रायबरेली: खेतों में किसान पराली न जला पाएं इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे. जिसके अनुपालन में दर्जनों किसानों पर कार्रवाई भी हुई. वहीं, दूसरी तरफ कलेक्ट्रेट परिसर में भारी मात्रा में सरकारी दस्तावेजों को संदिग्ध परिस्थितियों में जलाकर प्रदूषण फैलाने का काम किया गया. इस पर प्रशासनिक अधिकारियों की नजरें नहीं पड़ीं. जबकि, जला रहे कर्मचारियों ने ट्रेजरी अधिकारी के आदेश के बाद सरकारी दस्तावेजों को जलाने की बात कबूल की है.


किसानों पर हुई कार्रवाई
प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों से पराली न जलाने की अपील की थी साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों को सख्त निर्देश भी दिए थे कि यदि कोई किसान पराली जलाते हुए पाया जाए तो उसके खिलाफ संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज कार्रवाई की जाए. जिसपर अमल करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने किसानों पर कार्रवाई भी की थी.


सरकारी दस्तावेजों को जलाया गया
रायबरेली के कलेक्ट्रेट परिसर में अपर जिलाधिकारी प्रशासन कार्यालय के ठीक सामने सरकारी दस्तावेजों को जलाया गया. खुलेआम जल रहे सरकारी दस्तावेजों को पूछने वाला कोई नहीं दिखा. जबकि, उससे लगातार प्रदूषण फैल रहा था. जब एबीपी टीम का कैमरा चमका तब ट्रेजरी ऑफिस के कर्मचारी वहां पहुंचे और ट्रेजरी अधिकारी के आदेश के बाद सरकारी दस्तावेजों को जलाने की बात कही. जब कोषाधिकारी से बात करने की कोशिश की गई तो वे अपने कार्यालय में मौजूद नहीं मिले.


नियम तो सभी के लिए हैं
खास बात ये कि क्या एनजीटी के नियमों का उल्लंघन सिर्फ किसान करता है? अल्प आय वर्ग के लोग करते हैं? बड़े लोगों और सरकारी अधिकारियों के ऊपर क्या ये नियम लागू नहीं होता है? खुलेआम जल रहे सरकारी दस्तावेजों से फैल रहे प्रदूषण को देखकर वहां उपस्थित सभी के मन में यही प्रश्न कौंध रहा था.


नहीं दे पाए जवाब
जब इस बाबत वहां मौजूद कर्मचारी दिलीप सोनकर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि एक अवधि के बाद सरकारी कागजातों को नष्ट किया जाता है. जिसके चलते वरिष्ठ कोषाधिकारी के आदेश पर इन कागजातों को जलाया गया है. जब उनसे पूछा गया कि इतना प्रदूषण फैल रहा है क्या एनजीटी के नियमों का उल्लंघन नहीं हो रहा है तो उस पर वो कोई जवाब नहीं दे पाए.


दस्तावेज किस तरह के थे
फिलहाल खुलेआम सरकारी दस्तावेजों को जलाने के बाद इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि आखिर दस्तावेज किस तरह के थे? संदिग्ध परिस्थितियों में क्यों सुबह-सुबह ही आग लगा दी गई? इन सभी प्रश्नों से कोषाधिकारी का मौखिक आदेश कटघरे में खड़ा होता है.


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