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जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा, महाप्रलय से बचना है तो इन नदियों पर न बने बांध
पर्यावरणविद राजेन्द्र सिंह ने कहा कि तीन नदियों भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी को छोड़ दो. तीनों नदियों पर अवरोध (बांध) पैदा करेंगे तो वहां जब ग्लेशियर और बादल फटेंगे, विनाश होगा.
![जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा, महाप्रलय से बचना है तो इन नदियों पर न बने बांध Gorakhpur Rajendra Singh said to avoid the disaster dams should not be built on Mandakini Alaknanda and Bhagirathi rivers ann जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा, महाप्रलय से बचना है तो इन नदियों पर न बने बांध](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2021/02/09035327/rajendra-singh.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
गोरखपुर: राजस्थान के 1200 गांवों में जल से खुशहाली लाने वाले रेमन मैग्सेस, पानी के लिए नोबल पुरस्कार माना जाने वाला स्टॉकहोम वॉटर प्राइज समेत तमाम पुरस्कार पाने वाले पर्यावरणविद राजेन्द्र सिंह ने एबीपी गंगा से खास बातचीत की. राजेन्द्र सिंह ने उत्तराखंड त्रासदी पर खेद जताते हुए कहा कि ये दूसरी बार नहीं बल्कि पांचवीं बार है जब उत्तराखंड को इस तरह की त्रासदी का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि इस महाप्रलय और त्रासदी से बचना है तो कम से कम तीन छोटी नदियों मंदाकिनी, अलकनंदा और भागीरथी पर बांध नहीं बनाया जाय. ऐसा नहीं किया गया, तो ये आपदा लेकर आएंगी.
धरती के पेट को पानी से भरने की जरूरत जलपुरुष राजेन्द्र सिंह मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में 9 फरवरी को होने वाले 5वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सम्मिलित होने के लिए गोरखपुर पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि वे किस तरह से भारत सरकार की नौकरी छोड़कर अलवर जिले के गोपालपुरा गांव गए और वहां पर चिकित्सक होने की वजह से रतौंधी से पीड़ित लोगों का इलाज करने लगे. किसी ने वहां पर बताया कि वहां पर पानी की कमी है. उसे दूर कर दें, तो बीमारी दूर हो जाएगी. धरती के पेट को पानी से भरने की जरूरत महसूस हुई. उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए उन्हें रेमन मैग्सेसे समेत तमाम पुरस्कार मिले.
नदियों की हत्या नहीं की राजेन्द्र सिंह ने बताया कि उन्होंने गांव वालों की मदद से अनेक काम किए हैं. हमने सरकार की तरह बांध बनाकर नदियों की हत्या नहीं की. हमने धरती के पानी को प्राकृतिक रूप से धरती के पेट तक पहुंचाया है. उत्तराखंड त्रासदी के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये दूसरी बार नहीं हुआ. उन्होंने टिहरी में 1992 में जाकर ये कहा था कि हिमालय भूकंप प्रभावित क्षेत्र हैं. यहां पर बड़े बांध नहीं बनने चाहिए. ये जितना लाभ करेंगे, उससे कही अधिक विनाश करेंगे.
डैम टूटता है तो बहाव 100 गुना अधिक हो जाता है पर्यावरणविद राजेन्द्र सिंह ने कहा कि तीन नदियों भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी को छोड़ दो. तीनों नदियों पर अवरोध (बांध) पैदा करेंगे, तो वे इको-फर्टाइल एरिया है. वहां जब ग्लेशियर और बादल फटेंगे, तो विनाश होगा. भूकंप आएगा, तो विनाश होगा. जब ऐरेटिक रेंस होगी, तो विनाश होगा. हिमालय में जब डैम बनाते हैं और डैम टूटता है तो उसका बहाव 100 गुना अधिक हो जाता है. हमने कहा कि ऐसे जगह पर डैम बनाना खतरनाक है. सरकार और समाज ने नहीं सुना. समाज विकास का लालची और सरकार ग्लोबल इकोनॉमिक लीडर बनना चाहती है. जब सरकार ग्लोबल इकोनॉमिक लीडर बनना चाहती है, तो ग्लोबल सेफ्टी खत्म हो जाती है. अपने विकास की अवधारणा को छोड़ दिया है विकास जहां होता है, वहां विनाश भी पीछे चलता रहता है. लोगों की आवाजाही भी इसकी एक वजह है. इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विकास वो नहीं होता, जिसमें विनाश हो. भारत का विकास सनातन था. सनातन विकास का अर्थ है सदैव, नित्य, नूतन, निर्माण. कभी कोई मरता नहीं है. वो पुर्नजीवित होता है. वो आदि से अंत तक चलता रहता है. तो जो देश अपने विकास को सनातन विकास की परिभाषा को मानता हो. वो कभी डेफ्थ और डिजास्टर में विश्वास नहीं करता है. हमने अपने विकास की अवधारणा को छोड़ दिया और दूसरे के विकास की अवधारणा के पीछे भागने लगे.
सृष्टि लालच को पूरा नहीं कर सकती है हम जो दूसरे के विकास की अवधारणा में चले गए तो वो हमारा लालच है. जब हम लालच में विकास करते हैं तो सृष्टि हम सबकी जरूरत पूरा कर सकती है. लेकिन, हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती है. जो लोग पुर्नजीवन में विश्वास करते हैं, वे इसे समझते हैं. भारत के उपनिषद और वेद पुर्नजन्म की प्रक्रिया को मानते हैं. जो लोग इसमें विश्वास रखते हैं उनका विकास सनातन प्रक्रिया से होना चाहिए. सनातन विकास पुर्नजन्म से होता है. जब हम इस प्रक्रिया को खत्म करेंगे, तब उत्तराखंड जैसे विनाश देखने को मिलते हैं.
सनातन विकास के रास्ते पर चलना होगा राजेन्द्र सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा कि नेपाल ने अलर्ट किया है कि उनकी झील टूट सकती है. ऐसा हुआ, तो बिहार और बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. वे कहते हैं कि विनाश की घटनाएं बढ़ रही हैं. इससे बचने के लिए धरती के बुखार को राजस्थान के लोगों की तरह से सनातन विकास के रास्ते पर चलना होगा. सनातन विकास ही हमें पर्यावरण की रक्षा का रास्ता बताता है. यही हमें प्रकृति के क्रोध से बचा सकता है.
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