UP Politics: यूपी के लिए नई तस्वीर गढ़ेगा साल 2024, सपा-बीएसपी और कांग्रेस से अलग बीजेपी बैठा रही नए समीकरण
साल 2024 यूपी की राजनीति के लिए कई मायनों में खास होने वाला है. एक ओर जहां लोकसभा चुनाव की दुंदुभी बजेगी तो वहीं राज्यसभा और विधान परिषद की खाली हो रही सीटों पर भी समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आएंगे.
UP Politics: साल 2024 की शुरूआत हो गई है. नए साल को लेकर भारत समेत दुनिया भर में जश्न का माहौल है. भारत में भी हर जगह लोगों ने 31 दिसंबर 2023 और 1 जनवरी 2024 की दरम्यानी रात पटाखे और आतिशाबाजी के साथ नए साल का स्वागत किया. यह साल भारतीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है. एक ओर जहां इस साल लोकसभा चुनाव हैं तो वहीं आंध्र प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव भी हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी यह साल नई राजनीतिक सुबह ला सकता है. यूपी में राज्यसभा और विधान परिषद की खाली हो रही सीटों पर भी रणनीति और नए समीकरण देखे जा सकते हैं.
लोकसभा चुनाव के नजरिए से साल 2024 में यूपी की भूमिका अहम है. राज्य में 80 लोकसभा सीटें हैं. सभी राजनीतिक दलों का दावा है कि वह 80-80 सीटें जीतेंगे. समाजवादी पार्टी जहां कह रही है कि वह सभी 80 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को हराएगी तो वहीं BJP मिशन 80 के लिए पूरी ताकत झोंके हुए है. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी आगामी चुनाव में अकेले इलेक्शन लड़ने का मन बना चुकी है. वहीं कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल I.N.D.I.A. परचम के तले सपा के साथ चुनाव लड़ेंगे. अभी तक तीनों दलों में यूपी की सीट शेयरिंग पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है लेकिन सभी दल अपने-अपने हिसाब से दावे कर रहे हैं.
सपा का कहना है कि वह इस अलायंस में सीटें मांगेगी नहीं बल्कि देगी. वहीं RLD भी सपा के साथ बातचीत कर उचित सीटें हासिल करने की जुगत में है. दूसरी ओर कांग्रेस 15-20 सीटों की मांग कर रही है. यूपी कांग्रेस के चीफ अजय राय कई मौकों पर यह संकेत दे चुके हैं कि अगर गठबंधन में पार्टी को उचित सम्मान नहीं मिला तो पार्टी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.
RLD चीफ जयंत चौधरी भी पश्चिमी यूपी की सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए पुरजोर ताकत झोंक चुके हैं. सूत्रों का दावा है कि RLD, जाट बाहुल्य सीटों पर अपना दावा ठोंकेगी. वहीं सपा के संदर्भ में सूत्रों का दावा है कि पार्टी ने फैजाबाद, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, कन्नौज, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बदायूं में प्रत्याशियों के नाम तय कर लिया है.
लाभार्थियों को एकजुट कर रही BJP
साल 2024 में यूपी की राजनीति किस करवट बैठेगी यह जातीय समीकरणों पर भी निर्भर करता है. BJP की कोशिश है कि वह साल 2019 के आम चुनावों में मिले 49.98 फीसदी वोट को न सिर्फ बरकार रखे बल्कि इसका दायरा और बढ़ाए. इसके लिए BJP ने एक अलग वोट बैंक पर फोकस किया जिसे लाभार्थी वर्ग नाम दिया गया है. साल 2017 में यूपी में BJP सरकार आने के बाद पार्टी केंद्र की योजनाओं को पूरी ताकत के साथ जमीन पर लागू कराने और उनकी उचित समीक्षा करते हुए इस कोशिश में लगी है कि जिन लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है वह पार्टी के साथ भी बतौर मतदाता जुड़ सकें. इसके लिए BJP ने कई सभाएं और कार्यक्रम भी किए.
बीते 30 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अयोध्या गए तो उन्होंने सरकारी योजना का लाभ लेने वाली मीरा से मुलाकात की और उनके घर चाय पी. सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों से BJP के संवाद की यह एक बानगी भर है. BJP ने पार्टी कैडर को भी यह संदेश पहुंचा दिया है कि चुनाव के एलान के पहले जरूरतमंदों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले इसके लिए वह जुट जाएं. इसके अलावा अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के संदर्भ में भी जनता को अपने साथ जोड़ने की कोशिशों में लगी हुई है.
BJP न सिर्फ लाभार्थी वोट को अपने साथ लाने की कोशिश में है इसके अलावा वह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा, अपना दल एस और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल भारत यानी निषाद पार्टी को भी किसी कीमत पर अपने से अलग नहीं होने देना चाहती. साल 2024 के चुनाव में वह सीट शेयरिंग के दौरान गठबंधन के साथियों को भी उचित सम्मान देने की कोशिश में है.
सपा को पीडीए पर भरोसा
उधर, विपक्ष की तैयारी की बात करें तो पार्टियां जातीय समीकरण और सरकारी योजनाओं में कथित बंदरबांट के आरोपों के साथ BJP पर हमलावर हैं. 30 दिसंबर को एटा में एक सभा के दौरान सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा- '24 का चुनाव देश का संविधान बचाने का चुनाव है. जिन सवालों का जवाब देना चाहिए था उन सवालों से बचने के लिए लोकसभा के सांसदों को निकाल दिया गया. 24 में ये लौटकर आ गए तो ये वोट देने का अधिकार भी छीन लेंगे.'
अखिलेश यादव ने एटा में ही कहा था- 'BJP सबका साथ सबका विकास की बात करती है लेकिन सबके साथ गैर बराबरी नहीं खत्म हो रही है. ये PDA का जो हमारा नारा है यह गैर बराबरी, भेदभाव खत्म करने के लिए है.' यूपी में अखिलेश यादव ने सिर्फ INDIA अलायंस के साथ हैं, बल्कि पीडीए पर भी फोकस कर रहे हैं. अखिलेश यादव ने पीडीए का फुलफॉर्म भी बताया है. उन्होंने पीडीए में पी- पिछड़ा, डी- दलित और ए को अल्पसंख्यक, अगड़ा और आदिवासियों के लिए बताया था. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि INDIA के साथ-साथ पीडीए सपा के लिए कितना मददगार साबित होता है. सपा को साल 2019 के चुनाव में 18.11% वोट मिले थे. हालांकि तब पार्टी ने बसपा के साथ अलायंस भी किया था.
दहाई के आंकड़ा पार करने की कोशिश में कांग्रेस
इसके अलावा कांग्रेस की कोशिश है कि वह साल 2009 आम चुनावों के परिणामों को दोबारा दोहराए और साल 2019 में मिल कुल 6.36% मत के दायरे को दहाई के आंकड़े के पार ले जा सके. कांग्रेस के लिए इस बार का चुनाव न सिर्फ परिणाम दोहराने के लिए बल्कि प्रतिष्ठा का भी है. अमेठी और रायबरेली के लिए अजय राय पहले ही दावा कर चुके हैं कि इन सीटों से क्रमशः राहुल गांधी और सोनिया गांधी चुनाव लड़ेंगी. वहीं समाचार एजेंसी IANS ने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि INDIA अलायंस में इस आशय की चर्चा है कि वाराणसी लोकसभा सीट से कांग्रेस को प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारना चाहिए.
BSP की क्या होगी रणनीति?
इन सबके बीच बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी हैं. BSP चीफ मायावती कई मौकों पर यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी INDIA और NDA, दोनों गठबंधनों का हिस्सा नहीं बनेगा. हालांकि उन्होंने बीते दिनों विपक्षी दलों और अपने पार्टी के नेताओं को यह कहा था कि किसी भी किस्म की विवादित बयानबाजी न की जाए. किसी को कभी किसी की जरूरत भी पड़ सकती है. ऐसे में यह माना जा रहा है कि अगर चुनाव के बाद गठबंधन की स्थिति बनी तो मायावती राजी हो सकती हैं. पार्टी के सांसद मलूक नागर पहले भी कह चुके हैं कि BSP, इंडिया अलायंस में तभी शामिल होगी जब मायावती को पीएम फेस घोषित किया जाए. साल 2019 के आम चुनावों में BSP को 19.43% वोट मिले थे. साल 2024 के चुनाव के लिए पार्टी के सामने चुनौती है कि वह न सिर्फ अपना वोट सहेजे रखे बल्कि उसके वोटबैंक में BJP की 'सेंधमारी' भी रोक पाए.
चंद्रशेखर बनेंगे नई ताकत!
इन सबके बीच आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर की अगुवाई में पश्चिमी यूपी में एक नई ताकत उभर रही है. आजाद ने एक ओर जहां इंडिया अलायंस से यह कहा है कि गठबंधन सिर्फ दलों का नहीं बल्कि जनता का भी हो, वहीं दूसरी ओर खुद को नगीना सीट से प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि सपा और RLD की उनके नगीना सीट से लड़ने पर क्या प्रतिक्रिया है.
RLD के लिए भी चुनौती
राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी यह साल नई चुनौतियों का वर्ष है. एक ओर जहां INDIA अलायंस के परचम तले वह सपा और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ रही है वही उसके लिए पश्चिमी यूपी में अपना वर्चस्व बनाना बड़ी चुनौती है. पार्टी की कोशिश है कि वह साल 2024 के चुनाव में पश्चिमी यूपी के क्षेत्र में नई ताकत बन कर उभरे. RLD चीफ और अखिलेश यादव के बीच सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक बात साफ नहीं हो पाई है लेकिन जयतं को यह उम्मीद है कि गठबंधन में उनकी बात सुनी जाएगी.
राज्यसभा और विधान परिषद की भी चर्चा
लोकसभा चुनावों के बीच यूपी में विधान परिषद और राज्यसभा चुनाव की भी चर्चा रहेगी. राज्यसभा और विधान परिषद से खाली हो रही सीटों पर ज्यादातर प्रत्याशी BJP के ही जीतने के आसार हैं. विधानसभा में संख्या बल के हवाले से देखें तो कुछ सीटों पर सपा भी जीत सकती है. हालांकि कौन से चेहरे यूपी से इस बार राज्यसभा जाएंगे और किन्हें विधानपरिषद का मौका मिलेगा, अभी तक इस सपा और BJP ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. माना जा रहा है कि दोनों ही दल नए चेहरों को मौका देंगे.
कुल मिलाकर देखा जाए तो साल 2024 एक ओर जहां नया उल्लास लाया है वहीं यूपी के राजनीतिक परिदृश्य में नई तस्वीर देखने को मिल सकती हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी आम चुनाव के बाद यूपी में कौन सा दल नई ताकत बन कर उभरता है.