Uttar Pradesh News: ‘टेराकोटा’ ने गोरखपुर (Gorakhpur) को पूरे विश्व में पहचान दिलाई है. देश के अलग-अलग राज्यों के अलावा विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच भी इसकी काफी मांग है. देश और विदेश में रहने वाले भारतीयों के ड्राइंग रूम की शोभा भी टेराकोटा शिल्प ही बढ़ा रहे हैं. टेराकोटा से बने शिल्प की खासियत ये है कि ये सभी हस्त निर्मित हैं. ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट) में शामिल होने के बाद दिवाली (Diwali 2022) के पहले शिल्‍पकारों के पास इतने आर्डर हैं, कि वे कस्टमर की डिमांड तक पूरी नहीं कर पा रहे हैं. चाइना लाइट और प्रोडक्ट के दिवाली पर बहिष्कार के बाद से तो टेराकोटा शिल्‍पकारों की तकदीर और तस्वीर दोनों बदल गई है.


न काम की कमी न बाजार की
गोरखपुर के गुलरिहा बाजार के औरंगाबाद गांव को टेराकोटा शिल्प का गढ़ माना जाता है. इसके अलावा गोरखपुर शहर के पादरीबाजार के मानस विहार कालोनी के रहने वाले कुछ परिवार भी कई पीढ़ियों से इस शिल्पकला को जीवित रखने में जुटे हुए हैं. ‘टेराकोटा’ शिल्‍पकारों के सामने बाजार की एक बड़ी समस्या भी रही है. हालांकि पहले भी देश के अलग-अलग राज्यों के अलावा विदेशों में भी यहां के बने शिल्प की खूब डिमांड रही है लेकिन मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की पहल पर इसे ओडीओपी ‘एक जिला, एक उत्‍पाद’ में शामिल करने के बाद से शिल्‍पकारों के पास न तो काम की कमी है न ही बाजार की.


क्या बताया शिल्पकार ने
गोरखपुर के पादरी बाजार के मानस विहार कालोनी के रहने वाले विश्‍वराम प्रजापति का परिवार कई पीढ़ियों से ‘टेराकोटा’ शिल्प को जीवित रखे हुए है. यही इनकी रोजी-रोटी का जरिया भी है. विश्वराम बताते हैं कि वे 40-45 साल से ये काम कर रहे हैं. इनका 7 से 8 लोगों का भरा-पूरा परिवार है. पूरा परिवार इसी काम में जुटा रहता है. वे बताते हैं कि आर्डर पर माल तैयार करते हैं. टेराकोटा के 100 डिजाइन उनके पास हैं. वे बताते हैं कि हाथी-घोड़ा से लेकर गमले और अन्य चीजों की भी डिमांड रहती है. ओडीओपी में शामिल होने से ‘टेराकोटा’ को अलग पहचान मिली है. बाजार भी मिला है. उपकरण भी मिले हैं ये पूरी तरह से हस्तनिर्मित (हैंडीक्राफ्ट) कला है. भट्ठी भी कंडे से लगती है. 


विश्‍वराम प्रजापति सीएम योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देते हैं. वे बताते हैं कि गांव-गांव इलेक्ट्रिक और सामान्‍य चाक सरकार की ओर से मिलने की वजह से उन लोगों को कम समय में अधिक प्रोडक्ट तैयार करने में मदद मिल रही है. वे कस्टमर की डिमांड भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं. चाइना के माल के विरोध की वजह से भी उनके शिल्प की मांग बाजार में बढ़ी है. विश्‍वराम को अखिलेश सरकार में पुरस्कार भी मिल चुका है.


विश्‍वराम प्रजापति की पत्नी सुनीता और उनके बेटे आनंद प्रजापति भी उनके इस काम में पूरा हाथ बंटाते हैं. पूरा घर और परिवार के अन्य बच्चे भी मदद करते हैं. सुनीता प्रजापति बताती हैं कि बाजार में टेराकोटा शिल्प की पहले से अधिक मांग हो गई है. वे शिल्प को तैयार करती हैं. दिवाली होने की वजह से दीए की अधिक डिमांड है. उन्होंने बताया कि वे लोग कई दिन से दीए और अन्‍य शिल्प को बनाने में जुटे हुए हैं. विश्‍वराम प्रजापति और सुनीता प्रजापति के बेटे आनंद प्रजापति ने बताया कि ओडीओपी में शामिल होने के बाद से ही टेराकोटा की डिमांड काफी बढ़ गई है. टेराकोटा को बाजार मिलने के साथ ही उनके आर्डर तक पूरे नहीं हो पा रहे हैं. चाइना के माल के बहिष्कार का भी असर पड़ा है.


दूसरे शिल्पकार ने क्या कहा
रामसेवक प्रजापति बताते हैं कि वे टेराकोटा का शिल्प तैयार कर रहे हैं. टेराकोटा में हाथी-घोड़ा, गणेशजी, शंकरजी, पार्वती जी, लक्ष्मी जी, दीया, छठ का हाथी, पूजा वाले सारे आइटम बनाते हैं. वे बचपन से ये काम कर रहे हैं. रामसेवक ने अपने पिता और दादा को भी ये काम करते देखा है. इनका भी 7 से 8 लोगों का भरा-पूरा परिवार है. दो से तीन दिन लगता है पूरे आर्डर को तैयार करने में. ओडीओपी में शामिल होने से उन्हें ज्यादा फर्क नजर नहीं आता है. वे बताते हैं कि उनका माल पहले से ही दिल्ली और गुड़गांव जाता है. वे बताते हैं कि इसकी खासियत है कि ये पूरी तरह से हस्तशिल्प है. लाल मिट्टी आती है, उसे काबिस कहते हैं, उसे पकाने पर लाल हो जाती है. रामसेवक को कल्याण सिंह की सरकार में टेराकोटा शिल्प के लिए 10 हजार रुपए और शील्ड पुरस्कार मिल चुका है. वे वहां पर युवाओं को ट्रेनिंग दे चुके हैं.


तीसरे शिल्पकार ने क्या कहा
रामप्रीत बताते हैं कि टेराकोटा में दीया से लेकर झूमर और सजावट के सामान तैयार करते हैं. 25 साल से इस काम में जुटे हैं. वे कहते हैं कि पूरा परिवार इस काम में जुटा रहता है. योगी आदित्यनाथ द्वारा इसे ओडीओपी में शामिल करने से काफी फर्क पड़ा है. वे कहते हैं कि लोगों को उपकरण भी मिले हैं. देश के अलावा विदेशों में भी टेराकोटा हर भारतीय के घर में देखने को मिल जाएगा. उन लोगों की इतनी पहुंच नहीं है. वे बताते हैं कि पहले चाक हाथ से चलाना पड़ता था. अब मोटर वाला चाक योगीजी की तरफ से मिलने से समय की बचत होती है.


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