प्रयागराज, एबीपी गंगा। यूपी में विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकारी और निजी संपत्ति को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए लाया गया योगी सरकार का महत्वाकांक्षी अध्यादेश क़ानून दांव पेंच में फंस सकता है। इस अध्यादेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। हाईकोर्ट के वकील शशांक श्री त्रिपाठी ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए इसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की है। पीआईएल में अध्यादेश को रद्द किये जाने और अंतिम निर्णय आने तक इसके अमल पर रोक लगाए जाने की मांग की गई है। हाईकोर्ट में इस पीआईएल पर आज सुनवाई होगी।


सुनवाई चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच में सुबह करीब ग्यारह बजे होने की उम्मीद है। वकील शशांक श्री त्रिपाठी की अर्जी में कहा गया है कि यूपी सरकार का यह अध्यादेश संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है। उनके मुताबिक़ यूपी सरकार को इस तरह के अध्यादेश लाने का कोई संवैधानिक अधिकार ही नहीं है। सविधान के अनुच्छेद 323 बी के अधिकारों के तहत जिन आठ बिंदुओं पर अध्यादेश लाया जा सकता है, उनमे यह विषय शामिल नहीं है। इसके अलावा क्रिमिनल मामलों पर अध्यादेश लाने का नियम ही नहीं है।


सरकार ने क्रिमिनल मामले पर आर्डिनेंस बनाया, लेकिन गुमराह करने के लिए इसे सिविल नेचर का बताया है। गौरतलब है कि यूपी सरकार ने लखनऊ में हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगवाए थे। इस पोस्टर पर हाईकोर्ट ने सुओ मोटो लेते हुए सुनवाई की थी और सरकार को इसे हटाने का आदेश दिया था। यूपी सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने के बजाय फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट से सरकार को कोई फौरी राहत नहीं मिली और मामला बड़ी बेंच को रेफर हो गया। सरकार पोस्टर हटाने से बचने के लिए उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम -2020 ले आई। इस अध्यादेश को राज्यपाल की भी मंजूरी मिल चुकी है।