Lucknow News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ पीठ (Lucknow Bench) ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले महीने रामनवमी (Ramnavami) के दौरान मंदिरों या मेलों के स्थल पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में कलाकारों को मानदेय देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा है कि यह किसी भी धर्म या संप्रदाय के प्रचार के लिए खर्च करने की श्रेणी में नहीं आता.
न्यायमूर्ति डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति ओ. पी. शुक्ला की पीठ ने 10 मार्च के राज्य सरकार के उस फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसके तहत उसने रामनवमी के अवसर पर प्रत्येक जिले को कार्यक्रम आयोजित कराने के लिए एक-एक लाख रुपये आवंटित किए थे. पीठ ने माना कि राज्य सरकार का यह फैसला किसी भी धर्म या धार्मिक संप्रदाय के प्रचार के लिए नहीं है, दरअसल यह राज्य सरकार की एक साधारण धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है.
कोर्ट ने खारिज की याचिका
पीठ ने यह आदेश पिछली 22 मार्च को मोतीलाल यादव द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए पारित किया. फैसले की प्रति को उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर मंगलवार को अपलोड किया गया. पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा, ‘‘यदि राज्य नागरिकों से एकत्र किए गए कर में से कुछ पैसा खर्च करता है और कुछ राशि किसी धार्मिक संप्रदाय को सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्रदान करता है, तो इसे संविधान के अनुच्छेद 27 का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.’’
धर्म निरपेक्ष और धार्मिक गतिविधि में अंतर
अदालत ने कहा, ‘‘हमें हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि धर्मनिरपेक्ष गतिविधि और धार्मिक गतिविधि के बीच अंतर की एक स्पष्ट रेखा मौजूद है.’’ अदालत ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के आदेश को गलत तरीके से समझा था. दरअसल सरकार ने राम नवमी कार्यक्रम के दौरान अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों के लिए धनराशि की व्यवस्था की थी, ना कि मंदिर से जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए.’’
राज्य सरकार ने 10 मार्च को एक आदेश पारित कर नवरात्रि और रामनवमी के दौरान प्रदेश के सभी जिलों में आयोजित कार्यक्रमों में बुलाए जाने वाले कलाकारों को भुगतान के लिए एक-एक लाख रुपए की धनराशि आवंटित करने को कहा था.
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