प्रयागराज: भारतीय जनता पार्टी के चुनाव निशान के तौर पर राष्ट्रीय पुष्प कमल का इस्तेमाल किये जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग से जवाब तलब कर लिया है. निर्वाचन आयोग को इस मामले में एक महीने में अपना जवाब दाखिल करना होगा. अदालत इस मामले में बारह जनवरी को फिर से सुनवाई करेगा.
चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने यह आदेश गोरखपुर के चौरी चौरा इलाके के एसपी नेता काली शंकर के दाखिल की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है. जनहित याचिका में बीजेपी के चुनाव निशान कमल के फूल को जब्त किये जाने के साथ ही राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित किये जाने पर भी सवाल उठाया गया है. कहा गया है कि पार्टियां अपने चुनाव निशान का प्रचार पूरे पांच साल करती हैं, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों को उनका नामांकन वैध पाए जाने के बाद सिम्बल मिलता है. अर्जी में कहा गया है कि यह लोकतंत्र में उम्मीदवारों के बीच भेदभाव करने वाला है.
चिन्ह का दुरूपयोग करने पर रोक लगायी जाये
याचिका कहना है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 व चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के अंतर्गत चुनाव आयोग को चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह आवंटित करने का अधिकार है. चुनाव आयोग को मॉडल कोड आफ कंडक्ट का उल्लंघन करने पर दल की मान्यता वापस लेने का अधिकार है. बीजेपी का चुनाव चिन्ह कमल राष्ट्रीय चिन्ह भी है. इसलिए उसे जब्त करने व दुरूपयोग करने पर रोक लगायी जाये. कोर्ट ने याची को अन्य किसी राजनीतिक दल को भी पक्षकार बनाने की छूट दी है. कोर्ट ने कहा कि याचिका में यह मुद्दा नही उठाया गया है कि चुनाव चिन्ह, केवल चुनाव के लिए आवंटित किया जाता है अन्य कार्य के लिए नहीं तो चुनाव चिन्ह का अन्य उद्देश्य से इस्तेमाल करने की अनुमति क्यो दी जा रही है?
निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ अन्याय
याची अधिवक्ता ने कहा कि चुनाव चिन्ह का आवंटन चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को किया जाता है. पार्टी विशेष का चुनाव चिन्ह लेने का प्रत्याशी को अधिकार है. किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह पार्टी लोगों के रूप मे इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है. चुनाव चिन्ह चुनाव तक ही सीमित है. पार्टी को अपना चुनाव चिन्ह किसी निर्दलीय प्रत्याशी को देने का अधिकार नहीं है. यदि राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह का दूसरे कार्यो के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई तो यह निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ अन्याय व विभेदकारी होगा.क्योंकि उन्हें अपना प्रचार करने के लिए कोई निशान नहीं मिला होता है.राजनीतिक दल हमेशा प्रचार करते है और निर्दलीय प्रत्याशी को यह छूट नहीं होती है.क्योंकि चुनाव चिन्ह केवल चुनाव लड़ने के लिए ही दिया जाता है.
कोर्ट ने कहा कि साक्षर कई देशों मे चुनाव चिन्ह नहीं है किन्तु भारत मे चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ा जा रहा है. सरकार की चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ने की व्यवस्था वापस लेने की मंशा भी नहीं है. निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता ने इन विन्दुओं पर विचार के लिए समय मांगा. जिस पर कोर्ट ने जवाब दाखिल करने का समय दिया है.
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