Azam Khan News: समाजवादी पार्टी के महासचिव आजम खान के हाई प्रोफाइल मुकदमों पर शासन की पैनी निगाहें लगी हुई है. किसी तरह की भी कोई चूक न हो इसके लिए लगातार सतर्कता बरती जा रही है. इसी क्रम में रामपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अशोक शुक्ला के खिलाफ गृह विभाग उत्तर प्रदेश शासन ने जांच के आदेश दिए हैं. बताया गया कि जालसाजी कर शत्रु संपत्ति खुर्द-बुर्द करने के मामले में गंभीर धाराएं हटाने और आज़म खान का नाम निकालने के लिए विवेचक बदलने पर शासन ने यह जांच बैठाई है.


उत्तर प्रदेश शासन के गृह (पुलिस) अनुभाग- 12 से दिनांक 10 सितंबर 2024 को जारी हुए आदेश में रामपुर के थाना सिविल लाईन में दर्ज मुकदमे अपराध संख्या 126/2020 अंतर्गत धारा 218,420,467,468,471,471 भारतीय दंड संहिता, सरकार बनाम सैयद आफाक अहमद की जांच के महत्वपूर्ण चरण में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अशोक शुक्ला द्वारा विवेचक बदलकर विवेचना को प्रभावित कर अदालत में सतही और दूषित चार्जशीट दाखिल करने के मामले में जांच के लिए कहा गया है. 


पूर्व IPS के खिलाफ जांच आदेश
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रामपुर अशोक शुक्ला के खिलाफ जांच के लिए गृह विभाग ने एक उच्च स्तरीय कमेटी का भी गठन किया है जिसमें वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चैत्रा वी, मंडल आयुक्त अलीगढ़ मंडल - अलीगढ़ और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मंजिल सैनी, पुलिस महानिरीक्षक सतर्कता, लखनऊ को जांच कर स्पष्ट संस्तुति के साथ जांच आख्या शासन को उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं.


मामला आज़म खान की मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी परिसर के अंतर्गत आने वाली भूमि का है जो इमामुद्दीन कुरैशी पुत्र बदरुद्दीन कुरैशी के नाम दर्ज थी. इमामुद्दीन कुरैशी 1947- 48 में भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे और यह संपत्ति शत्रु संपत्ति के रूप में सन 2006 में भारत सरकार के कस्टोडियन विभाग के अंतर्गत दर्ज कर ली गई थी. रिकॉर्ड की जांच करने पर यह मामला प्रकाश में आया कि राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में जालसाजी कर शत्रु संपत्ति को खुर्द बुर्द करने के लिए आफाक अहमद का नाम गलत तरीके से राजस्व रिकॉर्ड में अंकित कर दिया गया था तथा रिकॉर्ड के पन्ने फटे हुए पाए गए.


फर्जी प्रविष्टियां प्रकाश में आने पर सन 2020 में यह मुकदमा थाना सिविल लाइंस में दर्ज कराया गया था जिसकी विवेचना के दौरान 2023 में विवेचक इंस्पेक्टर गजेंद्र त्यागी ने हल्का लेखपाल के बयानों के आधार पर मोहम्मद आजम खान का नाम आरोपियों में शामिल कर दिया था लेकिन तत्कालीन पुलिस अधीक्षक द्वारा अपने आदेश के द्वारा गजेंद्र त्यागी से विवेचना हटाकर अपराध शाखा में हस्तांतरित करते हुए इंस्पेक्टर श्रीकांत द्विवेदी को विवेचक बना दिया था.


जांच में ढिलाई बरतने का आरोप
इसके बाद न केवल पुलिस जांच में ढिलाई बरती गई और जालसाजी की धारा 467 /471 का विलोपन कर धाराओं को हल्का किया गया बल्कि चार्जशीट से आजम खान का नाम भी निकाल दिया गया था.  यह मामला किसी तरह शासन की पैनी निगाह से बच नहीं सका और शासन ने आजम खान और अन्य आरोपियों को फायदा पहुंचाने के लिए अचानक विवेचना बदलने के आदेश दिए जाने पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रामपुर अशोक शुक्ला की भूमिका को संदिग्ध मानते हुए यह कड़ा कदम उठाया है.


इस मामले को लेकर शासन की गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि विवेचना बदलने के बाद चार्जशीट से आजम खान का नाम निकाले जाने और गंभीर धाराओं को कम किए जाने पर पुलिस अधीक्षक स्तर के बड़े अधिकारी के संदिग्ध आचरण पर संज्ञान लेने में ज़रा भी संकोच नही किया गया तथा जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर दिया गया है.


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