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Rudraprayag: ग्लोबल वार्मिंग का असर! हिमालयी क्षेत्रों में टाइम से पहले ही खिल रहे बुरांश, पिका जानवर के अस्तित्व पर खतरा

Uttarakhand News: ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के सतही तापमान में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, जिससे धरातल की जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. यही वजह है कि बुरांश के फूल समय से पहले खिल रहे हैं.

Rudraprayag News: जिस फूल को हम मार्च से मई महीने के बीच खिलते हुए देखते हैं, वह फूल इन दिनों दिखने लगे तो कैसा लगेगा. यह कोई शुभ समाचार नहीं है, बल्कि चिंता का विषय है और इसका कारण हिमालय (Himalayan) में बढ़ती गतिविधियों को माना जा रहा है. इसे ग्लोबल वार्मिंग का बुरा असर माना जा रहा है, जिससे समय से पहले ही हर चीज होने लगी है. यह भविष्य के लिए काफी घातक सिद्ध होने वाला है. ऐसे में पर्यावरणविद से लेकर पर्यावरण वैज्ञानिक भी अब चिंता में दिखाई दे रहे हैं. 

बता दें कि कुछ सालों से मौसम में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है. समय से बारिश नहीं हो रही है तो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी भी कम ही देखने को मिल रही है. ऐसे में प्रकृति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ने लगा है. मिनी स्विटजरलैंड चोपता के जंगलों में बुरांश के फूल समय से पहले दिखने लगे हैं. बुरांश के खिलने का समय मार्च से मई माह के बीच होता है, लेकिन मौसम परिवर्तन के कारण और हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रही मानव गतिविधियों के चलते इसका असर बुरांश पर पड़ा है. 

समय से पहले बुरांश के फूलों के खिलने से जहां स्थानीय लोग अचंभित हैं, वहीं पर्यावरणविद और पर्यावरण वैज्ञानिक भी चिंतित नजर आ रहे हैं. समय से पहले खिल रहे बुरांश के फूलों की लालिमा पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है, लेकिन यह भविष्य के लिए भी किसी अशुभ संकेत से कम नहीं है. 

ग्लोबल वार्मिंग डाल रहा बुरा असर
दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी के सतही तापमान में निरंतर बढ़ोतरी हो रही है, जिससे धरातल की जलवायु पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है. पृथ्वी के वातावरण पर ग्लोबल वार्मिंग ने बुरा असर डाला है. ग्लोबल वार्मिंग, जिसकी उत्पत्ति कार्बन और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के कारण होती है, इसने पृथ्वी पर अप्रत्यक्ष रूप से नकारात्मक प्रभाव डाला है, जिसमें समुद्र-तल के स्तर में बढ़ोतरी होना, वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी तथा अलग-अलग क्षेत्रों के मौसम में भयंकर बदलाव की स्थिति का पैदा होना शामिल है.

पर्यावरणविद देव राघवेन्द्र बद्री ने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण औषधियां पायी जाती है, जिनमें बुरांश भी एक हिमालय का महत्वपूर्ण वृक्ष है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम परिवर्तन हो रहा है. बारिश समय से नहीं हो रही है. फूल पहले ही खिलने शुरू हो गए है. ये फूल अविकसित तरीके से खिल रहे हैं. फूल तो खिलेगा, लेकिन इसमें रस नहीं रहेगा. जिस कारण मधुमक्खियों को शहद बनाने में दिक्कतें होंगी. मौसम बदलने से वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ रहा है.

पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर राकेश कुमार मैखुरी ने कहा कि पहले ही वैज्ञानिक बता चुके हैं कि 2080 तक 3.5 से लेकर 3.8 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढ़ सकता है. पिछले दो-तीन सालों में मौसम में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जिस कारण एडवांस में फूल खिल रहे हैं. ढाई महीने पहले ही बुरांश का फूल खिल चुका हैं. इसके अलावा अन्य मेडिसिनल प्लांट भी हैं, जो समय से पहले खिल रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुछ सालों से बर्फबारी में भी कमी देखने को मिली है.

हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश के पेड़ों पर तो खतरा मंडरा ही रहा है, साथ ही करीब चार हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित चोपता में हिमालय की इन कंदराओं में पाया जाने वाला स्तनपाई जानवर जिसे हिमालयी पिका कहा जाता है, इसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है. इनका जीवन काफी जटिल होता है. हिमालयी पिका मुख्य रूप से चट्टान की दिवारों, पेड़ों के कोटर या रास्तों की दिवारों में बनी दरारों में रहता है. वे अपने करीबी चचेरे भाई खरगोश के समान दिखते हैं, लेकिन इनके कान छोटे होते हैं. ज्यादातर ये पहाड़ी ढलानों पर रहना पसंद करते हैं.

उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय के तुंगनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के अल्पाइन और उप अल्पाइन क्षेत्रों में पाया जाता है. इसका भोजन जड़ी-बूटियां और घास की सैकड़ों प्रजातियां हैं, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ रही मानवीय गतिविधियों ने इसका मुंह का स्वाद ही बदलकर रख दिया है. चोपता तुंगनाथ घूमने आने वाले पर्यटक जगह-जगह चिप्स और खाने का अन्य सामान छोड़ देते हैं, जिससे इन चीजों को खाने से इनके व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है.

बुग्यालों में बनाये रखने में इस जैवविविधता को महत्वपूर्ण जानवर की भी बहुत भूमिका है. यहां के इको सिस्टम का यह अभिन्न अंग है. एक तरफ यह जहां खूब सारी जड़ी बूटियों को अपने भोजन के लिए उपयोग करता है, जिससे विभिन्न पौधों की कटाई-छंटाई होती रहती है. वहीं इनके मल से उच्च हिमालयी पौधों के लिए खाद का काम करता है. पर्यावरणविद भी इनका होना काफी महत्वपूर्ण मानते हैं.

पर्यावरणविद देवराघवेन्द्र बद्री बतातें हैं कि हिमालय में पाया जाने वाले यह बिना पूंछ का चूहा काफी महत्वपूर्ण है. यह मेडिसिनल प्लांट को जीवित रखता है. हिमालय क्षेत्रों में बढ़ रही पर्यटकों की आमद से इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. पर्यटक इन स्थानों पर प्लास्टिक कचरा छोड़ देते हैं. इन चीजों को खाने से इनके व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है. इनकी प्रजाति भी कम होने लगी है. अब स्थिति यह बन गई है कि जिस समय पर्यटक व यात्री ज्यादा संख्या में आ रहे हैं तो इनकी एक्टिविटी भी कम हो रही है. हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों के बढ़ने से जहां मेडिसिनल पौधों को खतरा पैदा होने लगा है, वहीं बुग्यालों में जैवविविधता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण हिमालयी पिका के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है.ऐसे में समय रहते केन्द्र व राज्य सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

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