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History of Kanpur: जानिए पूरब का मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर का इतिहास, 1857 की क्रांति का गवाह है यह नगर

History of Kanpur: उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक टैक्स चुकाने वाला जिला कानपुर है. राजाओं से लेकर अंग्रेजों तक कानपुर ने कई बदलाव देखें हैं. इसे पूरब का मैनचेस्टर भी कहा जाता था.

उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नगरी कानपुर नगर ने राजा- महराजाओं से लेकर अंग्रेजों तक के शासन तक कई बार उतार-चढ़ाव देखा है. इसे पूरब का मैनचेस्टर भी कहा जाता है. इस शहर की स्थापना सचेंदी राज्य के राजा हिंदू सिंह ने की थी. कानपुर का मूल नाम कान्हपुर था. अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम चरण के दौरान यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवां, जूही और सीसामऊ गांवों के मिलने से बना था.

साल 1776 की संधि के बाद इस नगर पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया जिसके बाद अंग्रेजों ने इसे छावनी में तब्दील कर दिया. अंग्रेजों ने यहां नए उद्योग-धंधों की स्थापना की. ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां नील का व्यवसाय शुरू किया. साल 1832 में ग्रांड ट्रंक सड़क बनने के बाद यह नगर प्रयागराज शहर से जुड़ा. साल 1864 में लखनऊ और कालपी को कानपुर के मुख्य रास्तों से जोड़ा गया. 

ब्रह्मा ने यहीं पर की थी सृष्टि की रचना

कानपुर से तकरीबन 22 किलोमीटर दूर धार्मिक स्थान बिठूर है. यह गंगा किनारे बसा हुआ है. हिंदू शास्त्रों के मुताबिक भगवान ब्रह्मा ने यहीं पर ब्रह्माण्ड की रचना की थी. त्रेतायुग में माता सीता ने बिठूर में ही लव-कुश को जन्म दिया था और यही पर महर्षि बाल्मीकि से मिली थीं. ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी का केंद्र बिंदू बिठूर है. ध्रुव ने यही पर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था.  

वक्त के साथ बदलता गया कानपुर का नाम

अब तक कानपुर का नाम तकरीबन 21 बार बदला जा चुका है.

  • साल 1790 फोर्ट विलियम पत्राचार के अनुसार KAWNPORE
  • साल 1788 थामस टिर्वंनग के अनुसार CAWNPORE
  • साल 1765 फोर्ट विलियम पत्राचार के अनुसार CAWNPOR
  • साल 1798 फोर्ट विलियम पत्राचार के अनुसार CAWNPOR
  • साल 1798 नक्शा एवं फोर्ट विलियम पत्राचार के अनुसार KAUNPOOR
  • साल 1798 श्रीमती डियेन (सैनिक अधिकारी की पत्नी) के अनुसार KHANPORE
  • साल 1798 वाटर हैमिल्टन, ईस्ट इंडिया कंपनी का गजेटियर के अनुसार KHANPURA
  • साल 1798 फारेस्टर (एक अंग्रेज यात्री) के अनुसार KHANPORE
  • साल 1815 ईस्ट इंडिया कंपनी गजेटियर के अनुसार CAUNPOOR
  • साल 1825 भारत के नक्शे के अनुसार KHANPOOR
  • साल 1857 नानकचंद की डायरी, मांटगोमरी मिलेसन के अनुसार KANHPUR
  • साल 1881 में प्रकाशित गजेटियर आफ इंडिया के अनुसार CAWNPOUR
  • साल 1879 मारिया मिलमेन ऑफ इंडिया के अनुसार CAAWNPORE
  • साल 1879 इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अमेरिका के अनुसार CAWNPOR
  • साल 1879 इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अमेरिका के अनुसार COWNPOUR
  • और अंत में साल 1948 में KANPUR हो गया.

अंग्रेजों के नाम पर पड़े हैं कानपुर के मोहल्लों का नाम

कानपुर नगर ने साल 1857 की क्रांति से लेकर आजादी तक कई उतार-चढ़ाव का सामना का सामना किया है. शहर के कई मोहल्लों का नाम अंग्रेजों के नाम पर पड़ा हुआ है. कानपुर का कर्लनगंज का नाम जेमेस शेफर्ड के नाम पर पड़ा था. परेड में अंग्रेजों की परेड होती थी जिसके बाद इस जगह को परेड कहा जाने लगा. कानपुर के मरे कंपनी का नाम कर्नल मुरे के नाम पर रखा गया है. कूपरगंज का नाम चीफ कमिश्नर ऑफ अवध लेफ्टिनेंट ई डब्ल्यू कूपर के नाम पर रखा गया था. शहर के व्यस्त बाजारों में से एक मूलगंज का वाम साल 1886 से 1890 तक शहर के कलेक्टर रहे एफडी मोल के नाम पर रखा गया. बेकनगंज का नाम कानपुर के जज रहे डब्ल्यू बेकन के नाम पर पड़ा. फेथफुलगंज का नाम कमिश्नर आरसी फेथफुल के नाम पर रखा गया.

जाजमऊ संधि

ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर में पहली छावनी साल 1758 में स्थापित किया था. इतिहासकारों के मुताबिक साल 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी बंगाल में पूर्ण रूप से स्थापित हो गई. 1764 में बक्सर में अंग्रेजों और मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में शाल आलम की मदद करने के लिए बंगाल के नवाब मीर कासिम और अवध के नवाब सुजाउद्दौला भी शामिल हुए लेकिन अंत में अंग्रेजों की जीत हुए. जिसके बाद सजाउद्दौला मदद मांगने फर्रूखाबाद जा रहे थे.

उनका पीछा करते हुए अंग्रेज कानपुर के जाजमऊ तक पहुंच गए. जिसके बाद सुजाउद्दौला को जान बचाने के लिए अंग्रेजों के साथ संधि करनी पड़ी.

1857 की क्रांति में कानपुर का अहम योगदान

साल 1857 में स्वतंत्रता की ज्वाला भड़क चुकी थी. रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, नाना साहब, गणेश शंकर विद्यार्थी, मंगल पांडे इस लड़ाई के पद प्रदर्शक थे. नाना साहब अंग्रेजों के खिलाफ बिठूर नगर का नेतृत्व कर रहे थे.

25 मार्च साल 1931 को जब कानपुर में सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा. इस लड़ाई में गणेश शंकर विद्यार्थी निस्सहायों को बचाते हुए मारे गए थे. उनकी मौत को महात्मा गांधी ने शानदार मौत बताते हुए कहा था कि उन्हें भी ऐसी मौत नसीब हो. भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के मित्र विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार और साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी कलम से ही अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति उत्पन्न की थी.

साल 1930 में बनकर तैयार हो गया था कानपुर सेंट्रल

कानपुर सेंट्रल का निर्माण अंग्रेज इंजीनियर जॉन एच ओनियन ने किया था. इस स्टेशन का निर्माण कार्य नवबंर साल 1928 में शुरू हुआ था और 29 मार्च साल 1930 में बनकर यह तैयार हो गया था. उस वक्त कानपुर स्टेशन बनाने में करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया था. पहली ट्रेन कन्नौज से कानपुर के बीच चलाई गई थी.

220 साल पुराना कानपुर कचहरी

कानपुर भले ही 18वीं शताब्दी में जिला घोषित नहीं हुआ था लेकिन इसके बावजूद यहां मुकदमों की सुनवाई के लिए कोर्ट थी. कानपुर कोर्ट की स्थापना 18 मार्च साल 1801 में हुई थी इसके पहले मजिस्ट्रेट अब्राहम वेयलान थे. अंग्रेजों ने साल 1811 में कचहरी को बिठूर और फिर साल 1816 में पुराना कानपुर स्थानांतरित कर दिया था.

चमड़ा उद्योग का मुख्य केंद्र

उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक टैक्स चुकाने वाला जिला कानपुर है. कानपुर नगर को चमड़े उत्पादन के लिए जाना जाता है. जाजमऊ में चमड़े की सैकड़ों फैक्टरियां है. जहां चमड़े के जूते-चप्पल, लेदर की बैल्ट औस पर्स समेत ढेर सारी वस्तुएं बनाई जाती हैं. शू निर्माता कंपनी रेड चीफ कानपुर की ही कंपनी है. एक समय शहर के लाल इमली फैक्ट्ररी में ऊनी वस्त्र बनाए जाते थे. कानपुर में ऑर्डिनेस की फैक्टरियां हैं जहां आर्मी के लिए सामान बनाते हैं.

बड़ी हस्तियों का नगर कानपुर

वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कानपुर के ही रहने वाले हैं इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज से की थी. मोती लाल नेहरु का संबंध भी कानपुर से था. सिंगर अभिजीत भट्टाचार्या, कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव समेत कई बड़ी हस्तियों का घर भी कानपुर है.

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