मेरठ: मेरठ के सिसौली निवासी अनिल तोमर 25 दिसंबर 2020 को कश्मीर के शोपियां जिले के एक गांव में आतंकियों से लोहा लेते हुए मुठभेड़ में घायल हो गए थे. इलाज के दौरान 28 दिसंबर को अनिल शहीद हो गए. अनिल तोमर भारतीय थल सेना की 44 वीं आरआर बटालियन में घातक प्लाटून में हवलदार के रूप में तैनात थे. शोपियां के एक गांव में कुछ आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर हवलदार अनिल तोमर अपने जवानों के साथ आतंकियों को तलाशने के लिए सर्च ऑपरेशन में जुटे थे. इसी दौरान अनिल तोमर की मुठभेड़ आतंकियों से हो गई, जिसमें अनिल आतंकियों की गोली से घायल हो गए.
दो आतंकियों को किया था ढेर
जिस वक्त मुठभेड़ चल रही थी, उस समय अनिल तोमर व उनके एक साथी आतंकियों के सामने डटे हुए थे लेकिन मुठभेड़ में अनिल तोमर व उनके साथी दोनों गोली लगने से घायल हो गए थे, लेकिन अनिल तोमर ने अपने साथी को वहां से इलाज के लिए भिजवाया और खुद घायल होने के बाद भी आतंकियों का सामना बहादुरी से करते रहे. वहां छिपे दोनों आतंकियों को ढेर करने के बाद ही अनिल ने अपने घायल होने की सूचना अपनी बटालियन को दी. जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए ले जाया गया लेकिन 28 दिसंबर को उपचार के दौरान अनिल तोमर वीरगति को प्राप्त हुए.
घातक प्लाटून के हवलदार
अनिल तोमर को घातक प्लाटून का हवलदार बनाया गया था जिसके चलते उन्हें घातक हवलदार अनिल तोमर के नाम से जाना जाता था. अनिल तोमर अपनी फुर्ती और जांबाजी के चलते देश के दुश्मनों के लिए घातक ही साबित होते थे. अनिल के पिता भोपाल सिंह ने बताया कि शुरू में उनको आर्मी हेड क्वार्टर से अनिल के घायल होने की सूचना मिली और कहा कि जल्द ही वह ठीक हो जाएंगे लेकिन उसके बाद उनके छोटे बेटे सुनील तोमर जो खुद भी आर्मी में ही तैनात हैं, उन्होंने अनिल के बारे में पता किया तो उन्हें 28 तारीख को अनिल तोमर के शहीद होने की सूचना मिली. उनके पिता भोपाल सिंह का कहना है कि, उन्हें अपने बेटे की शहादत पर गर्व है. उनका बेटा बहुत ही बहादुर था घायल हो जाने के बाद भी दो आतंकियों को मार कर उसने वीरगति पाई है.
ज्यादातर एनकाउंटर में शामिल रहता था
वहीं, अनिल तोमर के छोटे भाई सुनील तोमर ने बताया कि, अनिल कश्मीर में होने वाले अधिकतर एनकाउंटर में शामिल रहता था. क्योंकि वह घातक प्लाटून में हवलदार था और घातक प्लाटून को ही आतंकियों से मुठभेड़ के समय तैनात किया जाता है. सुनील ने बताया कि, अनिल आतंकियों के साथ लगभग 50 से अधिक मुठभेड़ में शामिल रह चुका था. अनिल तोमर की बहादुरी और साहस के चलते ही उनको घातक प्लाटून में घातक हवलदार के रूप में तैनात किया गया था. सुनील के अनुसार उनका भाई अनिल बहुत ही बहादुर था उनके ऊपर उनके परिवार को ही नहीं पूरे मेरठ व पूरे देश को गर्व है.
वहीं, जब हमने अनिल की पत्नी व बच्चों से बात करनी चाहिए तो अपने पिता को याद करके और कुछ कह भी नहीं पाए. शहीद अनिल की 15 वर्षीय बेटी तान्या दसवीं क्लास में है और 9 वर्षीय बेटा लक्ष्य पांचवीं क्लास की पढ़ाई कर रहा है. जनपद मेरठ का गांव सिसौली आजादी से पहले से ही अपनी शहादत के लिए जाना जाता है. इसी के चलते यहां पर एक शहीद स्मारक भी स्थापित है गांव के अधिकतर युवा सेना में ही तैनात हैं.
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