Varanasi News: वाराणसी के विवादित ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अर्चना की इजाज़त दिए जाने की मांग से जुड़ा मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आएगा. शाम 4.45 बजे जस्टिस जेजे मुनीर की सिंगल बेंच का फैसला आएगा.
वाराणसी की अदालत में राखी सिंह समेत पांच महिलाओं का केस चलते रहने के मामले में जिला जज के फैसले के खिलाफ दाखिल अर्जी पर हाईकोर्ट का फैसला आएगा. इस मामले में सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था.
जिला जज के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने याचिका दाखिल की थी. याचिका में वाराणसी की अदालत में मुकदमा दाखिल करने वाली पांचों महिलाओं समेत कुल तक लोगों को पक्षकार बनाया गया था.
जिला अदालत को इस केस की सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं?
हाईकोर्ट को आज यह फैसला देना है कि ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अर्चना की इजाजत दिए जाने की मांग को लेकर वाराणसी की अदालत में दाखिल की गई राखी सिंह समेत पांच महिलाओं का केस चल सकता है या नहीं. इसके साथ ही यह फैसला भी आएगा कि जिला अदालत को इस केस की सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं.
दिल्ली की राखी सिंह समेत 5 महिलाओं ने वाराणसी की जिला अदालत में दो साल पहले याचिका दाखिल की थी. याचिका दाखिल कर ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना नियमित तौर पर किए जाने की इजाजत दिए जाने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मामले की सुनवाई वाराणसी के जिला जज की कोर्ट में चल रही थी. जिला जज की अदालत में पिछले साल मई महीने में यह केस ट्रांसफर हुआ था. मुस्लिम पक्ष ने अदालत में आपत्ति दाखिल कर राखी सिंह समेत महिलाओं की याचिका को खारिज किए जाने की अपील की थी.
राखी सिंह केस को चलते रहने की इजाजत दी थी
मुस्लिम पक्ष की तरफ से कहा गया था कि ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत यह अर्जी सुनवाई के लायक नहीं है. महीनों चली सुनवाई के बाद जिला जज की कोर्ट ने पिछले साल अगस्त महीने में अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था. जिला जज एके विश्वेश की कोर्ट ने पिछले साल 12 सितंबर को अपना फैसला सुनाया था .
जिला जज ने मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज करते हुए राखी सिंह केस को चलते रहने की इजाजत दी थी. ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने वाराणसी के जिला जज की अदालत से पिछले साल 12 सितंबर को आए इसी फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
हाईकोर्ट में दाखिल मुस्लिम पक्ष की याचिका में एक बार फिर दोहराया गया था कि 1991 के प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट के तहत इस मामले की सुनवाई नहीं की जा सकती.
मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि 1991 के प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट के साथ ही 1995 के सेंट्रल वक्फ एक्ट तहत भी यह सिविल वाद पोषणीय नहीं है.