गोरखपुर: एक ओर जहां सरकार मिशन शक्ति और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए महिला सशक्तीकरण जैसे अभियान चला रही है. वहीं, अधिकारियों की खुमारी के आगे एक मां बेबस बन गई है. मृतक आश्रित कोटे से चार साल पहले बस परिचालक की नौकरी पाने वाली शिप्रा दीक्षित कोरोना और कड़ाके की ठंड के बीच पांच माह की मासूम को गोद में लेकर गोरखपुर से पडरौना के बीच हर रोज 165 किलोमीटर बस में सफर करने के साथ टिकट काटने को मजबूर हैं.
योग्यता के मुताबिक पद नहीं मिला
शिप्रा दीक्षित उत्तर प्रदेश परिवहन निगम गोरखपुर डिपो में बस परिचालक के पद पर तैनात हैं. परिचालक की नौकरी साल 2016 में पाने वाली शिप्रा फिजिक्स विषय से केमेस्ट्री से एमएससी हैं. उनकी मानें तो उन्हें उनकी योग्यता के मुताबिक पद नहीं मिल पाया और न ही प्रमोशन मिल पा रहा है. शिप्रा कहती हैं कि वो खुद नहीं समझ पाईं कि उन्हें परिचालक के पद पर तैनाती क्यों दी गई. लेकिन, उन्हें मजबूरी वश नौकरी ज्वाइन करनी पड़ी.
परिचालक की ड्यूटी करने के लिए निर्देशित किया गया
शिप्रा ने बताया कि वो 25 जुलाई 2020 को मैटरनिटी लीव पर गईं थीं. 21 अगस्त 2020 को उन्होंने बच्ची को जन्म दिया. 19 जनवरी 2021 में छुट्टी खत्म होने के बाद वे 25 जनवरी को काम पर लौटीं, तो अधिकारियों से गुहार लगाने पर उन्हें कार्यालय में काम पर लगा दिया गया. लेकिन, दो दिन पहले उन्हें फिर से बस में परिचालक की ड्यूटी करने के लिए निर्देशित कर दिया गया.
अधिकारियों ने नहीं सुनी
शिप्रा ने आलाधिकारियों से गुहार लगाई कि कोरोना और ठंड में बच्ची छोटी होने की वजह से वो बस में जाने में सक्षम नहीं हैं. उन्हें कार्यालय में कहीं अटैच कर दिया जाए. लेकिन, अधिकारियों ने उनकी नहीं सुनी. नौकरी छिन जाने के डर से वे पिछले दो दिनों से 5 माह की बच्ची को लेकर बस में नौकरी करने को मजबूर हैं. यही वजह कि बच्ची की तबीयत भी खराब हो गई है. वो कहती हैं कि चलती बस में उनके गिरने का खतरा भी रहता है. ऐसे में बच्ची को गोद में लेकर टिकट काटना काफी मुश्किल है.
नहीं हो रही है सुनवाई
शिप्रा का कहना है कि कई महिलाओं को कार्यालय में काम दिया गया है. लेकिन उन्हें नहीं दिया जा रहा है. उनसे कहा गया कि बच्ची लेकर आप बस में जाइए, कैसे भी करिए. शिप्रा गोरखपुर से पडरौना की बस में परिचालक के तौर पर टिकट काटती हैं. बच्ची को लेकर काम कर रही हैं. इस पीड़ा के बारे में आरएम, एआरएम, एसआईसी के पास भी गईं. कोई नहीं सुन रहा है.
सीएम योगी से लगाई गुहार
शिप्रा कहती हैं कि नौकरी करना भी जरूरी है. परिवहन निगम में चाइल्ड केयर लीव का नियम नहीं है. उनका कहना है कि बस में बच्ची को गोद में लेकर टिकट काटने और रुपए लेन-देन में भी दिक्कत आ रही है. वे बच्ची को दूध भी नहीं पिला पा रही हैं. अब वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाते हुए कहती हैं कि उनके पिता के पद, उनकी योग्यता और 5 माह की बच्ची की तबीयत को ध्यान में रखकर उन्हें प्रमोशन मिल जाए, तो उनकी समस्या खत्म हो जाएगी.
बच्ची को लेकर जाने में होती है दिक्कत
शिप्रा के पति नीरज कुमार शाही दिल्ली की एक साफ्टवेयर कंपनी में काम करते रहे हैं. दिमागी बीमारी की वजह से वापस लौटे, तो कोरोना काल में लॉकडाउन में यहीं रुकना पड़ गया. इस बीच बच्ची भी हो गई. उसके बाद से वे गोरखपुर में ही हैं. उनकी पत्नी शिप्रा दीक्षित बस में परिचालक हैं. बस में छोटी बच्ची को लेकर जाने में दिक्कत हो रही है.
बस में रोती है बच्ची
पति नीरज कुमार शाही बताते हैं कि बच्ची को दो दिनों से बस में ले जाने की वजह से उसकी तबीयत खराब हो गई है. उसे हवा लगने से बुखार हो गया है. वो कहते हैं कि ठंड और कोरोना काल में 5 माह की बच्ची को लेकर बस में सफर करते हुए टिकट काटना आसान नहीं है. ऐसे में मजबूरी वश पत्नी शिप्रा को नौकरी करनी पड़ रही है. बच्ची को बस में झटके लगने पर वो रोती भी है. वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से गुहार लगाते हुए कहते हैं कि उनकी पत्नी की मजबूरी को समझते हुए न्याय दिलाएं.
चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम गोरखपुर के सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक केके तिवारी कहते हैं कि परिचालक का काम परिचालन करना होता है. उनके यहां छह माह का प्रसूति अवकाश मिलता है. उन्होंने कहा कि शिप्रा 6 माह गुजार चुकी हैं और उनके यहां चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान नहीं है. परेशानी को देखते हुए उनके प्रार्थना पत्र को आगे बढ़ाया जाएगा. उन्होंने ये भी बताया कि परेशानी को देखते हुए कार्यालय में अटैच किया जाता है. लेकिन, इसके लिए वरिष्ठता का आधार भी देखा जाता है.
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