हरिद्वार: एक तरफ महाकुंभ का तीसरा शाही स्नान संपन्न हो चुका है तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना से कुंभ के आयोजन पर ग्रहण लग चुका है. महाकुंभ का समापन कराए जाने के निर्णय को लेकर साधु-संतों में आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है. कुंभ नगरी में कुछ अखाड़ों की तरफ से कुंभ के समापन का समर्थन किया गया है तो वहीं कुछ इसके विरोध में खुलकर सामने आ चुके हैं. 


राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला 
दरअसल, कई अखाड़ों की तरफ से कुंभ के विसर्जन की घोषणा के बाद अब शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप के मुताबिक अखाड़ों ने राजनीतिक दबाव में कुंभ के विसर्जन की घोषणा की है. उन्होंने बताया कि इस दौरान महाकुंभ में देवताओं को प्रतीकात्मक स्नान कराया जा सकता था मगर सियासी लोगों को खुश करने के लिए अखाड़ों ने कुंभ के विसर्जन का निर्णय ले लिया. 


कुछ संतों ने किया विरोध 
बता दें कि, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद नागा बाबाओं के सबसे बड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने हाल ही में देर किए बिना कुंभ के विसर्जन की घोषणा कर दी थी. वहीं, जूना अखाड़ा के सहयोगी अग्नि अखाड़ा समेत आह्वान और किन्नर अखाड़ा भी इनके समर्थन में आ चुका है. जिसके बाद पंचायती अखाड़ा, श्री निरंजनी और श्री तपो निधि आनंद अखाड़े की तरफ से शनिवार को महाकुंभ का विसर्जन कर दिया गया. मगर इसका विरोध तब देखने को मिला जब कुछ अखाड़ों पर आसीन सन्यासी पदाधिकारियों ने इसका खुलकर विरोध किया है. 


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