गोरखपुर. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कई ऐसे स्कूल हैं, जो बदहाल हैं. वैश्विक महामारी कोरोना काल में हालांकि कक्षाएं तो नहीं चल रही हैं. लेकिन, टीचर्स को अब स्कूल आना अनिवार्य है. ऐसे में शिक्षकों के लिए समस्या खड़ी हो गई है. जुलाई माह से ही स्कूल पानी में पूरी तरह से डूबा हुआ है. ऐसे में फाइलें और फर्नीचर भी 8 से 10 फीट पानी में डूब गए हैं. बेसिक शिक्षा अधिकारी भी इस बात को कुबूल करते हैं और वैकल्पिक व्यवस्था का दावा भी कर रहे हैं.
फाइलों को बचाने का संघर्ष
गोरखपुर के प्राथमिक विद्यालयों का हाल बारिश के मौसम में बदतर हो जाता है. खोराबार इलाके का पूर्व माध्यमिक स्कूल झरवां अपने लचर व्यवस्था की कहानी खुद ही बयां कर रहा है. हालत यह है कि स्कूल की शिक्षिकाएं छत पर बांस बल्ली लगाकर ऑफिस के फाइल मेंटेन करने का काम कर रही हैं. लेकिन इसकी कोई सुध भी नहीं लेने वाला है. स्कूल के अध्यापक और अध्यापिका स्कूल की छत से नीचे की तरफ बल्ली और पटरी के सहारे उतर रहे हैं.
तिरपाल लगाकर ऑफिस का काम निपटाते हैं अध्यापक
गोरखपुर के खोराबार इलाके का पूर्व माध्यमिक स्कूल झरवां जुलाई से ही पानी में डूबा हुआ है. क्लासरूम भी पानी से भर गया है. स्कूल का नाम और छत अभी भी सेफ है. स्कूल की छत पर बल्ली लगाकर स्कूल के टीचर दफ्तर के फाइल मेंटेन का काम करते हैं. जब बारिश होती है तो टीचर बगल में प्लास्टिक का तिरपाल लगाकर काम चलाते हैं. वहीं, स्कूल की बाउंड्री में भरे पानी में आस-पास के लड़के मछली मारते हैं. कई दिनों से हुई बरसात के बारिश के बीच में स्कूल की टीचर्स प्लास्टिक का तिरपाल लगाकर अपनी अपनी फाइलें मेंटेन कर रहे हैं.
शिक्षकों ने कहा-हर साल का है ये हाल
स्कूल की सहायक अध्यापिका मनीषा त्रिपाठी और बृज नंदन वर्मा ने बताया कि हर साल बरसात के मौसम में पानी लग जाता है. उस समय दूसरी जगह कमरा लेकर वे लोग बच्चों को पढ़ाते हैं. वे बताती हैं कि स्कूल जुलाई के 15 ,16 तारीख से डूब गया है और यह अचानक से डूबा, हम लोगों को पता नहीं चल पाया. स्कूल के सारे गए बेंच डूब गए हैं. कुछ फ़ाइल स्कूल कि वे लोग निकाल पाए हैं. बाकी डूब गई हैं. यहां लगभग 56 बच्चों का स्कूल में एडमिशन हुआ है. स्कूल के सामने एक टेंट है. उसमें बैठते हैं, हम लोग दिनभर टेंट में रहकर सारा फाइल कंप्लीट करते हैं.
बीएसए ने कहा-पहले की व्यवस्था है
इस पूरे मामले में गोरखपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी भूपेंद्र नारायण सिंह का कहना है कि खोराबार में विशेष रूप से हमारे कई विद्यालय हैं, जो नीचे वाले क्षेत्र में हैं. वहां बरसात के मौसम में पानी भर जाता है. उसके लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था पहले से ही की गई है. बगल का कोई विद्यालय जहां पानी नहीं लगता है, वहीं पर बच्चे पढ़ते हैं. वहां मिड डे मील की भी व्यवस्था की जाती है. इस सत्र में बच्चे नहीं आ रहे हैं. टीचर की जो पहले की व्यवस्था है, उसी व्यवस्था के अनुसार उनको दूसरे विद्यालयों पर रहना पड़ता है. झरवां की जो बात है, जो मेरे संज्ञान में है और जो मैं जान भी रहा हूं. वहां के टीचरों को एक अन्य जगह कमरा दिया गया है. जहां पर उनको अपने सारे कार्यों को करना होता है और वह कार्य वहां से कर भी रहे हैं.
बड़ा सवाल तो यह उठता है कि क्या यह लचर व्यवस्था कई सालों से चल रही है. अगर चल रही है तो क्या इस पर अधिकारियों की नजर नहीं पड़ी. उनकी नजर पड़ी है, तो स्थाई व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
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