प्रयागराज: कोरोना के बढ़ते मामलों के बाद उत्तर प्रदेश में एक बार फ़िर कम्प्लीट लॉकडाउन लग सकता है. ये लॉकडाउन कम से कम दस दिनों का होगा. सूबे में कोरोना के बढ़ते मामलों और इससे होने वाली मौतों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गहरी चिंता और अपनी नाराजगी जताते हुए योगी सरकार को कम्प्लीट लॉकडाउन लागू करने का सुझाव दिया है.
सख्ती दिखाने में सरकारी अमला फेल- हाई कोर्ट
हाईकोर्ट ने साफ़ तौर पर कहा है कि सरकारी अमला सड़कों पर लोगों को बेवजह निकलने, बाज़ारों में भीड़ इकट्ठा होने और सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन करा सकने में नाकाम साबित हुआ है. यही वजह है कि तमाम शहरों में कोरोना के केस काफी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का कहना है कि कम्प्लीट लॉकडाउन और उस पर सख्ती से अमल कराए बिना कोरोना के संक्रमण को काबू में नहीं किया जा सकता.
ब्रेड बटर खरीदने से ज्यादा जान जरूरी- हाई कोर्ट
कोर्ट का मानना है कि अनलॉक में न तो सरकारी अमला लोगों को बेवजह बाहर निकलने से रोक पाया और न ही लोगों ने गाइडलाइन का पालन करने में अपनी दिलचस्पी दिखाई. कोर्ट के फैसले के मुताबिक़, लॉकडाउन के अलावा कोई भी दूसरा तरीका कोरोना के संक्रमण को काबू में करने में कारगर नहीं साबित होगा. हाईकोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा है कि ब्रेड बटर खरीदने के लिए घर से बाहर निकलने से ज़्यादा ज़रूरी जीवन बचाना है. लोगों को समझना होगा कि उन्हें इनमें से क्या चुनना है.
ज़िम्मेदार से काम करने वाले लोगों पर कार्रवाई हुई या नहीं? - हाई कोर्ट
कोर्ट ने संक्रमण के बढ़ते मामलों के लिए सीधे तौर पर सरकारी अमले को ज़िम्मेदार माना है. फैसले में कहा गया है कि सरकार की तरफ से कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनलॉक की शुरुआत की गई, लेकिन यह साफ़ नहीं किया गया कि इस अनलॉक में अर्थव्यवस्था के साथ ही लोगों को कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए भी कोई रोडमैप या एक्शन प्लान था या नहीं. अगर था तो उसका सख्ती से पालन क्यों नहीं कराया गया. कोर्ट ने इस मामले में सख्त रवैया अपनाते हुए यूपी के चीफ सेक्रेट्री से पूछा है कि जिन ज़िम्मेदार लोगों ने इसका सख्ती से पालन नहीं कराया, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है. कोर्ट के इस रुख से कई बड़े अफसरों पर गाज गिरने की आशंका हो गई है.
कोर्ट ने चीफ सेक्रेट्री को 28 अगस्त को कोर्ट में हलफनामा पेश कर लाकडाउन समेत सभी बिंदुओं पर जवाब दाखिल करने को कहा है. चीफ सेक्रेट्री को यह भी बताना होगा कि लोगों को कोरोना से बचाने, बेहतर इलाज व देखरेख मुहैया कराने और मौत की दर को कम करने के लिए सरकार की तरफ से क्या एहतियाती कदम उठाए जा रहे हैं. चीफ सेक्रेट्री को नये सिरे से तैयार रोडमैप और एक्शन प्लान भी कोर्ट के सामने अपने हलफनामे के ज़रिये पेश करना होगा. जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस अजीत कुमार की डिवीजन बेंच ने यह आदेश क्वारंटीन सेंटर और अस्पतालों की हालत में सुधार के लिए दाखिल हुई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया है.
कोर्ट ने इन सात शहरों के लिए जाहिर की सबसे ज़्यादा नाराज़गी
कोर्ट ने सबसे ज़्यादा नाराज़गी यूपी के सात बड़े शहरों लखनऊ, कानपुर नगर, प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर, बरेली व झांसी में संक्रमण के बढे हुए मामलों पर जताई है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि लाकडाउन के ज़रिये लोगों को घरों में ही रहने को मजबूर करना बेहद ज़रूरी हो गया है. कोर्ट ने प्रयागराज के एसआरएन हॉस्पिटल में सीनियर डॉक्टर्स की कमी और वहां कोरोना मरीजों की मौत की बढ़ती संख्या पर भी ज़िम्मेदार लोगों को फटकार लगाई है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी सरकार का पक्ष एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की तरफ से एसपीएस चौहान, प्रियंका मिड्ढा, राम कौशिक और कोर्ट कमिश्नर चंदन शर्मा ने तमाम तथ्य कोर्ट को बताए. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर सरकार ने कम्प्लीट लाकडाउन का कोई फैसला नहीं किया तो अगली सुनवाई पर कोर्ट को अपनी तरफ से आदेश जारी करना पड़ सकता है.
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