Haridwar: सिद्धपीठ और शक्तिपीठ की भूमि कहे जाने वाली धर्मनगरी हरिद्वार में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं. इन्ही मंदिरों में से एक है यहां का प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर. देश में मौजूद 52 शक्तिपीठों में से एक चंडी देवी मंदिर (Chandi Devi temple) में मां भगवती खम्ब रूप में विराजमान हैं. वैसे तो साल भर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है मगर नवरात्र  (Chaitra Navratri) के दौरान मंदिर की छंठा अलग ही देखने को मिलती है.


क्या है पौराणिक इतिहास
देश में बने 52 शक्तिपीठों में से एक चंडी देवी मंदिर का पौराणिक इतिहास है. मंदिर के मुख्य पुजारी बताते हैं कि आदि काल में जब शुम्भ निशुम्भ ने धरती पर प्रलय मचाया हुआ था. तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया मगर जब उन्हें सफलता नहीं मिली. तब जाकर उन्होंने मां भगवती से दोनों राक्षसों से मुक्ति पाने की गुहार लगायी. देवताओं की विनती पर मां भगवती ने चंडी का रूप धरकर उन दोनों राक्षसों का वध करने की ठान ली. 


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आदि काल से कर रहीं भक्तों का कल्याण
मां चंडी देवी के प्रकोप से बचने के लिए शुम्भ निशुम्भ नील पर्वत पर आकर चिपक गए. तभी माता ने यहां पर खंभ रूप में प्रकट होकर दोनों का वध कर दिया. इसके बाद देवताओं के आह्वान पर मां चंडी, मानव जाति के कल्याण के लिए इसी स्थान पर खम्ब के रूप में विराजमान हो गईं और आदि काल से अपने भक्तों का कल्याण करती आ रही हैं.


मुरादें पूरी होती हैं
जो भी भक्त सच्चे मन से कोई भी मुराद मांगता है मां चंडी उसे जरूर पूरा करती हैं. अपनी मुराद पूरी करने के लिए मंदिर परिसर में माता की चुनरी बांधने की मान्यता है. मुराद पूरी होने पर भक्त चुनरी खोलने के लिए दोबारा मंदिर आते हैं. यही कारण है कि नवरात्रों के दौरान यहां पर दूर दूर से आने वाले भक्तों की लम्बी कतारें नजर आती हैं. कोरोना के चलते दो साल से मंदिर सूना पड़ा था लेकिन कोरोना का प्रभाव कम होते ही मंदिर की रौनक फिर से लौट आई है.


अलग ही छंटा देखने को मिल रही
शक्तिपीठों में से एक हरिद्वार स्थित मां चंडी देवी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है और पवन चैत्र नवरात्रों में तो मंदिर की छठा अलग ही देखने को मिल रही है. नील पर्वत पर स्थित चंडी देवी मंदिर पहुंचने वाले भक्त तीन किलोमीटर पैदल चलकर कठिन चढ़ाई को पार करके मां के दरबार तक पंहुचते हैं. वहीं दूसरी ओर यहां पर उड़न खटोले से भी पंहुचा जा सकता है. 


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