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यूपी में 'बाबा' के खिलाफ क्यों खामोश खड़े हैं बाबा के बुलडोजर? अब उठ रहे ये सवाल

यूपी में साल 2017 के बाद से योगी के बुलडोजर का जलवा है. कोई भी मामला हो तुरंत बुलडोजर की स्टियरिंग घूम जाती है. अब एक बार फिर कुछ ऐसा हुआ है जिसने फिर सवाल खड़े किए हैं कि क्या बाबा का बुलडोजर गरजेगा?

Hathras Stampede: छोटे-बड़े हर तरह के अपराधियों को सजा से पहले उनके घरों पर बुलडोजर चलाने वाली यूपी की पुलिस 121 मौतों के जिम्मेदार बाबा भोले पर एक केस भी दर्ज नहीं कर पाई है. केस दर्ज हुआ है, लेकिन बाबा पर नहीं, सत्संग के आयोजकों पर. लेकिन गिरफ्तारी किसी की नहीं. सब के सब फरार हैं. बाबा भी फरार है. और फरार हैं बुलडोजर के वो ड्राइवर, जो इतनी बड़ी घटना के बावजूद अभी तक किसी भी आरोपी के घर का छज्जा तक नहीं तोड़ पाए हैं.
 
एक या दो नहीं बल्कि 121 लोगों की मौत हुई है. 100 से ज्यादा घायल हैं. आप तकनीकी भाषा में इसे भगदड़ कहते रहिए, लेकिन परिस्थितियां बता रहीं हैं कि ये हादसा नहीं हत्या है. हादसा तब होता है, जब व्यवस्थाएं चाक-चौबंद होती हैं. सबकुछ अपनी जगह पर होता है. लेकिन इतने बड़े आयोजन में कुछ भी जगह पर नहीं था. न तो पर्याप्त इंतजाम थे न पर्याप्त पुलिस. 80 हजार लोगों की परमिशन थी, पहुंच गए ढाई लाख लोग. आते हुए लोगों को न प्रशासन ने रोका न बाबा के लोगों ने. न एबुंलेस, न फायर ब्रिगेड, न पुलिस के जवान, न आने-जाने के इंतजाम. नतीजा भगदड़. और इतनी बड़ी भगदड़ की लोग एक दूसरे पर गिरते गए, लाशें बिछती गईं और पुलिस-प्रशासन मूक दर्शक बना रहा.

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क्या इसे हत्या नहीं कहेंगे?
तो क्या इसे हत्या नहीं कहेंगे. मत कहिए. लेकिन मौतें तो हुई हैं. और वो भी 121 मौतें. तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. क्या इन मौतों का जिम्मेदार वो सूरजपाल जाटव नहीं है, जिसने खुद को बाबा घोषित कर रखा है. लेकिन पुलिस-प्रशासन की नज़र में वो जिम्मेदार है ही नहीं. क्योंकि अगर वो जिम्मेदार होता, तो एफआईआर में उसका नाम भी होता. लेकिन नहीं. वो तो मुकदमे में कहीं है ही नहीं. तो फिर वो फरार क्यों है. आखिर क्यों नहीं वो पुलिस के सामने आ रहा है, पूरी बात बता रहा है, जिम्मेदारों के नाम ले रहा है. लेकिन नहीं, वो फरार है.

बाकी एफआईआर में जिसका नाम है, वो है मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर, जो न्यू कॉलोनी, दमदमपुरा कस्बा, सिकंदराराऊ हाथरस का ही रहने वाला है. बाकी के जिम्मेदारों के नाम पुलिस खोज ही नहीं पाई है और सब के सब अज्ञात में हैं. जबकि इस कार्यक्रम के लिए बाबा की तरफ से जो पोस्टर जारी किया गया था, उसी में साफ-साफ लिखा है कि इस कार्यक्रम के आयोजनकर्ताओं में महेश चंद्र, अनार सिंह, संजू यादव, चंद्रदेव औऱ रामप्रकाश हैं. ये पोस्टर पूरे हाथरस और उसके आस-पास के इलाके में लगे थे, लेकिन शायद पुलिस की अब तक उस पोस्टर पर नज़र ही नहीं गई हैं, जिसमें इतने आयोजकों के नाम हैं. इस कार्यक्रम के लिए एक कमिटी बनी थी. कमेटी में कुल 17 लोग थे. किसी के जिम्मे पार्किंग की व्यवस्था थी, तो किसी के जिम्मे पंडाल की. कोई मंच की लाइट लगवाने के लिए जिम्मेदार था तो कोई मीडिया कोऑर्डिनेशन के लिए. किसी को रंगोली बनवानी थी, तो किसी को प्रसाद के पैकेट बांटने थे. रसोई से लेकर मीडिया तक को मैनेज करने के लिए लोगों की जिम्मेदारी तय की गई थी. ब्लैक कमांडो की सेवा थी, गोपिकाओं की सेवा थी. लेकिन ये सेवा और सेवादार बाबा तक ही सीमित रह गए. जब इतना बड़ा हादसा हो गया, तब ये सब तो फरार हुए ही हुए, पुलिस ने भी इन फरारों के खिलाफ केस दर्ज करने की जहमत नहीं उठाई. हां, बातें सबने की कि जो जिम्मेदार हैं, बख्शे नहीं जाएंगे, सबके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी, वगैरह-वगैरह-वगैरह.

BNS की कौन सी धाराएं लगी हैं?
जो केस दर्ज हुआ है, वो भारत में लागू हुए नए कानून यानी कि भारतीय न्याय संहिता के तहत दर्ज हुआ है. इसमें बीएनएस की धारा 105 यानी कि गैरइरादन हत्या, बीएनएस 110 यानी कि ऐसी परिस्थितियां बनाना जिससे किसी की मौत हो जाए, बीएनएस 126 (2) यानी कि लोगों को रुकने पर मजबूर करना, बीएनएस 223 यानी कि सरकारी आदेशों की अवहेलना करना और बीएनएस 238 यानी कि सबूत मिटाना और गलत जानकारी देने की धाराएं लगी हैं. एफआईआर ही कह रही है कि भगदड़ होने की स्थिति में आयोजनकर्ताओं और सेवादारों ने कोई मदद नहीं की और सब के सब भाग गए. जो लोग भीड़ में दबे उनके सामान, फोन, जूते-चप्पलों को कार्यक्रम के आयोजकों और सेवादारों ने खेतों में फेंक दिया ताकि जांच होने पर मरने वालों, घायलों और भीड़ में खोए लोगों का सही-सही आंकड़ा सामने न आ पाए.

एसडीएम, जिन्होंने इस कार्यक्रम में 80 हजार लोगों के शामिल होने की इजाजत दी थी, उन्होंने डीएम को भेजी अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि कार्यक्रम के आयोजकों और बाबा के सेवादारों ने ही भीड़ से धक्का-मुक्की की, जिसमें लोग गिर गए और फिर लोग गिरते चले गए, मरते चले गए. तो फिर बाबा के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं है. क्या सरकार अपने ही दो अधिकारियों की बात को अनसुनी कर रही है, जिसमें एफआईआर लिखवाने वाले पुलिस विभाग के ही सब इंस्पेक्टर हैं, जो हाथरस के ही सिकंदराराऊ थाने की पोरा चौकी के प्रभारी बृजेश पांडेय हैं और दूसरे खुद हाथरस के एसडीएम हैं.

एटा में बुलडोजर ने किया था ब्रेक डांस!
ऐसे में जिस एटा में लोकसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में बुलडोजरों ने ब्रेक डांस किया था, उसी एटा के रहने वाले सूरजपाल जाटव की वजह से अब तक 121 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन बुडोजर खामोश खड़े हैं. वो न तो बाबा के किसी आश्रम को तोड़ने के लिए निकले हैं, जो फरार है और न ही किसी सेवादार और आयोजक के घर की तरफ जा रहे हैं, जो मोबाइल बंद कर गायब हो चुके हैं. सवाल है क्यों...और शायद इसका जवाब अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही दे पाएंगे.

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