(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Hate Speech Case: सपा नेता आजम खान को अंतरिम राहत, इस मामले में SC ने निचली अदालत के आदेश पर लगाई रोक
Azam Khan News: आजम खान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 25 जुलाई को हाईकोर्ट ने आजम की याचिका का निपटारा करते हुए रामपुर की अदालत का फैसला बरकरार रखा था.
Hate Speech: नफरती भाषण मामले में सपा नेता आजम खान (SP Leader Azam Khan) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान को वायस सैंपल देने के निचली अदालत की तरफ से पारित आदेश पर बुधवार को अंतरिम रोक लगा दी. न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति पी के मिश्रा की पीठ ने आजम की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस भी जारी किया. आरोप है कि 2007 में आजम खान ने बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ कथित तौर पर नफरत भरा भाषण और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था. मामले में निचली अदालत ने आजम खान के वॉयस सैंपल लेने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट से आजम खान को अंतरिम राहत
आजम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 25 जुलाई को हाईकोर्ट ने आजम की याचिका का निपटारा करते हुए रामपुर की अदालत का फैसला बरकरार रखा था. धीरज कुमार शील नामक शख्स ने 2007 में आजम पर टांडा में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. शील ने सपा नेता पर नफरत भरा भाषण देने और बसपा अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. आजम की आवाज का नमूना टांडा इलाके में दिए गए भाषण से मिलान के लिए मांगा गया था. भाषण एक सीडी में रिकॉर्ड किया गया था.
नहीं देना होगा सपा नेता को वायस का सैंपल
रामपुर में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) और 171-जी (चुनाव के संबंध में गलत बयान देना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने आजम के खिलाफ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की प्रासंगिक धाराएं भी लगाई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादी को नोटिस जारी करते हुए कहा कि निचली अदालत के 29 अक्टूबर 2022 का आदेश अंतरिम तौर पर रोका जाता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 25 जुलाई 2023 को आजम की याचिका का निपटारा करते हुए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा था.