लखनऊ: 21 अक्टूबर यानी देश के उन शहीद जवानों का दिन, जिनको श्रद्धांजलि देने के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल से लेकर सभी राज्यों के पुलिस तक श्रद्धा से सर झुका लेते है. स्मृति दिवस के मौके पर हर साल 21 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस अपने शहीद जवानों को याद करते हुए लखनऊ पुलिस लाइन की परेड ग्राउंड पर बनी मूर्ति के सामने शहीद साथियों को याद करती है. उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही से लेकर डीजीपी तक, मुख्यमंत्री तक शहीदों की याद में बने स्मारक पर श्रद्धांजलि देते हैं और वहां बनी मूर्ति के सामने सर झुकाते हैं. लेकिन यह किसकी मूर्ति है? कब बनी? कैसे बनी? क्या है इस मूर्ति की कहानी एबीपी गंगा शहीद पुलिसकर्मियों के इस विशेष दिन पर इस मूर्ति की कहानी लेकर आया है.
दरअसल लखनऊ पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड पर बनी मूर्ति 92 साल के हरिहर सिंह की है. आजादी के 1 साल बाद 1948 में उत्तर प्रदेश पुलिस में बतौर सिपाही भर्ती हुए हरिहर सिंह 1988 में कंपनी कमांडर के पद से रिटायर हुए. बीते दिनों को याद करते हुए हरिहर सिंह कहते हैं, "1982 में उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया डीजीपी श्रीशचंद दीक्षित और डीआईजी केएल वत्स ने दिल्ली पुलिस की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी भव्य स्मृति मनाने की योजना बनाई. जिसके लिए शोक मुद्रा में एक मूर्ति बनवाकर स्मारक स्थल बनवाने पर योजना बनाई गई."
हरिहर सिंह कहते हैं कि प्रदेश भर के सिपाहियों की शोक मुद्रा की तस्वीर डीजीपी मुख्यालय में मंगाई गई और जिसमें से उनकी तस्वीर को चुना गया. चुने जाने के बाद जनवरी 1982 में हरिहर सिंह बड़ौदा भेजे गए. 1 महीने तक हरिहर सिंह कभी टेबल पर खड़े होकर, स्टूल पर बैठकर तो कभी घंटों शोक मुद्रा में खड़े रहते तब जाकर यह मूर्ति बनकर आई.
हरिहर सिंह कहते हैं, "उस समय पर एक लाख रुपए की कीमत में यह मूर्ति बनी थी. नौकरी के दौरान हरिहर सिंह एक अचूक निशानेबाज भी थे. यही वजह थी कि वह असम में दो खूंखार शेर को पकड़ने के लिए विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से भेजे गए थे. नौकरी के दौरान हरिहर सिंह ने तमाम आईपीएस अफसरों को घुड़सवारी, परेड, शूटिंग की ट्रेनिंग भी दी, जो बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया बने जिनमे बृजलाल, रिजवान अहमद, मुमताज अहमद, बीके सिंह जैसे बड़े अफसर शामिल हैं.
21 अक्टूबर के स्मृति दिवस परेड में लखनऊ पुलिस भी अपने विभागीय धरोहर स्वरूप शख्सियत को बुलाना नहीं भूलती. पूरे सम्मान के साथ हरिहर सिंह को स्मृति दिवस परेड में बुलाया जाता है. जाहिर है हरिहर सिंह के लिए 21 अक्टूबर का दिन अलग ही महत्व रखता है.
ये भी पढ़ें:
पीएम मोदी बोले- लापरवाह होने का समय नहीं, लॉकडाउन भले खत्म हो गया, कोरोना नहीं | पढ़ें 10 बड़ी बातें
बिहार चुनाव में करोड़पति उम्मीदवारों की कमी नहीं, जानें पहले फेज में किस कैंडिडेट के पास सबसे अधिक संपत्ति?