Gorakshpeeth Shobhayatra: गोरक्षपीठ सिर्फ उपासना का स्थल नहीं है, बल्कि जाति, पंथ मजहब के अंतर से दूर ऐसा बड़ा केन्द्र हैं, जहां सांस्कृतिक एकता की नजीर देखने को मिलती है. बात चाहे पीठ के आंतरिक प्रबंधन की हो या फिर जन सरोकारों की,  यहां कभी भी जाति या धर्म की दीवार आड़े नहीं आती.


पीठ की सामाजिक समरसता की एक जीवंत तस्वीर हर साल विजयदशमी के दिन पूरी दुनिया के सामने आती है. इस गोरखनाथ मंदिर से निकलने वाली शोभायात्रा में मुस्लिम समाज द्वारा शोभायात्रा की अगुवाई कर रहे गोरक्षपीठाधीश्वर का अभिनंदन किया जाता है.


मुख्यमंत्री योगी भी हैं यहां के पीठाधीश्वर -


योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के साथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं. इसकी तीन पीढ़ियों ने लगातार समाज को जोड़ने और जाति, धर्म से परे समाज के असहाय वर्ग को संरक्षण देने का काम किया है. योगी आदित्यनाथ के दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ के बारे में कभी वीर सावरकर ने कहा था कि यदि महंत दिग्विजयनाथ जी की तरह अन्य धमार्चार्य भी देश, जाति व धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुन: जगद्गुरू के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है.


हर धर्म के लोग लेते हैं हिस्सा -


यहां अनेकता में एकता की झलक इस प्रकार देखी जा सकती है कि मकर संक्रांति से शुरू होकर महीने भर चलने वाले खिचड़ी मेले में तमाम दुकानें अल्पसंख्यकों की ही होती हैं. गोरखनाथ मंदिर से जुड़े कार्यक्रमों में भी जाति, पंथ और मजहब का कोई भेदभाव नहीं होता. हिंदू धर्म की सभी जातियों के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी इसमें अहम भूमिका में रहते हैं.  


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