Gorakhpur Ramadan 2024: देश-दुनिया में रमजान के पाक महीने को लेकर काफी खुशी है. मुस्लिम समाज के लोगों के साथ हिंदू समाज के लोग भी रमजान के पाक माह की इफ्तारी में शामिल होते हैं और मीठी ईद को भी मिलजुल कर मनाते हैं. इसके लिए बाजार भी पूरी तरह से तैयार है. बाजारों में गजब की रौनकें देखी जा रही है. रमजान के पहले सेवइयों का भी बाजार सज गया है. बाजार में लच्छा, बनारसी और महीन सेवइयों की भी खूब डिमांड रहती है. इस माह में रोजे रखे जाने को लेकर बहुत अहमियत है. इसको लेकर गोरखपुर के चिश्तिया मस्जिद के मौलाना महमूद रजा ने बयान दिया है. 


गोरखपुर के चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में मौलाना महमूद रजा कादरी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में माह-ए-रमजान और उसमें रखे जाने वाले रोजों की बहुत अहमियत है. आम तौर पर लोग इस माह-ए-रमजान के रोजे रखने और तरावीह की नमाज पढ़ने का महीना समझते हैं. जो सही भी है कि इस महीने में खास तौर पर यह काम किए जाते हैं. मगर इस मुकद्दस महीने की इन कामों के अलावा भी बहुत सी खूबियां हैं, जिन पर हम तवज्जो नहीं देते. कुरआन और हदीस और हमारे इमामों और बुजुर्गों ने बताया है कि सामाजिक बुराइयों के खात्मे, आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने, गरीबों, यतीमों, बेवाओं की मदद करने, बेरोजगारों को रोजगार के अवसर देने, गरीब छात्रों की शिक्षा के क्षेत्र में मदद करने, गरीब बच्चियों की शादी कराने में आर्थिक मदद देने और उनके उत्थान में रमजान का यह महीना अहम किरदार अदा करता है.


कौन दे सकता है जकात 


उलमा किराम ने कहा कि गरीबों पर सदका-ए-फितरा देना वाजिब नहीं है. उलमा-ए-अहले सुन्नत की तरफ से जारी रमजान हेल्पलाइन नंबरों पर शुक्रवार को सवाल-जवाब का सिलसिला जारी रहा. लोगों ने नमाज, रोजा, जकात, फितरा आदि के बारे में सवाल किए. उलमा किराम ने कुरआन और हदीस की रोशनी में जवाब दिया.


1. क्या गरीबों पर भी सदका-ए-फितरा निकालना वाजिब है? मौलाना ने जवाब देते हुए कहा कि नहीं, सदका-ए-फितरा सिर्फ मालिक निसाब पर वाजिब है. गरीबों पर सदका-ए-फितरा देना वाजिब नहीं. हां अगर दे दें तो सवाब पाएंगे.


2. एडवांस रखी गई रकम पर जकात वाजिब है या नहीं? इसके जवाब में मुफ्ती मेराज ने कहा कि बाज मामलात में एडवांस रकम वापस नहीं होती. ऐसी सूरत में उन पर जकात वाजिब नहीं, और बाज मामलात में रकम वापस हो जाती है. ऐसी सूरत में उन पर जकात वाजिब है. 


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