Gorakhpur Wheat Tajiya 2024: यूपी के गोरखपुर में सैकड़ों सालों से बनने वाली गेहूं की ताजिया महज पांच दिनों में तैयार हो जाती है. गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल इस ताजिया को देखने के लिए लोग आस-पास के जिलों से भी आते हैं. गेहूं की इस ताजिया का नाम देश के साथ अन्य मुल्कों में भी है. गेहूं की बनी ये ताजिया उम्दा कारीगरी के साथ विज्ञान की भी अनूठी मिसाल पेश करती है. 


गोरखपुर के साहबगंज मंडी की गेहूं की ताजिया की भी शोहरत देश-विदेश तक है. यह पूर्वांचल की बड़ी व्‍यापारिक मंडी साहबगंज में तैयार होती है. गेहूं की ताजियां उम्दा कारीगरी और विज्ञान का उम्दा नमूना है. साहबगंज में स्थित इमामचौक पर गेहूं की ताजिया अपने आप में अनोखी और प्राकृतिक जुड़ाव अपने अंदर समेटे हुए है. सैकड़ों सालों से इस गेहूं की ताजिया का निमार्ण प्रत्येक मुहर्रम में किया जाता है. आठ फीट ऊंची गेहूं की ताजिया के निर्माण में करीब 25 किलो गेहूं के उत्तम किस्म के दानों का प्रयोग किया जाता है.


गेहूं को चिपकाने के लिए किया जाता है ये काम


इस ताजिया को बनाने में अहम भूमिका निभाने वालों ने बताया कि इसकी लागत आठ से नौ हजार रुपए आती है. बांस का एक ढांचा तैयार किया जाता है. इसके बाद उस पर कपड़ा चढ़ाया जाता है. उसके बाद गेहूं के दानों को एक खास पदार्थ से सेट किया जाता है. इस‍के बाद उस पर हरे रंग का कपड़ा चढ़ाया जाता है.


गेहूं को इस पर चिपकाने के लिए जिस पदार्थ का इस्‍तेमाल किया जाता है. उसकी जानकारी इस ताजिया का बनाने वाले और मुतवल्लियों के अलावा किसी को नहीं है. गेहूं के दानों को सेट करने में यह पदार्थ अहम भूमिका निभाता है. पदार्थ कितनी मात्रा और कितने वजन का होगा यह भी रहस्य है.


हर दो घंटे बाद दिया जाता है पानी


उन्होंने आगे बताया कि हर दो घंटे में इस ताजिया को पानी और लोहबान का धुआं दिया जाता है. हर दो घंटे बाद आप इस गेहूं की ताजिया को देखेगें, तो परिवर्तित पाएंगे. जहां अन्य ताजियों को बनाने में काफी समय लगता है, वहीं यह ताजिया महज पांच दिनों में जनता दर्शन के लिए मुकम्मल हो जाती है. एक बात और काबिले गौर है कि इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता हैं.


सैकड़ों सालों से बन रही ये ताजिया


इमाम चौक के वर्तमान मुतवल्ली हाजी जान मोहम्मद ने बताया कि उनके वंशजों ने इस ताजिया का निमार्ण सैकड़ों वर्षों पूर्व से शुरू किया जो आज भी जारी है. इस ताजिया की शोहरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस ताजिया के निर्माण अपने इलाके में करने के लिए अकीदतमंद अच्छी खासी रकम भी देने को तैयार है. मुतवल्ली हाजी जान का कहना है कि मुबंई, दिल्ली, हैदराबाद, लखनऊ से काफी लोगों ने उनसे संपर्क किया और बड़ी रकम देने की पेशकश की पर उन्होंने इस ठुकरा दिया.


चौथी मोहर्रम से बनाने का कार्य होता है शुरू 


उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन का करम है कि अन्य दिनों में यह प्रयोग किया जाए, तो सफल नहीं होता है, लेकिन मुहर्रम के पांच दिनों के अंदर ताजिया मुकम्मल तैयार हो जाती है. इस ताजिया का दीदार करने के बाद आप इसे देखते रह जाएंगे. मुहर्रम में यह ताजिया हिंदू-मुस्लिम एकता का केंद्र बन जाती है.


चौथी मोहर्रम से इसको बनाने का कार्य शुरू होता है. नौवीं मोहर्रम का आमजन के लिए खोल दिया जाता है. यहां प्रत्येक धर्म के लोग आते हैं और मन्नतें मानते हैं. मन्नतें पूरी होने पर चांदी का पंजा, आंख और छोटी ताजिया चढाते हैं. यहां बराबर इमाम हुसैन उनके जानिसारों के इसाले सवाब के लिए फातिहा ख्वानी होती रहती है. मुहर्रम की दसवीं तारीख को राप्ती में प्रवाहित कर दिया जाता है.


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