Navratri 2022: नवरात्रि पर हरिद्वार में शक्तिपीठ चंडी देवी मंदिर में उमड़े भक्त, आदि शंकराचार्य से जुड़ा है नाता
उत्तराखंड के हरिद्वार में चंडी देवी मंदिर के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है. यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है जो नील पर्वत पर विराजमान है.
Uttarakhand News: नवरात्र (Navratra) पर मां दुर्गा (Maa Durga) के 51 शक्तिपीठों (Shaktipeeth) में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. उत्तराखंड के हरिद्वार (Haridwar) में स्थित चंडी देवी मंदिर भी इन शक्तिपीठों में से एक है. चंडी देवी मंदिर नील पर्वत पर है जहां मां खंभ के रूप में विराजमान हैं. मंदिर तक भक्त या तो पैदल ही चढ़ाई करते हैं या फिर उड़न खटोले की सहायता से पहुंचते हैं. नवरात्र के अवसर पर चंडी देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी हुई है.
मंदिर के पीछे है यह मान्यता
ऐसी मान्यता है कि नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, मां उसकी हर मन्नत पूरी करती हैं. नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का दरबार आदि काल से है. जब शुंभ और निशुंभ नाम के दो दानवों ने प्रलय मचाया हुआ था, तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया, लेकिन जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगाई. तब भगवान भोलेनाथ और देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया. शुंभ और निशुंभ इसी नील पर्वत पर मां चंडी से बचकर छिपे हुए थे, तभी माता ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया. वहीं, देवताओं ने चंडी मां से वर मांगा कि वह मानव जाति के कल्याण के लिए वह इसी स्थान पर विराजमान रहें. माना जाता है कि तब से ही माता यहां पर विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं.
आदि शंकराचार्य से भी है इसका नाता
वहीं, एक मान्यता यह भी है कि शुंभ और निशुंभ के वध के बाद देवी चंडिका देवी इस पर्वत पर कुछ समय के लिए रुकी थीं. मंदिर का निर्माण कश्मीर राजघराने के सुचात सिंह ने 1929 में करवाया था. वहीं, ऐसा भी माना जाता है कि वर्तमान में मंदिर में मौजूद प्रतिमा को 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था. यह मंदिर नील पर्वत तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है जो कि पंच तीर्थ का एक हिस्सा है.
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