Gyanvapi Masjid Survey: उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया. अदालत ने अपने फैसले में एक ओर जहां वाराणसी की जिला अदालत को 6 महीने के भीतर फैसला देने का निर्देश दिया है तो वहीं मुस्लिम पक्ष की पांच याचिकाएं खारिज कर दी हैं. 


अब यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है. जानकारी के मुताबिक मस्जिद की इंतजामियां कमेटी भी सुप्रीम कोर्ट जाएगी. 


दीगर है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के स्वामित्व को लेकर वाराणसी की एक अदालत में लंबित मूल वाद की पोषणीयता और ज्ञानवापी परिसर का समग्र सर्वेक्षण कराने के निर्देश को चुनौती देने वाली सभी पांच याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दी.



न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने सुनवाई के दौरान कहा कि वर्ष 1991 में वाराणसी की अदालत में दायर मूल वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है और यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से निषिद्ध नहीं है.


ये याचिकाएं ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर की गई थीं.


इन याचिकाओं में वाराणसी की अदालत के आठ अप्रैल 2021 को दी गई. उस व्यवस्था को भी चुनौती दी गई थी, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया गया था.


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अदालत ने कहा, 'किसी भी पक्ष के अनुरोध पर सुनवाई को अनावश्यक टाला नहीं जाना चाहिए. अगर कोई अंतरिम आदेश है, तो उसे हटाया जाता है. जरूरत पड़ने पर निचली अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को आगे सर्वेक्षण का निर्देश दे सकती है.”


अदालत ने अपने 63 पन्नों के आदेश में कहा, 'धार्मिक पूजा स्थल अधिनियम, 1991 'धार्मिक चरित्र' को परिभाषित नहीं करता और इस अधिनियम के तहत केवल 'परिवर्तन' और 'पूजास्थल' को परिभाषित किया गया है. विवादित स्थल का धार्मिक चरित्र क्या होगा, यह निष्कर्ष सक्षम अदालत द्वारा साक्ष्यों के आधार पर निकाला जा सकता है.'


इस वाद में उठाया गया मुद्दा राष्ट्रीय महत्व - अदालत
अदालत ने कहा, 'यह अधिनियम पूजा स्थल का परिवर्तन रोकता है, लेकिन यह 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के निर्धारण के लिए किसी प्रक्रिया को परिभाषित नहीं करता है.'


अदालत ने कहा, 'वर्ष 1991 में दायर हुये मूल वाद को 32 वर्ष बीत चुके हैं और प्रतिवादियों द्वारा लिखित बयान दाखिल किए जाने के बाद केवल मुद्दे तय किए गए हैं. इस अदालत द्वारा 13 अक्टूबर 1998 को जारी अंतरिम आदेश के कारण इस मुकदमे में सुनवाई करीब 25 साल से लटकी हुई है.'


यह भी अदालत ने कहा, 'इस वाद में उठाया गया मुद्दा राष्ट्रीय महत्व का है. यह दो पक्षों के बीच का वाद नहीं है, बल्कि यह इस देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है. वर्ष 1998 से लागू अंतरिम आदेश की वजह से इस मुकदमे पर सुनवाई आगे नहीं बढ़ी. राष्ट्रहित में इस वाद पर तेजी से सुनवाई कर निर्णय सुनाए जाने की आवश्यकता है जिसमें दोनों पक्षों का सहयोग अपेक्षित है.'