बडकोट (उत्तरकाशी): लॉक डाउन से कोविड कर्फ्यू तक के सफर में रोज कमाने खाने वालों का रोजगार काफी प्रभावित हुआ है. राज्य से बाहर रहने वाले युवक भी बेरोजगार होकर अपने गांव में लौटे हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे युवा की कहानी बताते हैं, जो बेरोजगार होने के बाद न केवल अपने लिए रोजगार का जरिया ढूंढा बल्कि अपने साथ के अन्य युवकों को आत्मनिर्भर रहने की उम्मीद जगाई है.
खुद बने आत्मनिर्भर लोगों को दिया रोजगार
कहते हैं कि, अगर हौसले बुलंद हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं होती. ऐसा ही कुछ किया है तहसील बडकोट के पौंटी गांव के रहने वाले 28 वर्षीय हीरा लाल ने. घर में परिवार के सदस्यों की दिनचर्या और आर्थिक तंत्र का जरिया हीरा लाल हैं. जो पिछले साल तक दिल्ली की किसी निजी कम्पनी में काम कर घर के खर्चों का गुजारा किया करता था. लेकिन कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन में रोजगार छूट गया और हीरा गांव में आकर बेरोजगार हो गया. जिससे आर्थिक तंगी हीरा के सामने खड़ी हो गयी. लेकिन हीरा ने हार न मानी और उद्यान विभाग के सहयोग से मशरूम उत्पादन की ठान ली. उद्यान विभाग अधिकारी बताते हैं कि, जिले में बाहरी राज्यों से आये 120 युवाओं को रोजगार का जरिया मशरूम के उत्पादन में सहयोग किया जा रहा है, जो वर्तमान में प्रत्यक्ष रोजगार के रूप में काफी लाभ भी दे रहा है.
हीरा बताते हैं कि, उद्यान विभाग से उन्हें मशरूम के उत्पादन में बारीकी से बताया गया, जिसे उन्होंने अपनाया और आज वो रोजाना मशरूम के उत्पादन से 2000 रूपये तक कमा भी रहे हैं. कम समय में अच्छे उत्पादन से वर्तमान में हीरा ने दो जगहों में उत्पादन शुरू कर दिया है, जिसे प्रवासियों को स्वरोजगार का अच्छा जरिया मानकर आत्मनिर्भर रहने को अन्य युवाओं को प्रेरित भी कर रहे हैं.
आसानी से उगाया जा सकता है मशरूम
गांव की महिलाओं की माने तो मशरूम का उत्पादन उनके लिए आर्थिक हालात सुधारने का सबसे बढिया जरिया है. खेती में बेमौसम नुकसान और जंगली जानवरों ने फसलों को नष्ट कर दिया, जबकि मशरूम किसी भी घर के अंदर आसानी से उगाया जा सकता है, जो उनके लिए आत्मनिर्भर रहने की उम्मीद भी दे रहा है.
कम मेहनत में अच्छा लाभ
प्रशिक्षक ने बताया कि, अब आपको यह बताना भी जरूरी है कि कौन सी मशरूम सबसे अच्छा लाभ कम मेहनत में देती है. तो उद्यान अधिकारी की माने तो बटन मशरूम सबसे बढिया उत्पादन और लाभ देने वाली मशरूम की प्रजाति है. जिसे दो स्टेज में 20 से 25 डिग्री सेंटीगेट तापमान में रखा जाता है. जबकि आद्रता 85 चाहिए होती है. जबकि दूसरी स्टेज में 15 से 18 डिग्री सेंटीगेट तापमान में रखा जाता है, जो 15 से 30 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है. इसमे केवल भूसा, पानी, मिट्ठी और खाद की आवश्यकता होती है.
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