद उसका निस्तारण भी करेंगे.
रामायण माहात्म्य का किया वर्णन
गोरखनाथ मन्दिर स्थित महन्त दिग्विजय नाथ स्मृति सभागार में गुरु पूर्णिमा पर्व के पावन अवसर पर साप्ताहिक श्रीराम कथा का भव्य आयोजन किया गया है. कथा के प्रथम दिवस में सोमवार को कथा व्यास सन्त हृदय बालकदास जी महाराज ने कथा के प्रारंभ में रामायण माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा कि रामायण भगवान श्रीराम का शरीर है. इसमें सात काण्ड उनके शरीर के सात अंग हैं. रामायण का बाल काण्ड उनका पाद है. अयोध्या काण्ड उनका कटि भाग है. अरण्य काण्ड नाभि भाग है. किष्किन्धा काण्ड उदर भाग है. सुन्दर काण्ड हृदय भाग है. लंका काण्ड ग्रीवा भाग है और उत्तर काण्ड उनका मस्तक भाग है. रामायण के प्रत्येक शब्द उनके शरीर के रोम हैं. इस प्रकार से सम्पूर्ण रामायण भगवान् राम का स्वरूप हीं है. रामायण की एक चौपाई भी हमारी मुक्ति का साधन बन सकती है.
उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम की कथा जहां होती है वहाँ हनुमान जी दौडे चले आते हैं. आप अपने घर में भी अगर नित्य रामायण की चौपाइयों का गान करते हैं, तो हनुमान जी आपके घर में नित्य निवास करते हैं. कथा व्यास ने कहा कि जब तक हमारे अन्दर भगवान पर पूरा भरोसा नहीं होता, तब तक भगवान की कृपा का हम अनुभव नहीं कर पाते. उसी भक्त को भगवान की भक्ति मिलती है जो अपने प्रभु पर अनन्य भाव से भरोसा करता है. जिसने अपने जीवन की नैया भगवान के भरोसे छोड़ दी उसके नाविक भगवान स्वयं हो जाते हैं.
गुरु महिमा का किया वर्णन
गुरु महिमा का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने कहा कि गुरु एक ऐसा सूर्य होता है जो अपने शिष्य को घने अंधकार से निकाल लेता है. गुरु के चरण नख का स्पर्श करने से जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान शंकर को ही अपना गुरु बना लिया और उनके उपदेश को अपने जीवन में आत्मसात करके प्रभु श्री राम की परम भक्ति प्राप्त कर ली. अन्य सभी देवी देवताओं के लिए अन्य सभी तिथियों को बताया गया, लेकिन गुरु की पूजा के लिए पूर्णिमा तिथि रखी गयी, क्योंकि गुरु हीं पूर्ण है. पूर्ण गुरु हीं पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करा सकता है.
रामचरितमानस के प्रारंभिक छन्दों का गान करते हुए उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी गुरु वन्दना के बाद पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों व सन्तों की वन्दना करते हैं. वे कहते है कि जिसके पीछे भक्त चलते हैं. वो साधु होता है और जिसके पीछे भगवान् चलते हैं. वह सन्त होता है. सन्त की कृपा जिसके ऊपर हो जाए उसके ऊपर भगवान अपने आप कृपा करते हैं.
गोरखनाथ मंदिर के गर्भ गृह से निकाली शोभा यात्रा
कथा प्रारंभ के पूर्व गोरखनाथ मंदिर के गर्भ गृह से अखण्ड ज्योति व पोथी की शोभायात्रा योगी कमलनाथृ की अगुवाई में संत, महात्मा और यजमान के साथ कथा स्थल तक धूमधाम से पहुंची. कथा के अंत में प्रमुख रूप से गोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, कालीबाडी के महन्त रविन्द्रदास, योगी धर्मेंद्रनाथ, हनुमान मंदिर के महंत रामदास, महंत शिव नारायण दास, द्वारिका तिवारी, मुख्य यजमान बैजनाथ जायसवाल, श्रीमती संगीता जायसवाल, उमेश अग्रहरि, श्रीमती बबिता अग्रहरि, अमित कुमार जायसवाल, श्रीमती रीतू जायसवाल, अजय सिंह ने व्यास पीठ की आरती की. मंच संचालन डॉ. अरविन्द चतुर्वेदी ने किया. कथा में वीरेन्द्र सिंह, डॉ. रंगनाथ त्रिपाठी, दयानन्द शर्मा, डॉ. रोहित कुमार मिश्र, डॉ. प्रांगेश कुमार मिश्र, नित्यानंद तिवारी, दयानन्द शर्मा और श्रद्धालु जन उपस्थित रहे.
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