Exclusive: ज्ञानवापी के तहखाने का फैसला था चुनौतीपूर्ण? जानें- इंटरव्यू में क्या-क्या बोले रिटायर जज विश्वेश
Gyanvapi Case: रिटायर जज एके विश्वेश ने कहा न्याय प्रणाली में साक्ष्य और सबूत के आधार पर हर मामलों में फैसले दिए जाते हैं. नियमित तौर पर अपने जीवन के सभी मामलों में हमारी भी यही प्राथमिकता रही है.
Gyanvapi Vyasji Tahkhana Case: वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित तहखाना में पूजा-पाठ का आदेश पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. बीते 31 जनवरी को वाराणसी के जिला जज डॉ. ए. के. विश्वेश ने इस मामले पर फैसला सुनाया है. यह फैसला सुनाने के बाद वह अपने पद से रिटायर्ड हो गए. काशी, मथुरा और अयोध्या का मामला पूरे देश में हमेशा से ही सुर्खियों में रहा है. बीते 31 सालों से तहखाना में बंद पूजा पाठ के बाद पुनः पूजा-पाठ शुरू करने को लेकर प्रबंधन करने का आदेश ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा है.
हालांकि इसको लेकर जहां हिंदू पक्ष में खुशी का माहौल है, वहीं अंजुमन इंतजामिया मसाजिद, AIMPLB सहित मुस्लिम पक्ष ने फैसले पर भारी नाराजगी जताई है. एबीपी लाइव ने वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर स्थित तहखाना मामले में आदेश देने वाले रिटायर्ड जिला जज डॉ. ए. के. विश्वेश से एक्सक्लूसिव बातचीत की है.
प्रश्न- काशी ज्ञानवापी परिसर का यह मामला आपके जीवन काल में सभी कानूनी मामलों से अलग कैसे रहा?
जवाब- भारतीय न्याय प्रणाली में साक्ष्य और सबूत के आधार पर हर मामलों में फैसले दिए जाते हैं. नियमित तौर पर अपने जीवन के सभी मामलों में हमारी भी यही प्राथमिकता रही है. इसलिए ज्ञानवापी परिसर स्थित तहखाना मामले में हमारे द्वारा दिया गया फैसला सबूत डॉक्यूमेंट और साक्ष्य के आधार पर दिए गए हैं. इसलिए मेरे द्वारा दिए गए इस फैसले को किसी भी अन्य मामलों के फैसले से अलग रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
प्रश्न- क्या ज्ञानवापी (तहखाना) मामले में एक चुनौतीपूर्ण निर्णय रहा?
जवाब- विभागीय जिम्मेदारी के अनुसार पद पर रहते हुए कोई भी निर्णय को आप स्वतंत्र व्यवस्था के तहत सही साक्ष्य और सबूत के आधार पर देते हैं.जिस प्रकार अन्य कानूनी मामलों को लेकर भी अदालत ने निष्पक्ष होकर फैसला सुनाया है ठीक उसी प्रकार इस मामले में भी फैसला सुनाया गया है. एक जिम्मेदार पद पर रहते हुए हम इसे चुनौती पूर्ण के रूप में नहीं स्वीकार सकते हैं.
प्रश्न- इस मामले से जुड़े एक वर्ग का कहना है कि वह अदालत का सम्मान करता है लेकिन सिर्फ एक पक्षीय आधार पर ही फैसला सुना दिया गया?
जवाब- ज्ञानवापी मामले में दोनों पक्षों को पर्याप्त समय दिया गया और उनको अपनी बातों को रखने का पूरा अवसर भी . भारतीय कानून व्यवस्था में एक पक्षीय आधार पर कभी भी फैसला नहीं सुनाया जाता है. दोनों पक्षों की बात को अदालत ने पूरी गंभीरता के साथ सुना है और इस मामले में भी पूरी तरह निष्पक्ष होकर फैसला दिया गया है .
प्रश्न- आपके कार्यकाल का यह अंतिम फैसला रहा और ऐतिहासिक रहा, क्या आपने कभी सोचा था कि रिटायर्ड होने के ठीक पहले आपको ऐसे फैसले से गुजरना पड़ेगा?
जवाब- कार्यकाल के अंतिम दिन जरूर यह फैसला सुनाया गया, लेकिन पद पर रहते हुए जिस प्रकार सभी मामलों की सुनवाई के लिए निष्पक्ष आधार रहता है. ठीक उसी प्रकार ज्ञानवापी के तहखाना मामले के लिए भी दोनों पक्षों के प्रमाण और सबूत ही आधार रहे. पद की जिम्मेदारी निभाते हुए बीते सभी मामलों की तरह ही इस फैसले को सबूत और साक्ष्य के आधार पर ही सुनाया गया हैं . अदालत किसी दबाव और जल्दीबाजी में फैसला नहीं देती है. ज्ञानवापी मामले में दोनों पक्षों को पर्याप्त समय दिया गया.
रिटायर्ड जज डॉ. ए. के. विश्वेश ज्ञानवापी मामलों की सुनवाई कर रहे थे. इनके द्वारा ही 31 जनवरी कों अपने कार्यकाल के अंतिम दिन वाराणसी ज्ञानवापी परिसर स्थित तहखाना में नियमित पूजा पाठ प्रबंध करने का आदेश सुनाया गया था. वाराणसी जिला से पहले वह बुलंदशहर और अन्य दो जिलों के भी जिला जज रह चुके हैं. डॉ. ए. के. विश्वेश उत्तराखंड के रहने वाले हैं.