Gorakhpur News: सावन के महीने में शिव मंदिरों पर भक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है. दूर-दूर से भक्त मान्यता के अनुसार शिव मंदिरों पर जल चढ़ाने के लिए आते हैं. गोरखपुर के स्वयं-भू मोटेश्वर शिव मंदिर पर भी सावन के महीने में हजारों की संख्या में श्रद्धालु जल चढ़ाने और दर्शन करने लिए आते हैं. दूर-दूर से भक्त कांवड़ लेकर भी बाबा मोटेश्वर महादेव के शिव मंदिर पर जलाभिषेक करने के लिए आते हैं. सावन के पहले सोमवार को भी यहां पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है.
सावन के पहले सोमवार भक्तों की लगती है भीड़
गोरखपुर से 20 किलोमीटर उत्तर दिशा में पिपराइच कस्बे में मोटेश्वर महादेव शिव मंदिर पर भोर से ही भक्तों की भीड़ जलाभिषेक और दर्शन के लिए पहुंचने लगती है. लंबी कतार लगाकर लोग अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं. भोलनाथ में लोगों की इतनी आस्था है कि कहते हैं कि यहां कोई भी मन्नत मांगने पर मोटेश्वर महादेव का आशीर्वाद जरूर मिलता है. वे अपने दरबार से किसी को निराश होकर वापस नहीं जाने देते हैं. बताते हैं कि मंदिर की नींव 1885 में पड़ी थी. उस समय यहां पर खेत हुआ करता था. एक किसान खेत जोत रहा था. उसी दौरान कुदाल के नीचे पत्थर जैसी कोई वस्तु के टकराने की आवाज आई.
जब उसने पत्थर को खोदकर निकालने की कोशिश की, तो उसका दूसरा छोर नहीं मिला. आसपास के लोगों ने जब उसे देखा, तो जानकारों ने बताया कि ये स्वयं-भू शिवलिंग है. समय के साथ भोलेनाथ का आकार बढ़ता गया और उन्हें मोटे शिव मंदिर और मोटेश्वर महादेव के शिव मंदिर के नाम से लोग पुकारने लगे. सावन के महीने में भक्त यहां दूर-दराज के दर्शन करने के लिए आते हैं. मोटेश्वर महादेव शिव मंदिर पर कांवडि़ए कांवड़ में जल लेकर दूर-दराज से आते हैं और जलाभिषेक करते हैं. सावन के महीने में यहां कांवडि़यों की बहुत भीड़ होती है. सावने के पहले सोमवार को भी यहां भक्तों और कांवडि़यों की भीड़ उमड़ पड़ी है.
मंदिर के पीछे यह है मान्यता
गोरखपुर के पिपराइच कस्बे के रहने वाले श्रद्धालु शिव कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि ये स्वयं-भू महादेव हैं. किसान की गैंती इस शिवलिंग से टकरा गई. खोदने पर यहां पर शिवलिंग मिला. मोटेश्वर महादेव के दरबार में आकर कोई निराश होकर नहीं जाता है. भोलेनाथ सभी भक्तों की सुनते हैं. यहां पर बहुत ऊर्जा है. यहां के युवा दोहरीघाट-बड़हलगंज से लोग जल उठाते हैं. यहां पर आकर चढ़ाते हैं. मोटेश्वर महादेव शिव मंदिर के सचिव अनिरुद्ध जायसवाल कहते हैं कि यहां पर बड़हलगंज के जल भरकर श्रद्धालु आते हैं. यहां पर यूपी-बिहार के लोग दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में आते हैं.
कांवडि़ए भी यहां जलाभिषेक करने के लिए आते हैं. नागपंचमी तक यहां पर इसी तरह भक्तों का मेला लगा रहेगा. यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है. मोटेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी कालिदास महाराज बताते हैं कि यहां पर भोलेबाबा स्वयं जमीन से निकले हैं. इस मंदिर की नींव 1885 में पड़ी है. भोले बाबा स्वयं मोटे होते चले गए. यही वजह है कि इन्हें मोटे शिव मंदिर के नाम से भी पुकारा जाता है. कांवड़ लेकर बड़हलगंज, दोहरीघाट, बाबाधाम, बासुकीनाथ से लोग यहां पर आते हैं उनकी मन्नतें पूरी होती है.
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