गोरखपुरः युवा वैज्ञानिक जैनुल आबेदीन ने ‘एब्‍योम’ स्‍टार्टअप शुरू किया है. इस स्‍टार्टअप में उन्‍होंने मेंटर और अन्‍य युवा इंजीनियरों को जोड़ा है. इसके ‘एयरो टॉय’ प्रोजेक्‍ट के माध्‍यम से बच्‍चे खिलौने से रॉकेट बनाने के गुर सीख सकेंगे. इस प्रोजेक्‍ट को स्‍टार्टअप ‘एब्‍योम’ के माध्‍यम से टॉयकॉथान-2021 में प्रेजेंट किया गया है. ‘एब्‍योम’ एयरोस्‍पेस के क्षेत्र में काम करने वाला यूपी का एकमात्र स्‍टार्टअप है. जैनुल साल 2018 से भारतीय अं‍तरिक्ष शोध संस्‍थान (इसरो) से अपने अलग-अलग प्रोजेक्‍ट के माध्‍यम से जुड़े रहे हैं. इसरो से ही इन्‍हें इस स्‍टार्टअप और प्रोजेक्‍ट पर काम करने की प्रेरणा मिली है.


युवा वैज्ञानिक ने शुरु किया ‘एब्‍योम’ स्‍टार्टअप


मूलरूप से यूपी के कुशीनगर के पंडित राजमंगल पाण्‍डेय सपहा गांव के साधारण परिवार में जन्‍में 20 वर्षीय जैनुल आबेदीन दीनदयाल उपाध्‍याय गोरखपुर विश्‍वविद्यालय से संबद्ध सेंट एण्‍ड्रयूज कॉलेज के बीएससी तृतीय वर्ष (गणित) विषय के छात्र हैं. यहां पर उन्‍हें इंस्‍पायर स्‍कॉलरशिप भी मिलती है. जिसकी मदद से वे पढ़ाई और रिसर्च का खर्च भी उठाते हैं. उनके पिता साबिर अली किसान हैं. वहीं मां शायदा खातून गृहणी हैं. तीन भाई बहनों में जैनुल दूसरे नंबर पर हैं. कोलकाता के 24 परगना जिले से हाईस्‍कूल तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्‍होंने कुशीनगर जिले के महर्षि अरविंद विद्या मंदिर से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की है.


जैनुल बताते हैं कि साल 2018 से ही वे इसरो के साथ जुड़े रहे हैं. लेकिन, प्राइवेट सेक्‍टर के इसरो में दखल नहीं होने की वजह से वे उसके साथ जुड़कर एयरोस्‍पेस के क्षेत्र में कुछ नया नहीं कर पा रहे थे. 16 मई 2020 को कैबिनेट ने प्रस्ताव पास करते हुए भारतीय अन्तरिक्ष क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिया. इसके लिए इसरो की ही एक विशेष इकाई भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष, संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space, Promotion & Authorization Center) का गठन किया गया. जिससे युवा वैज्ञानिकों को एक बुनियादी ढांचा मुहैया कराया जा सके.


इसरो के वेबिनार में हुआ था सेलेक्शन


इसरो ने 20 अगस्त 2020 को "अनलॉकिंग इंडियाज पोटेंशियल इन स्पेस सेक्टर" वेबिनार का आयोजन किया. इस वेबिनार के तीसरे सेशन 'एकेडमिया एंड इंस्टीट्यूशंस' में बात करने के लिए कुछ प्रोफेसरों के अलावा पूरे भारत से मात्र 4 विद्यार्थियों का चयन हुआ था, जिनमें जैनुल भी शामिल हुए. जैनुल ने इसरो के पैनल के सामने अपने बिंदुओं को रखा और कुछ सुझाव भी दिया. जिसकी इसरो के पैनल द्वारा सराहना भी हुई. साथ ही जैनुल ने छात्र स्टार्टअप कैसे शुरू कर सकते हैं, इस विषय पर भी जानकारी हासिल की.


इसके बाद इसरो के साइंटिस्ट और इस इंडस्ट्री के कुछ जानकार लोगों से उन्‍होंने संपर्क किया. इस विषय पर गहन चर्चा की और अपने टीम के सदस्यों के साथ 3 अक्टूबर 2020 को स्टार्टअप ABYOM को लॉन्च कर दिया. इस टीम में टीम लीडर जैनुल आबेदीन, बीटेक अंतिम वर्ष के छात्र अंकित कुमार मिश्र और बीटेक अंतिम वर्ष के छात्र जावेद अख्‍तर शामिल हैं. भविष्‍य में टॉयकाथान-2021 के प्रोजेक्‍ट ‘खिलौना राकेट’ के साथ लिपशित दास, विनय कुमार प्रजापति भी जुड़ेंगे. टीम की ओर से टॉयकाथन 2021 में पेश किए गए इस मॉडल को विशेषज्ञों ने सराहा है. यह टीम अंतिम राउंड के लिए क्वालीफाई कर गई है.


टॉयकाथान-2021 में सेलेक्ट हुआ ‘एब्योम’ 


टॉयकाथान-2021 एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता है. जिसका उद्देश्य मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत देश को टॉय और गेम्स इंडस्ट्री में वैश्विक पहचान दिलाना है. इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 5 जनवरी 2021 को 'टॉयकाथान-2021' नाम से इस वर्चुअल टॉय हैकथॉन को लॉन्च किया था. इसमें ऐसे खिलौनों को प्राथमिकता दी जाएगी. जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति, इतिहास, मूल्यों और पौराणिक कथाओं के साथ वैदिक गणित-विज्ञान के सिद्धान्तों को सरल ढंग से अभिव्यक्त करने में सक्षम हों.


अंतिम चक्र में टीम को मॉडल बनाकर पेश करना है. फाइनल राउंड के लिए तैयारियों में जुटी टॉयकाथान टीम के मेंटर दिग्विजय नाथ पीजी कॉलेज के भौतिक विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. नितीश शुक्ला हैं. टॉयकाथन 2021 में देश के चुनिंदा संस्थानों के छात्रों की टीमें शामिल हुई हैं. यह स्वदेशी आकर्षक, ज्ञानवर्धक और बहुउपयोगी खिलौने बनाने की प्रतियोगिता है. इसमें चयनित प्रोजेक्ट को केन्द्र सरकार फंड देगी. इसमें करीब 14,100 टीमों ने प्रतिभाग किया है. करीब 250 टीमें अंतिम चक्र के लिए क्वालीफाई हुई हैं.


क्वालीफाई करने वाली टीमों में गोरखपुर की ‘एब्योम’ भी शामिल है. एब्योम की टीम ने एयरोस्पेस पर आधारित खिलौने के मॉडल पेश किए थे. अब उस आधार पर खिलौने बनाकर उसे भेजना है. यह खिलौने सीबीएसई संचालित स्कूलों की लैब में ही बनाए जाएंगे. खिलौने बनाने में छात्रों की मदद भी ली जाएगी. उन्‍होंने बताया कि इस मॉडल का विकास स्कूलों में बनी अटल प्रयोगशाला में होगा. गोरखपुर के सूरजकुंड सरस्वती विद्या मंदिर, एयरफोर्स स्थित केन्द्रीय विद्यालय समेत आधा दर्जन स्कूलों में यह सुविधा है. यहीं पर सैद्धांतिक मॉडल को क्रियात्मक मॉडल में तब्दील किया जाएगा.


थ्रीडी मॉडल से बनाया जाएगा रॉकेट का मॉडल


इस लैब में थ्रीडी मॉडल का ढांचा तैयार किया जाएगा. उसे स्क्रू की मदद से कसेंगे. इस रॉकेट के मॉडल में सेंसर, मोटर, मैगनेट को लगाया जाएगा. इस राकेट को रिमोट से ऑपरेट कर सकेंगें. इसकी लागत करीब 1600 रुपए आएगी. माडल को तैयार करके इसका प्रोटोटाइप आयोजकों को भेजना है. यह खिलौना राकेट हवा में 200 मीटर उंचाई तक जाएगा. चीन से तनाव के बीच केंद्र सरकार ने खिलौना उद्योग को प्रोत्साहित करने का फैसला किया. स्वदेशी खिलौने के उद्योग को चीन ने ध्वस्त कर दिया था. टॉयकाथन के जरिए सरकार सस्ते और बेहतरीन खिलौनों का उत्पादन करना चाहती है.


ऐसे खिलौने जो चीनी उत्पादों को टक्कर दे सकें. केंद्र सरकार इस योजना के जरिए 1000 करोड़ रुपए का निवेश करेगी. उम्मीद है कि इसमें एब्योम की भी हिस्सेदारी होगी. ‘एब्‍योम’ भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को पूरी तरह से पुन: प्रयोज्य बनाने और अंतरिक्ष के मलबे से पृथ्वी को बचाने के मिशन और विजन के साथ शोध कार्य को अंजाम दे रहा है. एब्‍योम का स्‍पेस टॉय पूरी तरह से मेड इन इंडिया उत्पाद है. और यह बच्चों के खेलने और सीखने के लिए भी सुरक्षित है. इस खिलौने का डिजाइन चुंबकीय प्रभाव पर आधारित है. इसमे एक चुंबक इस प्रकार निलंबित रहता है, जैसे की वह अंतरिक्ष में हो. यह एक DIY (डू इट योरसेल्फ) खिलौना है. जिसका उपयोग बच्चे रॉकेट के निर्माण में शामिल होने वाले घटकों को बड़े सरल ढंग से सीखने में सक्षम होंगे और उनकी रुचि भी विकसित होगी.


रॉकेट साइंस को आसान बनाना है लक्ष्य


एब्‍योम की टीम का उद्देश्य भारत में युवा मन को प्रोत्साहित करने के लिए अंतरिक्ष शिक्षा और रॉकेट संस्कृति का व्यवसायीकरण और व्यावहारिक करना है. जैसा कि रॉकेट विज्ञान को विश्व का सबसे कठिन विषय माना जाता है. लेकिन, इनका उद्देश्‍य इसे सबसे सरल भाषा में परिभाषित करना है. इस खिलौने को कम से कम लागत में तैयार करने की कोशिश की गई है. साथ ही इसके डिजाइन में पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का प्रयोग किया गया है. एक और दिलचस्प बात यह है कि इसको बनाने के लिए किसी भी विद्युत उपकरण का प्रयोग नहीं किया है.


इसे समय-समय पर अपग्रेड और नए तरीके से मॉडिफाई भी कर सकते हैं. ‘एब्‍योम’ एक नव-स्थापित स्पेसटेक और डिफेंस स्टार्टअप है. जो अंतरिक्ष युग में भारतीय परिप्रेक्ष्य में बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव लाने की योजना बना रहा है. अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने के लिए कई तरह के रॉकेट और प्रक्षेपण वाहनों का प्रयोग किया जाता है. अभी तक भारत केवल परंपरागत प्रक्षेपण यान का प्रयोग करता आ रहा है. इनकी लागत बहुत ज्यादा होती है. ‘एब्‍योम’ पुनः प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यानों पर काम कर रहा है. जो प्रत्येक लॉन्च पर पड़ने वाले खर्च को काफी कम कर देगा.


ऐसी तकनीक पर काम करने वाली कम्पनियों में ABYOM अकेला नहीं है. अमेरिका के एलन मस्क की स्पेस एक्स इस क्षेत्र में एक अग्रणी कंपनी है. इसके साथ ही चीन की कई कंपनियां इस तकनीक पर काम कर रही हैं. ABYOM "मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड" और "आत्मनिर्भर भारत" के सपने को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है.


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